DU में अब साढ़े छह साल में पूरी करें पीएचडी
डीयू में पीएचडी की पढ़ाई के लिए अब साढ़े चार नहीं साढ़े छह साल मिलेंगे। विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद् ने सोमवार को पीएचडी पाठ्यक्रमों के लिए अधिकतम समय सीमा में इजाफे को हरी झंडी दिखा दी है।
By Ramesh MishraEdited By: Updated: Tue, 21 Jul 2015 04:02 PM (IST)
नई दिल्ली [शैलेंद्र सिंह] । डीयू में पीएचडी की पढ़ाई के लिए अब साढ़े चार नहीं साढ़े छह साल मिलेंगे। विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद् ने सोमवार को पीएचडी पाठ्यक्रमों के लिए अधिकतम समय सीमा में इजाफे को हरी झंडी दिखा दी है।
विश्वविद्यालय के इस निर्णय का सीधा लाभ उन छात्रों को मिलेगा, जो समय के अभाव में बेहतर ढंग से रिसर्च कार्य नहीं कर पा रहे हैं।पीएचडी के लिए ऐसे बदली व्यवस्था
पहले डीयू में पीएचडी के लिए अधिकतम चार साल और उसके बाद छह माह का अतिरिक्त समय दिया जाता था। अब इसे बदलकर पांच साल और उसके बाद डेढ़ साल अतिरिक्त समय का प्रावधान कर दिया गया है। यानी रिसर्च करने की अवधि दो साल बढ़कर साढ़े छह साल हो गई है।
मंजूर हुए प्रस्ताव पर जताई आपत्ति
कार्यकारी परिषद् की सदस्य आभादेव हबीब ने मंजूर हुए प्रस्ताव पर तीन अहम बिंदुओं को लेकर आपत्ति जताई है। इस प्रस्ताव को विद्वत परिषद् की बैठक में बिना किसी चर्चा के ही पास करा लिया गया। विभागों में जब पीएचडी की सीटें पूर्व निर्धारित हो चुकी हैं और चूंकि समय सीमा में इजाफा किया जा रहा है तो आरक्षण नीति का यूजीसी के निर्देश के अनुसार पालन हो, जबकि नहीं हो रहा है। वहीं तीसरा मुद्दा है, रिसर्च सुपरवाइजर के तौर पर विभाग व कॉलेज शिक्षक के स्तर पर भेदभाव।
पहले डीयू में पीएचडी के लिए अधिकतम चार साल और उसके बाद छह माह का अतिरिक्त समय दिया जाता था। अब इसे बदलकर पांच साल और उसके बाद डेढ़ साल अतिरिक्त समय का प्रावधान कर दिया गया है। यानी रिसर्च करने की अवधि दो साल बढ़कर साढ़े छह साल हो गई है।
मंजूर हुए प्रस्ताव पर जताई आपत्ति
कार्यकारी परिषद् की सदस्य आभादेव हबीब ने मंजूर हुए प्रस्ताव पर तीन अहम बिंदुओं को लेकर आपत्ति जताई है। इस प्रस्ताव को विद्वत परिषद् की बैठक में बिना किसी चर्चा के ही पास करा लिया गया। विभागों में जब पीएचडी की सीटें पूर्व निर्धारित हो चुकी हैं और चूंकि समय सीमा में इजाफा किया जा रहा है तो आरक्षण नीति का यूजीसी के निर्देश के अनुसार पालन हो, जबकि नहीं हो रहा है। वहीं तीसरा मुद्दा है, रिसर्च सुपरवाइजर के तौर पर विभाग व कॉलेज शिक्षक के स्तर पर भेदभाव।
बीटेक पाठ्यक्रमों में हुआ संशोधन
वहीं कार्यकारी परिषद् में विश्वविद्यालय में उपलब्ध बीटेक पाठ्यक्रमों में आवश्यक बदलावों को भी मंजूरी दे दी गई है। ये बदलाव बीटेक कम्प्यूटर साइंस, इलेक्ट्रानिक्स, इंस्टूमेंटेशन, पॉलीमर साइंस, फूट टेक्नोलॉजी और बीटेक एलॉयड पेपर में किए गए हैं। इसी कड़ी में दिल्ली सरकार के अंतर्गत आने वाले सभी 28 कॉलेजों को लम्बे समय से लंबित प्रबंध समितियों के गठन को भी सोमवार को हरी झंडी दिखा दी गई।
कार्यकारी परिषद् सदस्य आभा देव हबीब ने बताया कि प्रबंध समिति के गठन के मामले में कुछ कॉलेजों के स्तर पर व नियमों के स्तर पर चूक हुई है जिसे सुधारने की जरूरत है। इसमें सत्यवती कॉलेज में 12 सदस्यों वाली प्रबंध समिति के स्थान पर 10 सदस्यों वाली प्रबंध समिति बनाना प्रमुख है। इसके अलावा इन समितियों में दो महिला सदस्यों को जगह देने की व्यवस्था पर भी कई कॉलेजों के स्तर पर चूक हुई है। इसके लिए अब दिल्ली सरकार को पत्र लिखा जाएगा।