संवैधानिक उपाय
संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्वों में बाल श्रम के खिलाफ कई विधान किए गए हैं: अनुच्छेद 24: कारखानों आदि में बालकों के नियोजन पर रोक: 14 वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे को कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य खतरनाक काम में नहीं लगाया जाएगा। अनुच्छेद 21 (ए): शि
संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्वों में बाल श्रम के खिलाफ कई विधान किए गए हैं:
अनुच्छेद 24: कारखानों आदि में बालकों के नियोजन पर रोक: 14 वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे को कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य खतरनाक काम में नहीं लगाया जाएगा।
अनुच्छेद 21 (ए): शिक्षा का अधिकार: राज्य छह वर्ष से 14 वर्ष तक की आयु वाले सभी बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने का प्रबंध करेगा।
अनुच्छेद 39 (ई): पुरुष और स्त्री कामगारों के स्वास्थ्य और शक्ति का तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो और आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे रोजगारों में न जाना पड़े जो उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हों
अनुच्छेद 39 (एफ): बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएं दी जाएं और बालकों एवं अल्पवय व्यक्तियों की शोषण से तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा की जाए।
अनुच्छेद 45: बालकों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध: राच्य इस संविधान के प्रारंभ से 10 वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालकों को चौदह वर्ष की आयु पूरी करने तक निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा।
सरकारी प्रयास
बाल श्रम के मसले पर केंद्र और राच्य सरकारें दोनों ही कानून बना सकती हैं। दोनों ही स्तरों पर ऐसे कई विधायी प्रयास किए गए हैं। कुछ महत्वपूर्ण विधानों पर एक नजर:
बाल श्रम (प्रतिषेध और नियमन) एक्ट, 1986: इस एक्ट में 14 साल से कम उम्र के बच्चों को उन 16 पेशों और 65 प्रक्रियाओं में रोजगार पर पाबंदी लगाई गई है, जो बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकते हैं। अक्टूबर, 2006 में सरकार ने घरेलू सेक्टर और सड़क किनारे ढाबों और सरायों में बच्चों के काम करने को भी खतरनाक व्यवसायों की प्रतिबंधित सूची में डाल दिया। सितंबर, 2008 में अत्यधिक ताप या शीत, यांत्रिक ढंग से मछली पकड़ना, गोदाम, पेंसिल उद्योग, पत्थरों की घिसाई जैसे व्यवसायों और प्रक्रियाओं को प्रतिबंधित सूची में डाल दिया।
फैक्ट्रीज एक्ट, 1948: एक्ट 14 साल से कम उम्र के बच्चों के नियोजन पर प्रतिबंध लगाता है। 15-18 साल के किशोर को तभी किसी फैक्टरी में रोजगार मिल सकता है जब वह सक्षम मेडिकल डॉक्टर प्राधिकारी से फिटनेस संबंधी प्रमाणपत्र प्राप्त कर ले। इस एक्ट में 14-18 साल के किशोरों को रोज साढ़े चार घंटे के काम का ही प्रावधान करते हुए उनको रात के घंटों में काम करने से प्रतिबंधित किया गया है
खदान एक्ट (1952): 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खदान में काम करने से प्रतिबंधित करता है। खदान का समुचित ढंग से निरीक्षण करने के बाद 16 वर्ष की आयु से अधिक किशोर को अप्रेंटिस की अनुमति दी जा सकती है।
जुवेनाइल जस्टिस (केयर एवं प्रोटेक्शन) ऑफ चिल्ड्रेन एक्ट, 2000: बच्चों के अधिकारों से संबंधित संयुक्त राष्ट्र समझौते के अनुरूप इस एक्ट में 2002 में संशोधन किया गया। इसके जरिये 18 साल से कम उम्र के किशोरों को सुरक्षा प्रदान की गई है। एक्ट के सेक्शन 26 में कामगार किशोर और बच्चों को शोषण से बचाने के उपाय किए गए हैं। इसके तहत यदि कोई नियोक्ता बच्चे या किशोर को बंधुआ रखते हुए उसकी आय को अपने पास रख लेता है या उसको जोखिम भरे काम में लगाता है तो उस नियोक्ता को तीन साल के कारावास और जुर्माने की सजा हो सकती है। महाराष्ट्र और कर्नाटक में इस प्रावधान का सबसे प्रभावी ढंग से उपयोग करते हुए ऐसे कई लोगों को दंडित किया है जो अन्य एक्ट में बच निकलते थे। बड़ी संख्या में ऐसे बच्चों को सहायता पहुंचाने के साथ पुनर्वास किया गया है।
न्यूनतम मजदूरी एक्ट, 1948:
सभी कर्मचारियों के लिए न्यूनतम मजदूरी का प्रावधान किया गया है। बाल श्रम से लड़ने में बेहद प्रभावी माना गया है।
निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा बच्चों का अधिकार एक्ट, 2009: 6-14 साल के सभी बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया है। इसमें प्रत्येक प्राइवेट स्कूल में 25 प्रतिशत सीटें वंचित तबके और अशक्त बच्चों के लिए आवंटित करने का भी प्रावधान है।
न्यायिक हस्तक्षेप
एमसी मेहता केस (1996):
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राच्य सरकारों को निर्देश देते हुए जोखिम भरे कार्यो और गतिविधियों में काम करने वाले बच्चों की पहचान करते हुए उनको ऐसे कार्यो से मुक्त कराते हुए गुणवत्तापरक शिक्षा उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे। कोर्ट ने बाल श्रम एक्ट का उल्लंघन करने वाले नियोक्ताओं के अंशदान से उनके लिए पुनर्वास से संबंधित कल्याणकारी फंड बनाने का भी निर्देश दिया था।
उन्नीकृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश राच्य (1993): सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी कि 14 साल तक के सभी बच्चों को निशुल्क शिक्षा पाने का अधिकार है। संविधान में शामिल किया गया अनुच्छेद 21(ए) में वह भावना झलकती है।
पहल
इस बार के शीतकालीन सत्र में दिसंबर, 2012 से लंबित बाल श्रम (प्रतिषेध एवं नियमन) संशोधन (सीएलपीआरए) बिल पेश किया जाएगा। इस बिल में पहली बार 14 साल की आयु तक के बच्चों के किसी भी प्रकार के नियोजन पर पाबंदी लगाई गई है। निशुल्क एवं अनिवार्य बच्चों का अधिकार एक्ट, 2009 के साथ तालमेल बिठाने के लिए इस बिल को पेश किया जाएगा। इस बिल में 14-18 साल के किशोरों के जोखिम भरे नियोजन पर पाबंदी का भी प्रावधान किया गया है। यह बिल किशोरों के कार्य करने की दशाओं और आडियो विजुअल इंटरटेनमेंट उद्योग में काम करने वाले बच्चों की दशाओं का नियमन करेगा।
अंतरराष्ट्रीय कानून
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) ने बाल श्रम के खिलाफ प्रमुख रूप से दो कंवेंशन (समझौते)विकसित किए हैं। दुनिया के अधिकांश देशों ने उस पर हस्ताक्षर भी किए हैं:
रोजगार के लिए न्यूनतम आयु, 1973 (कंवेंशन नंबर 138):
इस कंवेंशन को अंगीकार करने वाले देशों ने बाल श्रम को रोकने का कानूनी वादा किया है और सुनिश्चित किया है कि 'न्यूनतम आयु' से कम उम्र के बच्चों को नियोजित नहीं किया जाएगा। 2010 के अंत तक इस कंवेंशन पर आइएलओ के 183 सदस्यों में से 156 ने हस्ताक्षर किए।
बाल श्रम का सबसे खराब स्वरूप, 1999 (कंवेंशन नंबर 182):
इसमें बाल श्रम के सबसे खराब रूप से सुरक्षा के मसले को आपात की स्थिति में रखते हुए तत्काल और प्रभावी उपाय उठाने के लिए कहा गया है। 2010 के अंत तक इस कंवेंशन को 173 देशों ने अंगीकार किया है।
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