अलकायदा की आहट
आइएस के आतंक के बाद अलकायदा की धमकी को भारत के लिए बेहद गंभीर मान रहे हैं प्रकाश सिंह दक्षिण एशिया का सुरक्षा परिदृश्य दिनोंदिन भयावह होता जा रहा है। अफगानिस्तान छिन्न-भिन्न हो चुका है। पाकिस्तान भी विनाश की कगार पर दिखता है। अस्थिरता एवं अशांति की लहरें भारत की सी
आइएस के आतंक के बाद अलकायदा की धमकी को भारत के लिए बेहद गंभीर मान रहे हैं प्रकाश सिंह
दक्षिण एशिया का सुरक्षा परिदृश्य दिनोंदिन भयावह होता जा रहा है। अफगानिस्तान छिन्न-भिन्न हो चुका है। पाकिस्तान भी विनाश की कगार पर दिखता है। अस्थिरता एवं अशांति की लहरें भारत की सीमा पर भी थपेड़े ले रही हैं। पिछले कुछ महीनों से इस्लामिक स्टेट (आइएस) की बर्बरता और उसके मध्य-पूर्व एशिया में बढ़ते हुए प्रभाव से सारे विश्व में चिंता हो रही है। अल बगदादी के खलीफा बनने के बाद इस्लामिक स्टेट के सैनिकों ने अपने विरोधियों और अल्पसंख्यकों पर जो कहर ढाया वह हमें मध्यकालीन युग की याद दिलाता है। अमेरिका के रक्षामंत्री चक हेगेल के अनुसार आइएस जैसा कोई संगठन उन्होंने अभी तक नहीं देखा था, जिसमें विचारधारा और सैन्य शक्ति का ऐसा खतरनाक संगम हो। आइएस ने अमेरिका को खुलेआम धमकी दी है कि वह उसे खून से नहला देगा। एक अन्य सूचना के अनुसार आइएस समर्थक ब्रिटेन में मुंबई में हुए 26 नवंबर जैसे हमलों को अंजाम देना चाहते हैं। कहा जाता है कि खलीफा वर्तमान में ब्रिटेन के बराबर भौगोलिक क्षेत्र में अपना साम्राज्य स्थापित कर चुका है। ऐसा नहीं है कि आइएस का प्रभाव इराक, सीरिया और लगे हुए मध्य पूर्व देशों तक ही सीमित रहेगा। आधिकारिक सूचना के अनुसार आइएस की पाकिस्तान में घुसपैठ हो चुकी है। पेशावर और अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों में आइएस समर्थकों में अपना प्रोपोगैंडा अथवा प्रचार साहित्य वितरित किया है। इसमें आइएस ने अपने आपको 'दौलते इस्लामिया' के रूप में प्रस्तुत किया है और लोगों से खलीफा के समर्थन में जेहाद छेड़ने की अपील की है। ऐसा भी सुनने में आया है कि कई कट्टरपंथी संगठनों ने आइएस के प्रति अपनी निष्ठा का एलान कर दिया है।
भारत में भी आइएस का प्रभाव परिलक्षित होने लगा है, भले ही वह छोटे पैमाने पर है। वैसे भी हम 11 जुलाई को और बाद में ईद के दिन 29 जुलाई को कश्मीर में कुछ युवाओं को आइएस के झंडे फहराते देखे चुके हैं। कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि आइएस समर्थक गतिविधियां निकट भविष्य में अन्य क्षेत्रों में भी देखी जाएं। एक तरफ तो इस्लामिक स्टेट का जहर फैल रहा है और दूसरी तरफ अलकायदा भी फुफकार मारने लगा है। इसके नेता अल जवाहिरी ने एक वीडियो जारी किया है जिसमें उन्होंने अलकायदा की भारतीय शाखा 'कायदात अल जेहाद' की स्थापना का एलान किया है। वीडियो में अल जवाहिरी ने कहा है कि भारत मुस्लिम साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था, यहां फिर से इस्लामिक राज्य स्थापित किया जाएगा। उसने यह भी कहा कि अल कायदा ब्रिटिश साम्राज्य के समय खींची गई कृत्रिम सीमाओं को, जो मुसलमानों को अलग-अलग देशों में बांटती है, ध्वस्त कर देगा। जवाहिरी शायद ऐसा कहते समय भूल गया कि ऐसी सीमाओं में डूरंड लाइन भी है और इसके ध्वस्त करने का मतलब पाकिस्तान का विघटन होगा।
सवाल यह उठता है कि अल जवाहिरी के वीडियो जारी करने के पीछे क्या मंशा च्च्ी? सच्चाई यह है कि जबसे इस्लामिक स्टेट चर्चा में आया है तब से अलकायदा की उग्र छवि धीरे-धीरे धूमिल हो रही थी। कई देशों के इस्लामिक संगठन, जैसे इंडोनेशिया, मलेशिया और पाकिस्तान के भी कुछ संगठन, जो अभी तक अलकायदा से संबद्ध थे, वे धीरे-धीरे आइएस की ओर झुकने लगे थे। इन परिस्थितियों में अपने महत्व को बनाए रखने के लिए संभवत: अलकायदा ने यह पैंतरा चला है। भारत, बांग्लादेश और म्यांमार, इन तीनों ही देशों में मुसलमानोंच्की अच्छी खासी आबादी है। अल जवाहिरी का लक्ष्य इन लोगों में धार्मिक उन्माद बढ़ाकर अलकायदा को प्रासंगिक बनाए रखना प्रतीत होता है। वीडियो में उसने साफ-साफ कहा है कि सारी दुनिया के मुसलमानों में नई चेतना का संचार हो रहा है तो दक्षिण एशिया के मुसलमान कैसे शांत रह सकते हैं। 'इस समुद्र में कोई तूफान क्यों नहीं है'।
भारत सरकार ने अलकायदा के वीडियो को गंभीरता से लिया है। सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क कर दिया गया है। राज्यों को अलर्ट भेज दिया गया है। इसमें संदेह नहीं कि वीडियो के संदेश को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। वास्तव में आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था के सुदृढ़ीकरण की तात्कालिक आवश्यकता है। वर्तमान व्यवस्था लगभग वही है जो पूर्व सरकार के समय में थी। राजग सरकार ने कई दिशा में प्रगति के कदम लिए हैं। संसद ने महत्वपूर्ण बिल पारित किए। सरकारी दफ्तरों में एक नई कार्यशैली दिख रही है। अर्थव्यवस्था भी सुधार की दिशा में है। दुर्भाग्य से आंतरिक सुरक्षा का क्षेत्र ही ऐसा है जहां कोई नए ठोस कदम नहीं दिख रहे हैं। ऐसे तो सारी सुरक्षा व्यवस्था के पुनरीक्षण की आवश्यकता है, परंतु विशेष तौर से आतंकवाद से निपटने का हमारा जो ढांचा है उसे सशक्त बनाने की जरूरत है। इसके लिए तीन मुद्दों पर तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए। पहला तो यह कि हम आतंकवाद से निपटने की अपनी नीति की सुस्पष्ट व्याख्या कर दें। पिछले छह दशकों में हमारे नेतृत्व ने दुर्भाग्य से इस दिशा में ध्यान नहीं दिया। जो सरकार आती है, अपने राजनीतिक आकलन के अनुसार नीति बनाती और चलाती है। दूसरा यह कि आतंकवाद निरोधक कानून और सख्त बनाने की जरूरत है। जहां-तहां राष्ट्रविरोधी प्रदर्शन व अन्य गतिविधियां होती रहती हैं और हम उन्हें बर्दाश्त करते रहते हैं। अंग्रेजी में कहा जाता है कि 'एनफ इज एनफ' यानी बहुत हो गया। बर्दाश्त की सीमा होती है। लोकतांत्रिक स्वतंत्रता का राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के लिए दुरुपयोग बंद होना चाहिए। देश की एकता और संप्रभुता को चुनौती देने वाले को सीधे-सीधे एक निर्धारित अवधि के लिए अंदर कर दिया जाना चाहिए। तीसरा यह कि नेशनल काउंटर टेररिज्म की स्थापना विवादों को सुलझाते हुए अविलंब की जानी चाहिए। इसी क्रम में राष्ट्रीय स्तर पर एक काउंटर टेररिज्म एकेडमी भी बनाई जानी चाहिए, जहां सशस्त्र पुलिस बलों को आतंकवाद से निपटने का प्रशिक्षण दिया जाए।
हमें अपनी पश्चिमी सीमाओं को भी और सुदृढ़ करना होगा। जब-तब घुसपैठ की सूचनाएं आती रहती हैं। अफगानिस्तान से जैसे-जैसे नाटो की फौजें हटती जाएंगी हमारी सीमाओं पर दबाव बढ़ता जाएगा। भारत सरकार को 'आउट ऑफ बॉक्स' सोचना पड़ेगा। बांग्लादेश की सीमा पर वर्तमान में बीएसएफ यानी सीमा सुरक्षा बल तैनात है, परंतु इसे गैर-घातक (नॉन लीथल) हथियार दे दिए गए हैं। अगर शस्त्र का प्रभावी प्रयोग नहीं करना है तो सीमा की जिम्मेदारी किसी और सुरक्षा बल को दी जा सकती है। सीमा सुरक्षाबल की बटालियनें, जो इस प्रकार उपलब्ध होती हैं, उन्हें भी पश्चिमी सीमा पर लगाया जा सकता है। आइएस और अलकायदा के संदेश को हमें गंभीरता से लेना पड़ेगा। इस परिप्रेक्ष्य में सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करते हुए संभावित चुनौतियों से तैयार रहने का कोई विकल्प नहीं है।
(लेखक आंतरिक सुरक्षा के विशेषज्ञ हैं)