संस्था

चुनाव आयोग। सबसे बड़े लोकतंत्र की हर चुनावी प्रक्रिया का चौकीदार। आज अगर चुनाव का स्वतंत्र और निष्पक्ष होना संभव हो पाया है, हर मतदाता बिना किसी दबाव के अपने मताधिकार का विवेकपूर्ण इस्तेमाल करना सुनिश्चित कर सका है, तो वह चुनाव आयोग के दम पर ही संभव हो सका है। चुनाव के दौरान इस संस्था की शक्तियां ही इसे अपने दायित्व को निभाने में मददगार होती हैं। लिहाजा लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के पदों का निर्वाचन कराना इसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं। चुनाव की तिथि और कार्यक्रम तय करना, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण मतदान कराना, निर्वाचन के लिए आदर्श आचार संहिता तय करना, उम्मीदवारों की दावेदारी की जांच कर उन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति देना, मतगणना कराना और नतीजों की घोषणा करना जैसे लोकतंत्र को मजबूत करने वाले अहम कार्य इसके अधीन हैं।

सोच

हर बार चुनाव के दौरान राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी एक दूसरे पर जमकर कीचड़ उछालते हैं। अहम मसले गौण हो जाते हैं। येन केन प्रकारेण चुनाव जीतने की लालसा में निजी जीवन पर हमले के अलावा जन भावनाओं को भड़काने से भी परहेज नहीं किया जाता है। इस दौरान लागू आदर्श आचार संहिता की धज्जियां उड़ाई जाती हैं। इस आचार संहिता के अनुपालन की जिम्मेदारी आयोग की होती है। 16वीं लोकसभा के चुनाव में हमारे राजनेताओं द्वारा ये सभी अनियमितताएं बरती जा रही हैं। ऐसा नहीं है कि आयोग आंख मूंदे पड़ा है। हाल ही में अमित शाह और आजम खान के खिलाफ कड़े कदम उठाकर उसने अपनी ताकत का अहसास करा दिया है, लेकिन इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि कई मामलों में आयोग ने सिर्फ जवाब-तलब या चेतावनी भर देकर अपने दायित्व की इतिश्री कर ली है।

सीख

हर चुनाव में कसौटी पर सिर्फ राजनीतिक दल और मतदाता ही नहीं बल्कि चुनाव आयोग भी होता है। आयोग की भूमिका वोट प्रतिशत बढ़ाने से भी कहीं ज्यादा आगे जाती है। किसी क्षेत्र का चुनाव रद करने, पार्टी का चुनाव चिह्न निरस्त करने और उम्मीदवारों की दावेदारी निरस्त करने जैसे अधिकारों के साथ क्या चुनाव आयोग राजनीतिकों को ऐसे सबक सिखाने में सक्षम है कि आचार संहिता का उल्लंघन तो दूर लोग उसके बारे में सोचने की तौबा कर लें। क्या इसकी अपनी कोई इंफोर्समेंट या प्रॉसीक्यूशन एजेंसी जैसी बाहें होनी चाहिए जो आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों को सबक सिखाने में वक्त की कमखर्ची में मददगार हों। ऐसे में चुनाव आयोग द्वारा अपने अधिकारों के इस्तेमाल द्वारा आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों पर पूर्णत: रोक लगाकर चुनावों को स्वतंत्र और निष्पक्ष कराने की अपेक्षा आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

जनमत

क्या केंद्रीय चुनाव आयोग आपकी कसौटियों पर खरा उतरता है?

हां 30 फीसद

नहीं 70 फीसद

क्या केंद्रीय चुनाव आयोग वास्तविक सख्त रुख कायम कर सका है?

हां 34 फीसद

नहीं 66 फीसद

आपकी आवाज

चुनाव आयोग को आचार संहिता के उल्लंघन में सख्त रवैया अपनाना चाहिए। आयोग को प्रत्याशी की हर शिकायत पर सख्ती करनी चाहिए।

- अनुराग शर्मा

चुनाव आयोग चुनाव के समय बहुत कुछ संभालता है, हमें उसका सम्मान करना चाहिए। - सुधांशु सिंह

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के निष्पक्ष चुनाव किसी के लिए भी एक बहुत बड़ी चुनौती है, जिसमें आयोग सभी कसौटियों पर खरा उतरा है।

- मनीषा श्रीवास्तव

कई राजनेताओं के बार-बार विवादास्पद बयान देने के बाद भी चुनाव आयोग सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ देता है। ऐसा लगता है कि राजनीतिक दबाव के चलते चुनाव आयोग सख्ती नहीं दिखा पाता।

- योगेश.शर्मा827एटजीमेल.कॉम

चुनाव आयोग सख्त रुख कैसे कायम करे, क्योंकि उसके पास सख्त रुख अपनाने के हथियार ही नहीं है। आयोग की हालत युद्ध में बगैर तीर-कमान के यौद्धा जैसी है। चुनाव आयोग, चुनाव कराने की मशीनरी मात्र है।

- सागरबजमीएटजीमेल.कॉम

केंद्रीय चुनाव आयोग जिस कुशलता और

निष्पक्षता से चुनाव सम्पन्न करवाता है उसके लिए यह बधाई का पात्र है फिर भी समान आचार

संहिता न लागू होने और आचार संहिता के उल्लंघन से सम्बन्धित मामलों में इसे और प्रभावी बनाने की आवश्यकता है

- करणमयंककुमारएटजीमेल.कॉम

चुनाव आयोग को सख्ती के साथ हर पहलू को देखना चाहिए, क्योंकि आयोग की लापरवाही चुनाव पर खासा प्रभाव डालती है।

- रितुलउपाध्याय654एटजीमेल.कॉम