हर पार्टी जनता को विश्वास दिला रही है कि सत्ता में आने के बाद वह विदेशों में जमा भारतीय काले धन को वापस लाने का प्रयास करेगी। ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी नामक संस्था का अनुमान है कि 2011 में भारत से 424,000 करोड़ रुपये बाहर भेजे गए। यह संस्था वैश्रि्वक स्तर पर काले धन को ट्रैक करती है। मुझे यह अनुमान सही दिखता है। यह रकम केंद्र सरकार द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, बिजली, सड़क तथा रेल पर किए जा रहे कुल खर्च के बराबर बैठती है। यदि इस रकम का प्रेषण बंद हो जाए तो इन मदों पर सरकारी खर्च दोगुना किया जा सकता है।

सामान्य रूप से काले धन को नंबर-दो के धंधे से जोड़ा जाता है, जैसे प्रापर्टी बेचकर रकम नगद में प्राप्त करने से, लेकिन वैश्रि्वक अध्ययनों के अनुसार गैर कानूनी ढंग से धन को बाहर भेजने में इस काले धन का हिस्सा छोटा है। ज्यादा बड़ा हिस्सा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के द्वारा रकम को बाहर भेजने का है। ये कंपनियां माल के दाम में उलटफेर करके हमारी आय को बाहर ले जाती हैं, जैसे किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी ने 10,000 रुपये केकेमिकल का आयात किया, लेकिन बिल 20,000 रुपये का बनवा लिया और 20,000 रुपये भारत से भेज दिए। केमिकल के सप्लायर को 20,000 रुपये मिल गए। उसने 10,000 रुपये नगद में अथवा कमीशन के नाम पर बहुराष्ट्रीय कंपनी के मुख्यालय को अदा कर दिए। भारत से 10,000 रुपये नाजायज ढंग से बाहर चले गए। इसी प्रकार एक्सपोर्ट केबिल को कम कर दिया जाता है। 10,000 रुपये का माल एक्सपोर्ट किया गया, लेकिन बिल 5,000 का बनाया गया। शेष 5,000 रुपये बहुराष्ट्रीय कंपनी ने खरीददार से नकद ले लिए।

रकम को गैर कानूनी ढंग से भेजने का एक और उपाय प्रचलन में है। विदेशों में जाकर आप किसी कंपनी को रजिस्टर करा सकते हैं और बैंक खाता खुलवा सकते हैं। कई देशों में कंपनियों की मल्कियत की जानकारी सार्वजनिक करना जरूरी नहीं होता है। ऐसे में आपकी पहचान गुप्त रहती है। भारत सरकार को कंपनी का नाम पता लग सकता है, परंतु उसके मालिक आप हैं, यह पता नहीं लग सकता है। इस कंपनी में कोई कारोबार होना जरूरी नहीं है। इसे खोखली कंपनी कहा जाता है। ऐसी कंपनी को कमीशन अथवा साफ्टवेयर खरीदने जैसी सेवाओं के लिए भारत से पेमेंट किया जा सकता है। मेरा अनुमान है कि हमारे नेताओं एवं उद्यमियों के द्वारा भी इस प्रकार की कंपनियां बनाकर भारत से भारी रकम बाहर भेजी जा रही हैं।

संयुक्त राष्ट्र ने अफ्रीका से बाहर जा रही गैर कानूनी रकम पर नियंत्रण को एक पैनल बनाया है, जिसके अध्यक्ष दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति थाबो बेकी हैं। उन्होंने कहा है कि इस प्रेषण का दो तिहाई हिस्सा बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा भेजा जा रहा है, एक चौथाई हिस्सा आपराधिक गतिविधियों जैसे ड्रग्स और स्मगलिंग से जा रहा है और भ्रष्टाचार और घूसखोरी का हिस्सा मात्र 5 प्रतिशत है। ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी के अनुसार 60 प्रतिशत बिल के उलटफेर के माध्यम से भेजा जा रहा है। आपराधिक स्नोतों के द्वारा 35 प्रतिशत और भ्रष्टाचार का हिस्सा मात्र 3 प्रतिशत है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रवेश के साथ-साथ भारत से गैर कानूनी प्रेषण में हुई वृद्धि से इन अनुमानों की पुष्टि होती है। ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी के अनुसार 2003 में भारत से कुल गैर कानूनी प्रेषण 31,000 करोड़ रुपये था, जो कि 2011 में बढ़कर 424,000 करोड़ रुपये हो गया। 8 साल की अवधि में इसमें 12 गुना वृद्धि हुई है। संस्था ने यह भी कहा है कि इस बात के पुख्ता प्रमाण उपलब्ध हैं कि भारत में आर्थिक सुधारों के साथ-साथ पूंजी का गैर कानूनी प्रेषण बढ़ा है। इसके विपरीत मैक्सिको में विकास दर बढ़ने के साथ-साथ पूंजी का पलायन घटा है। दोनों देशों में अंतर गवनर्ेंस का है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में व्याप्त कुशासन का लाभ उठाकर गैर कानूनी ढंग से रकम का प्रेषण किया। इसके विपरीत मैक्सिको में आर्थिक विकास के साथ-साथ बहुराष्ट्रीय कंपनियों का घरेलू अर्थव्यवस्था पर भरोसा बना और उन्होंने रकम का पुनर्निवेश किया। स्पष्ट होता है कि भारत से रकम केगैर कानूनी प्रेषण में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का बड़ा हाथ है और यह प्रेषण आर्थिक सुधारों के बाद व्याप्त कुशासन की आड़ में बढ़ रहा है। जाहिर है कि इस प्रेषण को रोकने की कुंजी घरेलू गवनर्ेंस में निहित है।

इस दिशा में कई सुझाव विभिन्न संस्थाओं द्वारा दिए गए हैं। पहला सुझाव है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को विभिन्न देशों में किए गए कारोबार की बैलेंस शीट को सार्वजनिक करने को बाध्य किया जाए। इससे स्पष्ट हो जाएगा कि किन देशों में केवल गैर कानूनी प्रेषण से भारी लाभ दिखाया जा रहा है। इस लाभ की तह में जाकर पहचान की जा सकती है कि किस देश से इस रकम को भेजा गया है। दूसरे, बहुराष्ट्रीय कंपनियों और भारतीय व्यापारियों के द्वारा खरीद और बिक्त्री के मूल्यों की तुलना विश्व बाजार में प्रचलित मूल्यों से की जा सकती है। इससे पता लग जाएगा कि बिल में कहां उलटफेर किया गया है। तीसरे, विभिन्न देशों द्वारा एक दूसरे को सूचना देने के संदर्भ में भारत सरकार द्वारा पहल की जाए। जी-20 देशों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अदा की गई टैक्स की रकम की जानकारी एक-दूसरे को देना स्वीकार किया है। हमें चाहिए कि इस प्रावधान को डब्लूटीओ में लाएं अथवा द्विपक्षीय समझौतों में इसे जोड़ें। मारीशस जैसे देशों में भारतीय कंपनियों द्वारा कितना टैक्स जमा किया गया है, यह जानकारी हमें उपलब्ध हो जाए तो पता लग जाएगा कि किन कंपनियों ने भारत से रकम को बाहर भेजा है।

चौथे, दूसरे देशों के द्वारा कंपनियों के मालिकों की पहचान को सार्वजनिक करने को भारत द्वारा वैश्रि्वक दबाव बनाया जाए। ऐसा करने से भारतीय नागरिकों के द्वारा विदेशों में बनाई गई खोखली कंपनियों का भंडाफोड़ हो जाएगा। पांचवें, एक सीमा से अधिक विदेशी रकम के लेन-देन को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को सूचित करना अनिवार्य बना दिया जाए। वर्तमान में व्यवस्था है कि बैंकों में 50,000 से अधिक जमा कराने पर सूचना बैंकों द्वारा इनकम टैक्स विभाग को भेज दी जाती है। ऐसी व्यवस्था विदेशी लेन-देन पर भी लागू की जानी चाहिए।

चुनाव में भ्रष्टाचार मुख्य मुद्दा है जो स्वागत योग्य है, परंतु दूसरे देशों में भारत से गैर-कानूनी ढंग से भेजी जा रही रकम में इसका हिस्सा छोटा है। पहले मोटी मुर्गी को पकड़ना चाहिए। बहुराष्ट्रीय कंपनियों और खोखली कंपनियों पर नकेल कसी जाए तो अधिक सुधार होगा।

[लेखक डॉ. भरत झुनझुनवाला, आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं]