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कामयाबी की नई उड़ान

एक लंबे अर्से से भारत इसके लिए प्रयासरत था कि उसका भी जीपीएस यानी ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम अंतरिक्ष म

By Edited By: Updated: Fri, 17 Oct 2014 06:20 AM (IST)

एक लंबे अर्से से भारत इसके लिए प्रयासरत था कि उसका भी जीपीएस यानी ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम अंतरिक्ष में स्थापित हो। आखिरकार 16 अक्टूबर, 2014 को इसरो ने अपने ध्रुवीय रॉकेट से भारत के तीसरे नैविगेशन उपग्रह आइआरएनएसएस-1 सी की सफल स्थापना से अपनी मंजिल पा ली है। अब भारत उस मुकाम पर जा पहुंचा है जहां पर चंद देशों का ही अभी तक वर्चस्व था। तकरीबन 10 वर्ष पूर्व इसरो के इंजीनियरों ने अमेरिकी 'जीपीएस' से भिन्न नैविगेशन प्रणाली विकसित करने पर विमर्श आरंभ किया था। जीपीएस उपग्रह आधारित एक ऐसी प्रणाली है जिससे उपग्रह द्वारा जल, थल, नभ के चप्पे-चप्पे पर नजर रखी जा सकती है। इसका सीधा अर्थ है-उपग्रह आधारित वैश्रि्वक दिशा ज्ञान और स्थान निर्धारण। अब तक ऐसी नैविगेशन प्रणाली की स्थापना करीब दो दशक पहले अमेरिका ने की थी। बाद में कई अन्य राष्ट्रों ने भी ऐसी प्रणालियों की स्थापना की, जो अभी विकासाधीन हैं। अमेरिकी नैविगेशन प्रणाली को 24 उपग्रहों की दरकार है। रूस ने भी वैश्रि्वक कवरेज के लिए ऐसी प्रणाली विकसित की है जिसे उसने 'ग्लोनास' नाम दिया है, जिसमें 24 उपग्रह होंगे। यूरोप भी ऐसी प्रणाली की स्थापना कर रहा है। उसकी नैविगेशन प्रणाली में 27 उपग्रह होंगे। उसका यह कार्य वर्ष 2019 तक पूरा हो सकेगा। यूरोप की इस प्रणाली का नाम 'गैलिलियो' है। फिलहाल उसने इस प्रणाली में अभी तक चार उपग्रहों की स्थापना की है। चीन की नैविगेशन प्रणाली में 35 उपग्रह होंगे। अक्टूबर 2012 तक उसने 16 उपग्रहों की स्थापना कर ली थी। उसकी यह प्रणाली वर्ष 2020 तक पूरी होगी, लेकिन उसका दायरा एशिया और प्रशांत क्षेत्र तक सीमित होगा। जापान की इस प्रणाली यानी क्यूजेडएसएस में 3 उपग्रह ही होंगे। उसने अपने पहले उपग्रह का प्रक्षेपण दिसंबर, 2010 में किया था।

भारत भी अमेरिकी जीपीएस से जुड़ सकता था, लेकिन इसमें खतरा था। युद्ध या किसी अन्य संवेदनशील अवसर पर यदि उसने अपनी सेवाएं हमें देना बंद कर दिया तो कुछ का कुछ भी हो सकता था। ऐसे में हमारी नैविगेशन प्रणाली ध्वस्त हो सकती है और उपग्रहों से सिग्नल न मिलने पर हमारी रक्षा प्रणाली तार-तार हो सकती है। इस कारण भारत ने अपनी स्वतंत्र नैविगेशन प्रणाली के विकास का निर्णय लिया जो सही कदम है। अंतर सिर्फ यह है कि हमारी प्रणाली एक क्षेत्रीय सेवा है, जो भारत और उसके इर्द-गिर्द 1500 किमी के दायरे को अपने कवरेज में ले सकेगी। इसरो के विशेषज्ञों के मुताबिक यह हमारी जरूरतों के लिए पर्याप्त भी है। अमेरिकी जीपीएस सिस्टम में 24 उपग्रह और भू-केंद्रों का वैश्रि्वक जाल है, जो धरती के जर्रे-जर्रे पर अपनी पैनी नजर 24 घंटे रख सकता है। यह अत्यंत महंगी प्रणाली है। इसलिए इसरो ने अपने लक्ष्य को सीमित करने पर विचार किया। इसके लिए हमें मात्र 7 उपग्रहों की स्थापना करनी होगी। भारतीय नैविगेशन प्रणाली के पहले उपग्रह की सफल स्थापना 1 जुलाई, 2013 को की गई थी। इस उड़ान ने भारत के पहले नैविगेशन उपग्रह 'आइआरएनएसएस-1 ए' को भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर दिया। उपग्रह का भार 1425 किग्रा है और इसकी कार्यकारी अवधि 10 वर्ष आकलित की गई है। यह ध्रुवीय रॉकेट की 23वीं सफल उड़ान थी। यह उपग्रह राष्ट्र को अपनी सेवाएं मुहैया करा रहा है। इस क्रम में भारत ने अपने दूसरे नैविगेशन उपग्रह 'आइआरएनएसएस-1बी' का प्रक्षेपण 4 अप्रैल, 2014 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से ध्रुवीय रॉकेट से किया। उड़ान भरने के मात्र 19 मिनट बाद उसने उपग्रह को उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया। हमारी नैविगेशन प्रणाली के दूसरे उपग्रह 'आइआरएनएसएस-1 बी' का भार 1432 किग्रा है और इसकी कार्यकारी अवधि 10 वर्ष से अधिक अनुमानित की गई है। इस क्रम में हमारे ध्रुवीय रॉकेट ने 16 अक्टूबर, 2014 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से उड़ान भरी और 20 मिनट बाद उसने भारत के तीसरे नैविगेशन उपग्रह को भूस्थिर कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया। भारत के तीसरे नैविगेशन उपग्रह 'आइआरएनएसएस-1 सी' का भार 1425 किग्रा है, जो हमारी नैविगेशन प्रणाली का तीसरा उपग्रह है। इसकी मदद से हवाई जहाजों की सेफ लैंडिंग हो सकेगी और मिसाइलें भी अपने लक्ष्य को आसानी से ढूंढ़ लेंगी। इस प्रकार भारत की रक्षा प्रणाली और सिविल एविएशन को भी खासी मदद मिलेगी। वर्ष 2016 तक हमारा नैविगेशन नेटवर्क पूर्णता को प्राप्त कर लेगा। 'इसरो' का यह भी कहना है कि जरूरत पड़ने पर इस प्रणाली में चार और उपग्रह छोड़े जा सकते हैं। यह हमारे लिए गौरव की बात है कि भारत ने अपनी नैविगेशन प्रणाली का स्वतंत्र विकास कर लिया है और वह भी मात्र 1420 करोड़ रुपये की लागत से। इसरो के कर्मठ इंजीनियरों ने काफी कम पूंजी निवेश के साथ इस प्रणाली को स्थापित करके दुनिया के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। यह सेवा जल ही नहीं, बल्कि थल और नभ में स्थित किसी भी वस्तु की लोकेशन पर नजर रख सकती है और उसका मार्ग-निर्देशन कर सकती है। मसलन ट्रक अथवा कार ड्राइवर मोबाइल से अपनी सटीक लोकेशन की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रणाली का उपयोग करके युद्धक विमानों के पायलट, समुद्री जहाजों के कैप्टन अपने रूटों की सटीक जानकारी पा सकेंगे। यहां तक कि मिसाइलें भी आसानी से अपने लक्ष्यों को खोज पाने में सफल होंगी।

भारतीय नैविगेशन प्रणाली की एक सेवा आम लोगों के लिए होगी और दूसरी सेवा सेना या सुरक्षा एजेंसियों के लिए। अब हम अपने दुश्मनों की गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं, आतंकवादियों के ठिकानों को खोज सकते हैं और आपदा प्रबंधन में भी इसका बेहतर इस्तेमाल कर सकते हैं। इस प्रणाली की सफल स्थापना के साथ भारत में किसी भी स्थल की सटीक जानकारी 10 मीटर की परिशुद्धता तक प्राप्त की जा सकेगी और भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में इसकी शुद्धता 20 मीटर तक होगी। मंगलयान की सफलता के बाद यह इसरो का एक और कीर्तिमान है।

[लेखक शुकदेव प्रसाद, विज्ञान मामलों के विशेषज्ञ हैं]