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सही इरादे का प्रदर्शन

वित्तमंत्री अरुण जेटली ने मोदी सरकार के लिए जो पहला पूर्ण बजट लोकसभा में प्रस्तुत किया वह कई मायनों

By Edited By: Updated: Sun, 01 Mar 2015 05:34 AM (IST)

वित्तमंत्री अरुण जेटली ने मोदी सरकार के लिए जो पहला पूर्ण बजट लोकसभा में प्रस्तुत किया वह कई मायनों में ऐतिहासिक रहा। सबसे पहली बड़ी बात तो यह कि इस साल भारत में आर्थिक सुधार की नीतियों के 25 वर्ष होने को हैं। हर कोई यह समझना चाहता है कि भारत की अर्थव्यवस्था का उदारीकरण के स्थायी दौर में स्वरूप क्या रहा? दूसरी बात यह है कि मनमोहन सिंह और यशवंत सिन्हा के महत्वपूर्ण बजटों की तुलना में अरुण जेटली का बजट कैसा रहा? इसके साथ कुछ अन्य प्रश्न अर्थव्यवस्था के मानक स्तंभों से जुड़े हुए हैं। सबसे पहले तो हमें यह देखना होगा कि इस बजट में एक तरफ सुधार के कथानक पर जोर रहा तो दूसरी ओर राजनीतिक कथानक पर भी सरकार की सूक्ष्म दृष्टि बनी रही। केवल आय-व्यय का सालाना ब्यौरा होने के बजाय सबसे पहले तो इस बजट में सरकार की अर्थनीति के विजन का भी बयान मिला। जेटली की बातों का यदि जिक्त्र करें तो उन्होंने सबसे पहले यह बात कही कि इस सरकार को पुरानी सरकार से धरोहर के रूप में उदासी और मायूसी का ही भाव मिला था। गत नौ महीनों में उनकी सरकार ने इसको बदलने की भरपूर चेष्टा की है। शायद इसी का नतीजा रहा कि उपभोक्ता कीमत सूचकांक पर महंगाई की दर 5.1 प्रतिशत पर आ गिरी और थोक मूल्य सूचकांक पर तो मुद्रास्फीति नकारात्मक दिशा में चली गई।

सकल घरेलू उत्पाद में भी आज बढ़त देखने को मिल रही है। यह दर सात प्रतिशत से ऊपर होने के कारण आज भारत को विश्व की संतुलित अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता है। जेटली के अनुसार आगे अब उनकी सरकार का मुख्य लक्ष्य है आर्थिक स्थिरता। इसके साथ ही विकास दर दस प्रतिशत से ऊपर ले जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसका मतलब है कि नौकरियों का सृजन होगा और गरीबी का उन्मूलन होगा। वित्त मंत्री के अनुसार ये चारों ही लक्ष्य इस सरकार की मेहनत से अब साधे जा सकते हैं, क्योंकि इस सरकार के कामकाज में कहीं भी घोटालों और भ्रष्टाचार का दूर-दूर तक कोई नामोनिशान नहीं है। आठ महीनों में अगर तीन चीजें सरकार ने हासिल की हैं तो यह उसकी स्वच्छ छवि और पुरजोर मंशा की देन है। जिन तीन कामयाबियों का जिक्र जेटली ने किया उनमें सबसे पहले है जनधन योजना, दूसरी कोयले की नीलामी और तीसरी स्वच्छ भारत अभियान के तहत छह करोड़ शौचालयों के निर्माण का संकल्प। सरकार की इन तीनों पहल के साथ ही जेटली ने यह माना कि जीएसटी यानी वस्तु एवं सेवा कर को इनमें यदि जोड़ दिया जाए तो ये कदम मिलकर नए युग का सूत्रपात करेंगे। मोटे तौर पर जो सबसे बड़ी बात बजट में उभरकर आती है वह यह है कि सरकार ने केवल उद्योगपतियों और कारपोरेट जगत का साथी होने के बजाय गरीबों की ओर रुख किया और हाशिये पर पड़े इलाकों की तरफ अपनी सकारात्मक सोच प्रदर्शित की है।

वर्ष 2022 को जेटली ने भारत की आजादी का अमृत महोत्सव वर्ष करार देते हुए कहा कि इस वर्ष तक सरकार कुछ ऐसे मील के पत्थर छूना चाहेगी जिससे वास्तव में गरीबों के जीवन और गरीब इलाकों में परिवर्तन हो सके। इनमें मुख्य हैं चौबीसों घंटे बिजली, शौचालय और पीने के पानी की व्यवस्था। इसके साथ ही कृषि में एक संयुक्त राष्ट्रीय बाजार व्यवस्था की भी बात उन्होंने कही। ग्रामीण इलाकों में कौशल-हुनर और उद्यमिता पर बल देते हुए उनका जोर कृषि में संस्थागत सुधारों की तरफ रहा, चाहे वह सिंचाई हो या बाजार व्यवस्था की बात। उन्होंने यह माना कि कृषि के सामने चुनौतियां बहुत ही प्रबल हैं और विनिर्माण क्षेत्र में उतनी बढ़त नहीं हो पाई, लेकिन इन दोनों ही मोचरें पर नई सोच के साथ काम होने की आशा है। इसके अतिरिक्त जिस दूसरे नीतिगत परिवर्तन की बात जेटली ने की वह संघीय ढांचे में राज्यों की सहभागिता बढ़ाने की है। वित्त आयोग की सिफारिशों के साथ ही बजट में भी जेटली ने यह दोहराया कि अब राजस्व विभाजन में लगभग 62 फीसद आमदनी राज्यों को मुहैया कराई जाएगी और केंद्र अपने हिस्से में 38 फीसद ही रखेगा यानी कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण पहल अब राज्यों की तरफ से भी आ सकेगी। तीसरी महत्वपूर्ण नीतिगत बात अर्थव्यवस्था में समग्र संतुलन की है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की सरकार ने धरोहर में एक बहुत खराब अर्थव्यवस्था दी। उनके मुताबिक राजकोषीय घाटे को पाटने का काम एक साल में वह नहीं कर पाएंगे, क्योंकि उनकी सरकार को खर्च करने के लिए भी कुछ राशि की आवश्यकता है, किंतु इसे तीन वषरें में पाटने का वादा उन्होंने किया है।

मोटे तौर पर कृषि के विकास और अर्थव्यवस्था में संतुलन के लिए उठाए गए कदम एक सकारात्मक संदेश देते हैं। कुछ लोग यह सोच रहे थे कि सरकार सब्सिडी पर कुछ ज्यादा ही सख्ती दिखाएगी अथवा मनरेगा जैसी योजनाओं को बंद कर देगी, लेकिन सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया। इसके बजाय उसने भ्रष्टाचार और धनराशि के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने का इरादा व्यक्त किया। हाशिये पर रहने वाले नागरिकों के लिए सुलभ बीमा योजना, लघु उद्योग के लिए कई और आश्वासन, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, जनधन के लिए पोस्ट आफिसों का इस्तेमाल किया जाना भी उल्लेखनीय कदम हैं। इन सभी बातों से सरकार की कल्याणकारी मंशा पर एक मुहर तो लगी, साथ ही विकास और जीडीपी में वृद्धि पर भी कई सुलझे हुए प्रस्ताव दिए गए जिनमें महत्वपूर्ण है इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश की बात, खासकर रोड व रेल में निवेश के लिए करमुक्त बांड का जारी किया जाना। बजट में राजनीतिक संकेतों की बात करें तो पश्चिम बंगाल और बिहार को विशेष सहायता देने के निर्णय को गिना जा सकता है। इन दोनों ही राज्यों में चुनाव होने हैं।

[लेखिका मनीषा प्रियम, लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स से जुड़ी रही हैं]