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पीड़िता की मानसिक आयु क्यों न बने पोस्को में मुकदमे का आधार

क्या दुष्कर्म पीड़िता की मानसिक उम्र आरोपियों पर बाल यौन अपराध संरक्षण (पोस्को) कानून में मुकदमा चलाने का आधार हो सकती है। सुप्रीमकोर्ट कानून के इस अहम सवाल पर विचार करेगा।

By Amit MishraEdited By: Published: Sun, 03 Apr 2016 08:33 PM (IST)Updated: Mon, 04 Apr 2016 07:19 AM (IST)

नई दिल्ली, जागरणर ब्यूरो। क्या दुष्कर्म पीड़िता की मानसिक उम्र आरोपियों पर बाल यौन अपराध संरक्षण (पोस्को) कानून में मुकदमा चलाने का आधार हो सकती है। सुप्रीमकोर्ट कानून के इस अहम सवाल पर विचार करेगा। उम्र से बालिग और अक्ल से बच्ची मंदबुद्धि दुष्कर्म पीडि़ता की मां ने सुप्रीमकोर्ट में याचिका दाखिल कर दुराचारियों पर पोस्को कानून में मुकदमा चलाने की मांग की है। कोर्ट ने याचिका पर सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

शायद यह पहला मामला होगा जिसमें सुप्रीमकोर्ट ने इस प्रश्न पर संज्ञान लिया है। अगर कोर्ट व्यवस्था देता है कि दुष्कर्म पीड़िता की मानसिक आयु पोस्को कानून में मुकदमा चलाने का आधार हो सकती है तो उसके दूरगामी परिणाम होंगे।

न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा व न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह की पीठ ने पीड़िता की मां की वकील एश्वर्या भाटी की दलीलें सुनने के बाद दिल्ली सरकार व अन्य प्रतिवादियों को याचिका का जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया। कोर्ट ने मामले की तीन 3 मई को फिर सुनवाई करने का आदेश देते हुए इस दौरान निचली अदालत में चल रही सुनवाई पर भी रोक लगा दी है।

हाईकोर्ट से निराश होने के बाद पीड़िता की मां ने सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। वह प्रतिष्ठित डाक्टर हैं। एश्वर्या भाटी ने कहा कि पीड़िता जन्म से ही मानसिक पक्षाघात (सेरेब्रल पल्सी) से पीड़ित है। उसकी वास्तविक उम्र 38 वर्ष हो गई है लेकिन मानसिक आयु केवल छह साल की बच्ची जितनी है। उन्होंने इस बारे में कोर्ट के समक्ष एम्स के न्यूरो फिजीशियन और मनोविज्ञानी का प्रमाणपत्र भी पेश किया।

भाटी ने कहा कि पोस्को कानून के तहत 18 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति बच्चा माना जाता है। कानून में दी गई बच्चे की परिभाषा को व्यापक अर्थ में देखा जाए और उसमें मानसिक उम्र को भी शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस कानून के तहत विशेष अदालत में मुकदमा चलना चाहिए और पीड़िता के बयान दर्ज करने में भी वही प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिये जैसी कानून में पीड़िता या गवाही के लिए आए बच्चे के बारे में दी गई है। पीठ ने दलीलें सुनने के बाद मामले पर विचार करने का मन बनाते हुए दिल्ली सरकार व अन्य प्रतिपक्षियों को नोटिस जारी किया। याचिका में अदालत में गवाही के दौरान पीड़िता को हो रही दिक्कतों का जिक्र किया गया है।


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