राजीव, दुमका

झारखंड की दुमका संसदीय सीट पर इस बार सूरमाओं की भिड़ंत है। दो क्षेत्रीय छत्रप झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन व झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी के लिए ये सीट आन-बान की लड़ाई बन गई है। सूबे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी पिता की जीत सुनिश्चित करने के लिए यहां सबसे ज्यादा समय दे रहे हैं। झारखंड चुनाव के अंतिम चरण में 24 अप्रैल को यहां मतदान होना है। लेकिन मुख्यमंत्री बनाम बाबूलाल मरांडी के तीखे बोल ने यहां के सियासी तापमान को सातवें आसमान पर चढ़ा दिया है।

दरअसल 1998 के बाद यह पहला मौका होगा जब शिबू सोरेन के सामने बाबूलाल मरांडी हैं। अपने चुनावी भाषण में बाबूलाल झामुमो पर सीधा वार करते हुए हेमंत सोरेन सरकार पर बाहरी कंपनी को बालू का ठेका देने समेत भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का आरोप लगा रहे हैं। हेमंत सरकार पर अल्पसंख्यकों को धोखा देने व धन बल से चुनाव जीतने का आरोप भी वे लगाते हैं। उनके निशाने पर संप्रग, भाजपा भी हैं लेकिन सबसे ज्यादा वार झामुमो पर ही करते हैं। शिबू सोरेन पर परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए वे जनता से वोट की अपील कर रहे हैं।

इन आरोपों पर पलटवार करते हुए मुख्यमंत्री ने बाबूलाल को बहुरूपिया व रणछोड़ बताया है। कहा, झाविमो राज्यसभा के चुनाव में वोट का बहिष्कार करता है और लोकसभा चुनाव में पार्टी के नेता जनता की अदालत में वोट मांगते हैं। वोट का बहिष्कार करने वाले बाबूलाल व नक्सली संगठनों में कोई अंतर नहीं है। वे भाजपा की बी-टीम की तरह काम करते हैं। इससे पहले शिबू व बाबूलाल 1991 में आमने-सामने थे और भाजपा नेता बाबूलाल को शिबू ने करारी शिकस्त दी थी। 1996 में दोनों फिर सामने आए और बाबूलाल को फिर हार का मुंह देखना पड़ा लेकिन अंतर कुछ कम हो गया। दो साल बार 1998 के चुनाव में बाबूलाल ने साढ़े 12 हजार वोटों से शिबू को पटखनी दी। एक साल बार 1999 में फिर बाबूलाल ने शिबू की पत्नी रुपी सोरेन किस्कू को हराया। कुछ साल बाद उन्होंने खुद की पार्टी बनाई और फिर झामुमो सुप्रीमो को ललकारने आ गए।

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