सही इरादे का प्रदर्शन
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने मोदी सरकार के लिए जो पहला पूर्ण बजट लोकसभा में प्रस्तुत किया वह कई मायनों
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने मोदी सरकार के लिए जो पहला पूर्ण बजट लोकसभा में प्रस्तुत किया वह कई मायनों में ऐतिहासिक रहा। सबसे पहली बड़ी बात तो यह कि इस साल भारत में आर्थिक सुधार की नीतियों के 25 वर्ष होने को हैं। हर कोई यह समझना चाहता है कि भारत की अर्थव्यवस्था का उदारीकरण के स्थायी दौर में स्वरूप क्या रहा? दूसरी बात यह है कि मनमोहन सिंह और यशवंत सिन्हा के महत्वपूर्ण बजटों की तुलना में अरुण जेटली का बजट कैसा रहा? इसके साथ कुछ अन्य प्रश्न अर्थव्यवस्था के मानक स्तंभों से जुड़े हुए हैं। सबसे पहले तो हमें यह देखना होगा कि इस बजट में एक तरफ सुधार के कथानक पर जोर रहा तो दूसरी ओर राजनीतिक कथानक पर भी सरकार की सूक्ष्म दृष्टि बनी रही। केवल आय-व्यय का सालाना ब्यौरा होने के बजाय सबसे पहले तो इस बजट में सरकार की अर्थनीति के विजन का भी बयान मिला। जेटली की बातों का यदि जिक्त्र करें तो उन्होंने सबसे पहले यह बात कही कि इस सरकार को पुरानी सरकार से धरोहर के रूप में उदासी और मायूसी का ही भाव मिला था। गत नौ महीनों में उनकी सरकार ने इसको बदलने की भरपूर चेष्टा की है। शायद इसी का नतीजा रहा कि उपभोक्ता कीमत सूचकांक पर महंगाई की दर 5.1 प्रतिशत पर आ गिरी और थोक मूल्य सूचकांक पर तो मुद्रास्फीति नकारात्मक दिशा में चली गई।
सकल घरेलू उत्पाद में भी आज बढ़त देखने को मिल रही है। यह दर सात प्रतिशत से ऊपर होने के कारण आज भारत को विश्व की संतुलित अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता है। जेटली के अनुसार आगे अब उनकी सरकार का मुख्य लक्ष्य है आर्थिक स्थिरता। इसके साथ ही विकास दर दस प्रतिशत से ऊपर ले जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसका मतलब है कि नौकरियों का सृजन होगा और गरीबी का उन्मूलन होगा। वित्त मंत्री के अनुसार ये चारों ही लक्ष्य इस सरकार की मेहनत से अब साधे जा सकते हैं, क्योंकि इस सरकार के कामकाज में कहीं भी घोटालों और भ्रष्टाचार का दूर-दूर तक कोई नामोनिशान नहीं है। आठ महीनों में अगर तीन चीजें सरकार ने हासिल की हैं तो यह उसकी स्वच्छ छवि और पुरजोर मंशा की देन है। जिन तीन कामयाबियों का जिक्र जेटली ने किया उनमें सबसे पहले है जनधन योजना, दूसरी कोयले की नीलामी और तीसरी स्वच्छ भारत अभियान के तहत छह करोड़ शौचालयों के निर्माण का संकल्प। सरकार की इन तीनों पहल के साथ ही जेटली ने यह माना कि जीएसटी यानी वस्तु एवं सेवा कर को इनमें यदि जोड़ दिया जाए तो ये कदम मिलकर नए युग का सूत्रपात करेंगे। मोटे तौर पर जो सबसे बड़ी बात बजट में उभरकर आती है वह यह है कि सरकार ने केवल उद्योगपतियों और कारपोरेट जगत का साथी होने के बजाय गरीबों की ओर रुख किया और हाशिये पर पड़े इलाकों की तरफ अपनी सकारात्मक सोच प्रदर्शित की है।