डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे से इस कदर चिढ़ा चीन की मीडिया ने इसको बताया एक 'दिखावा'
पिछले दिनों भारत-यूएस के बीच जो समझौते हुए वो चीन को रास नहीं आए। न ही उसे ट्रंप का भारत दौरा रास आया। इसलिए चीनी मीडिया ने इसको लेकर काफी कुछ नकारात्मक छापा।
प्रो. बीआर दीपक। भले ही चीन ने कोविड- 19 के खिलाफ ‘पीपुल वॉर’ छेड़ रखी हो लेकिन मीडिया और विशेषज्ञों ने राष्ट्रपति ट्रंप की भारत यात्रा पर काफी ध्यान दिया है। चीन की शिन्हुआ न्यूज एजेंसी ने इसे ‘वास्तविकता से ज्यादा दिखावा’ और ‘कुछ भी नहीं के बारे में बहुत कुछ’ से संबोधित किया है। कुछ चीनी विद्वानों का कहना है कि ट्रंप ने भारत की प्राथमिकता को स्वीकार नहीं किया है। चीनी विश्लेषकों का कहना है कि यह यात्रा अमेरिकी चुनाव के कारण हुई जिसमें 40 लाख भारतीय मूल के मतदाता कुछ अंतर कर सकें।
दूसरी ओर, चीन का यह मानना है कि ट्रंप भारत से ‘कम देने और ज्यादा लेने’ में सफल रहे हैं और यह कई क्षेत्रों में दिखता है। साथ ही विश्लेषकों का तर्क है कि ट्रंप की भारत यात्रा का मुख्य उद्देश्य हथियार बेचना था। 3 अरब डॉलर (214 अरब रुपये) के सौदे को लेकर ट्रंप ने कहा, ‘सौदा भारत को कुछ सर्वोत्तम और सबसे अधिक भयभीत सैन्य उपकरण प्रदान करेगा’, यह चीन के साथ अच्छा नहीं हुआ है। टेनसेंट द्वारा प्रकाशित एक हिस्सा कहता है, ‘यह कहना कि अमेरिका निर्मित हेलीकॉप्टर दुनिया में सबसे अच्छे नहीं हैं, यह थोड़ा अनुचित है। वहीं यह कहना कि वे सबसे ज्यादा डरावने हैं यह बात पूरी तरह से बकवास है, क्योंकि इन सभी सामरिक हथियारों का किसी भी युद्ध के मैदान में महत्व नहीं है।
तीसरा, चीनी विश्लेषक मानते हैं कि जहां तक व्यापार का संबंध है, भारत और अमेरिका के मध्य रचनात्मक विरोधाभास हैं। भले ही दोस्ती के बारे में इतना प्रचार हो, लेकिन दोनों एक सीमित व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने में विफल रहे हैं। जहां तक व्यापार युद्ध का सवाल है, ट्रंप ने भारत को भी नहीं छोड़ा और देश पर ‘टैरिफ किंग’ के रूप में उच्चतम टैरिफ होने का आरोप लगाया है। इन सबके बावजूद कुछ विश्लेषकों की दलील है भारत के आर्थिक विकास को दृष्टि में रखते हुए भारत-अमेरिका परस्पर आर्थिक और व्यापारिक रिश्तों को सामान्य रखने पर चाहेंगे।
चौथा, चीन को जिस चीज ने सबसे ज्यादा चिंतित किया है वह है भारत-प्रशांत रणनीति और ब्लू डॉट इनिशिएटिव है। ब्लू डॉट इनिशिएटिव का उद्देश्य सरकारों, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज को एक साथ लाना है, ताकि चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के जवाब में वैश्विक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए उच्च गुणवत्ता, विश्वसनीय मानकों को बढ़ावा दिया जा सके।
चीनी विद्वानों ने रणनीति के मुख्य आधार के रूप में अमेरिका-जापान- भारत-ऑस्ट्रेलिया चतुष्कोण का उच्चारण शुरू कर दिया है। ऐसे लोग भी हैं जो मानते हैं कि भारत अमेरिका के मोहरे के रूप में कार्य नहीं करेगा। मोदी जानते हैं कि संकट की घड़ी में 2017 डोकलाम विवाद के समय जैसे पश्चिम ने कोई ठोस मदद नहीं की है। एनएसजी में भारत के प्रवेश और हक्कानी नेटवर्क और टीटीपी को आतंकी सूची में शामिल करने पर अमेरिका के समर्थन पर चीनी टिप्पणीकार मौन हैं।
(लेखक सेंटर फॉर चाइनीज एंड साउथईस्ट एशियन स्टडीज, जेएनयू के चेयरपर्सन हैं)
ये भी पढ़ें:-
तालिबान-अमेरिका समझौते से सबसे अधिक भयभीत हैं अफगान महिलाएं
अफगानिस्तान पर तालिबान-अमेरिका समझौता बना है भारत की चिंता और डर का सबब