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जानें, केजरीवाल के चेहरे पर क्‍यों आई चमक, AAP की जगीं उम्‍मीदें

केंद्र अौर दिल्‍ली सरकार के बीच शक्ति बंटवारे को लेकर चल रही तनातनी के बीच आखिर ऐसाा क्‍या हुआ कि मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर मुस्‍कान लौट आई।

By Ramesh MishraEdited By: Updated: Sun, 03 Jul 2016 09:55 AM (IST)
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नई दिल्ली [ जेएनएन ] । केंद्र एवं एलजी से लगातार टकराव एवं मतभेदों से जूझ रही दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से जरूर राहत मिली होगी। सुप्रीम कोर्ट ने आम आदमी पार्टी की उस अपील को स्वीकार कर लिया, जिसमें उसने दिल्ली सरकार की शक्तियों के दायरे समेत विभिन्न मुद्दों पर हाईकोर्ट को फैसला देने से रोकने की मांग की है।

दिल्ली सरकार ने केंद्र के दखल को लेकर लगातार अपनी आपत्तियां उठाई हैं। समाधान नहीं मिलने पर आखिरकार यह मामला अदालत की दहलीज तक जा पहुंचा। अाप का आरोप रहा है कि केंद्र लगाताार दिल्ली सरकार के प्रति असहायोग का रवैया अपना रहा है। केंद्र कभी एलजी के माध्यम से तो कभी दिल्ली पुलिस के माध्यम से आप के लिए संकट पैदा करता रहा है।

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इसके अलावा दिल्ली में अफसरों की नियुक्ति को लेकर दोनों सरकारों के बीच तनातनी जगजाहिर है। इस बाात दोनों सरकारों की शक्तियों को लेकर भी बहस हो चुकी है। केजरीवाल की दिल्ली को स्वतंत्र राज्य की मांग को लेकर भी केंद्र और राज्य के बीच तनाव का एक एक प्रमुख कारण रहा है।

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ऐसे तनातनी के बीच सुप्रीम कोर्ट दोनों सरकारों के बीच शक्ति बंटवारें को लेकर सुनवाई पर राजी हो गया है। अब इस मामले में चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई करेगी। दिल्ली सरकार ने अपनी याचिका में अपील की थी कि राज्यों और केंद्र की शक्तियों से जुड़े मुद्दे को देखना सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है। संविधान के तहत केवल सुप्रीम कोर्ट को ही यह अधिकार हासिल है।

केजरीवाल सरकार की तरफ से याचिका सीनियर वकील इंदिरा जयसिंह ने दायर की थी। इस याचिका पर सुनवाई करने वाली पीठ में जस्टिस एएम खानविकलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी शामिल हैं।

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क्या है आप के तर्क
इंदिरा ने सुनवाई के दौरान कहा कि विवाद संविधान के अनुच्छेद 239ए के तहत राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) की शक्तियों के आस पास केंद्रित है। आप सरकार ने यह आरोप लगाया है कि वह काम करने में असमर्थ है, क्योंकि इसके ज्यादातर फैसलों को उपराज्यपाल नजीब जंग के कहने पर इस आधार पर केंद्र द्वारा रद्द कर दिया जाता है या बदल दिया जाता है कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है। शुरू में पीठ इस पर तत्काल सुनवाई करने को तैयार नहीं थी और इसने कहा था कि दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला आने दीजिए औ दिल्ली सरकार इस अदालत के समक्ष सभी मुद्दे उठाने को स्वतंत्र हैं।

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