अमेरिका में नरेंद्र मोदी को लेकर उत्साह और उम्मीद बरकरार है। रविवार दोपहर बाद पश्चिमी समुद्र तट पर मैडिसन स्क्वायर जैसा माहौल था। पूर्वी तट से पश्चिमी समुद्री तट तक प्रवासी भारतीयों की भीड़ अभूतपूर्व ढंग से खुशी में चिल्ला रही थी। मंच पर सात सबसे बड़ी आइटी कंपनियों के सीईओ थे। यह न्यूयार्क में पिछले साल मंच पर मोदी के साथ लगभग एक दर्जन सांसदों और सीनेटरों के मौजूद होने से शायद बड़ी घटना थी। जैसा कि मैंने कई मौकों पर लिखा है, इन सीईओ को अपने साथ ले आना भारत-अमेरिका रिश्तों को बेहतर करने में प्रमुख बात है। यह मोदी के हक में है कि उन्होंने डिजिटल इंडिया फोरम में बोलने के दौरान भारत में 'डिजिटल विभाजन' की गहरी खाई को दूर करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। जनधन योजना, आधार और मोबाइल (जैम) के जरिये शासन की योजनाओं की सबको दी जाने वाली जानकारी की उनकी रणनीति और समावेशी विकास हासिल करने के लिए यह बड़ा कदम होगा।

वैसे, जैसी कि अपेक्षा थी, मोदी के देश से बाहर अत्यधिक समय बिताने को लेकर बेवजह की नुक्ताचीनी और आलोचना भी हो रही है। इस तरह की आलोचना करते हुए हाल में दो पूर्व मंत्रियों को सुनकर और एक प्रमुख टिप्पणीकार को अखबार में पढ़कर मुझे काफी अचंभा हुआ। आलोचना आम तौर पर घरेलू सुधारों, शासन के मुद्दों पर महत्वपूर्ण पहलुओं को सुलझाने और विपक्षी दलों के साथ रिश्ते सुधारने पर ज्यादा ध्यान देने की सलाह के साथ होती है। वैसे यह आलोचना चाहे जितनी भी उचित लगती हो, वस्तुत: यह अदूरदर्शी और अनुपयुक्त है।

मोदी के विदेश दौरों का एक कारण विदेशी निवेशकों को भारत की तरफ आकर्षित करना है। यह एक ऐसा काम है जिसमें उन्हें तब से महारत हासिल है जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे, लेकिन वे जहां भी गए वहां उन्होंने प्रवासी भारतीयों में उत्साह भरने का विशेष प्रयत्न किया है। इसके लिए मोदी ने वहां रह रहे लोगों से बातचीत की, उनकी बातों को ध्यान से सुना, न कि इनका सिर्फ फोटो खिंचाने के अवसर की तरह उपयोग किया। भाजपा महासचिवों में पढ़े-लिखे लोगों में से एक राम माधव को इस काम का जिम्मा व्यक्तिगत तौर पर सौंपा गया है। उन्हें यह जिम्मा सौंपे जाने का निहितार्थ यही है कि मोदी द्वारा प्रवासियों को दी जा रही तवज्जो को आरएसएस का समर्थन प्राप्त है। प्रवासी भारतीयों पर दिया जा रहा यह जोर मेरे विचार से, उस संभावित आलोचना को पहले से ही रोकने और मोडऩे के लिए है जो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के खिलाफ अपनी ही पार्टी के अंदर स्वदेशी खेमे, संघ परिवार के अन्य घटकों और विभिन्न समाजवादियों तथा वामपंथियों की तरफ से उठ सकती है। इन लोगों को इंडिया इंक के एक खेमे का मौन समर्थन होता है जो भारत को विदेशी निवेशकों से दूर रखने के ख्वाहिशमंद हैं। याद कीजिए, अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते वक्त इस तरह की स्वदेश से प्रेरित आलोचना किस तरह तीव्र और कटु थी। इससे उन्हें काफी परेशानी उठानी पड़ी थी।

मोदी इस संभावित विस्फोटक स्थिति से पूरी तरह अवगत हैं और इसे पहले से ही रोकने के लिए उन्होंने प्रवासी भारतीय कार्ड का उपयोग किया है। मोदी ने स्वदेशी खेमे को खासे प्रभावी ढंग से दिखाया है कि वर्तमान वैश्विक दुनिया में हमारे अपने परिचित और संबंधी अपने व्यवसायों में इतने बेहतर ढंग से सफल हो रहे हैं कि एफडीआइ और घरेलू निवेश के बीच अंतर वास्तव में कृत्रिम ही है। बहुआयामी और जटिल संबंधों के कारण भारतीय निवेशकों और व्यवसायियों के बीच पारस्परिक तालमेल और जुड़ाव बेहतर होता है। प्रवासी भारतीय वर्तमान दुनिया की वास्तविकताओं को सच्चे ढंग से प्रतिबिंबित करते हैं। अपने साथ एक ही मंच पर सत्या नडेला (माइक्रोसॉफ्ट), सुंदर पिचाई (गूगल), इंदिरा नूई (पेप्सिको), शांतनु नराराया (एडोब), अजय बंगा (मास्टरकार्ड) जैसे वैश्विक कॉरपोरेट महारथियों को एक साथ लाकर मोदी ने सुनिश्चित किया है कि अगर स्वदेशी खेमा इन प्रवासी भारतीयों द्वारा लाए जाने वाले एफडीआइ के विरोध का फैसला करेगा तो वह भारत के अंदर ही अभद्र और संकीर्ण सोच वाला बन जाएगा।

यह महत्वपूर्ण है कि मोदी स्वदेशी खेमे के एक तरह से अनजान भय को दूर करने के प्रयास में सफल रहे, क्योंकि इनकी तरफ से विकास के एजेंडे को पटरी से उतारने की पर्याप्त संभावना है। दूसरी तरफ सुंदर पिचाई के नेतृत्व वाले गूगल और भारतीय रेलवे के बीच 500 स्टेशनों पर वाइफाइ लगाने पर काम करने की घोषणा 95 करोड़ मोबाइल फोन उपभोक्ताओं में निश्चित रूप से उत्साह भरेगी। इन उपभोक्ताओं में से काफी लोग युवा और आय के मामले में काफी निचले पायदान पर हैं। वास्तव में देखा जाए तो मोदी के विदेशी दौरों का एजेंडा घरेलू है।

घरेलू निवेशकों के बीच वर्तमान निराशा के माहौल को बदलने के लिए बड़े पैमाने पर एफडीआइ आकर्षित करना और इनमें भी कुछ बड़े नाम का होना मोदी और देश, दोनों की जरूरत है। घरेलू कंपनियों की एक बड़ी संख्या ऐसी है जिनकी बैलेंस शीट अच्छी हालत में नहीं है। इनमें आधारभूत क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियां प्रमुख हैं। वे नई क्षमता के साथ निवेश में सक्षम नहीं हैं। उनकी समस्याओं को दूर करने में समय लगेगा, क्योंकि इसमें ऊर्जा, राजमार्गों और बंदरगाह आदि के क्षेत्र शामिल है। ये परियोजनाएं रुकी हुई हैं और इनमें पूंजी आने की गति में रुकावट बदस्तूर जारी है। इसी तरह खपत और निवेश मांग, दोनों बढ़ाने के लिए सरकार की तरफ से तरलता बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को बेहतर स्थिति में लाने के लिए राजकोषीय स्थिति अधिक अनुमति नहीं देती। आखिरकार, व्यवसाय करने के लिए बेहतर स्थिति लाने के लिए उठाए जाने वाले कदम अपेक्षा के अनुरूप कुछ और समय लेंगे, क्योंकि राज्यों को भी साथ लाना होगा और दशकों पुरानी आदतों और सोच के तरीकों में बदलाव की जरूरत होगी। जैसा कि फेसबुक टाउनहॉल बैठक में मोदी ने कहा भी कि भारत एक बड़ा मोड़ लेकर चलने वाली रेलगाड़ी है, न कि स्कूटर जिसे तुरंत घुमाया जा सके।

जाहिर है, इस समय मोदी के विदेशी दौरों को लेकर किसी तरह की आलोचना उचित नहीं है। वह घरेलू नीति में सुधारों पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता से भलीभांति वाकिफ हैं, लेकिन वह यह भी जानते हैं कि इन सुधारों को लागू करने से पहले उन्हें इनके संभावित विरोधों को शांत अथवा खत्म करना होगा। हमने तो स्पष्ट रूप से भारत में देख ही लिया है कि लोकसभा में स्पष्ट बहुमत होने के बावजूद यह नहीं माना जा सकता कि सारे काम आराम से हो सकते हैं। सरकार को इसके लिए पारस्परिक तालमेल बनाने के साथ ही विरोधी तत्वों को दूर रखने के लिए निरंतर सजग-सतर्क रहना होगा और हरसंभव कोशिश करनी होगी।

[लेखक राजीव कुमार, सेंटर फार पालिसी रिसर्च में सीनियर फेलो हैं]