चीन की 23 नवंबर को नए वायु रक्षा क्षेत्र की घोषणा इस बात का हालिया उदाहरण है कि एशिया में वह अपने अधिकार-क्षेत्र का धीमे-धीमे विस्तार कर रहा है। चीन के नए वायु रक्षा क्षेत्र का जापान के लिए वही मतलब है जो अप्रैल में चीनी सेना के लद्दाख में 19 किलोमीटर घुस आने का भारत के लिए था। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासन ने चीन की हालिया आक्रामकता की संभलकर आलोचना की है किंतु उसके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की। यहां तक की उप राष्ट्रपति जो बिडेन का बीजिंग दौरा टालना भी गवारा नहीं किया। इससे भी बदतर यह हुआ कि अमेरिका ने अमेरिकी एयरलाइनों को चीन के नए रक्षा वायु क्षेत्र के संबंध में एडवाइजरी जारी करते हुए उड़ान से पहले चीन को सूचित करने को कहा। इस प्रकार अमेरिका की अपने सहयोगी जापान के साथ संबंधों में दरार पड़ गई है। यह दरार ऐसे समय पड़ी जब चीन की आक्रामकता के खिलाफ संयुक्त मोर्चा खोलने की सबसे अधिक जरूरत थी। हालांकि जापान ने अपनी एयरलाइनों को चीन के नए वायु रक्षा क्षेत्र का पालन न करने को कहा है।

दांव पर पूर्वी चीन सागर के छोटे द्वीप ही नहीं लगे हैं बल्कि क्षेत्रीय सत्ता संतुलन भी लगा हुआ है। यह एक नियम आधारित व्यवस्था है जो समुद्र और हवाई क्षेत्रों में परिवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करती है। साथ ही सामुद्रिक संसाधनों तक पहुंच भी कायम करती है। अगर चीन का इस क्षेत्र पर अधिकार हो जाता है तो चीन केंद्रित एशिया का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। जैसे-जैसे चीन की आर्थिक और सैन्य शक्ति बढ़ रही है वह विभिन्न देशों के साथ अपने विवादित भूभागीय क्षेत्रों पर जबरन कब्जा जमाने की कोशिश कर रहा है। बेकाबू चीन एशिया में भूक्षेत्र और समुद्री सीमा का विस्तार औचक कार्रवाइयों के बल पर कर रहा है, जो इसे इसके पड़ोसी देशों से अलग-थलग कर रही है और चीन के शांतिपूर्ण उदय के दावे पर सवाल खड़े कर रही है।

पड़ोसी सीमाओं में चीन का बढ़ता अतिक्त्रमण पीपल्स लिबरेशन आर्मी के जनरल झांग झाओझोंग की बंदगोभी रणनीति के आधार पर हो रहा है। इसमें पहले विवादित क्षेत्र पर दावा किया जाता है, फिर औचक घुसपैठ की जाती है और इसके बाद बंदगोभी की तर्ज पर सुरक्षा की बहुपरतें कायम कर विरोधी को वहां पहुंचने से रोक दिया जाता है। यह रणनीति विरोधी देशों की प्रतिरक्षात्मक योजनाओं को ध्वस्त करके उनके लिए प्रभावी जवाबी हमला कठिन बना देती है। चीन ने वायु रक्षा क्षेत्र में विस्तार का समय ऐसा चुना है जब जिनेवा में अंतरिम ईरान परमाणु करार पर चर्चा गरम थी। चीन ने अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय जगत का ध्यान बंटने का फायदा उठाया। सही समय पर और औचक कार्रवाई चीन के सामरिक सिद्धांत के प्रमुख तत्व हैं।

चीन की कार्रवाई ओबामा के लिए सही नसीहत है कि उन्हें पश्चिम एशिया से ध्यान हटाकर पूर्वी एशिया में विस्फोटक होते हालात पर केंद्रित करना चाहिए। आखिरकार अगर ओबामा की एशिया की धुरी काल्पनिक न होकर वास्तविक है तो उन्हें अमेरिकी नेतृत्व का जलवा बरकरार रखना होगा और चीन की दबगंई पर अंकुश लगाकर सहयोगियों को आश्वस्त करना होगा। दुर्भाग्य से ओबामा एशिया में चीन की आक्त्रामकता पर लगाम कसने के बजाय अमेरिका के संबंधों को संतुलित रखने का प्रयास कर रहे हैं। अमेरिका की एशिया नीति चीन, जो अब अमेरिका का आर्थिक और सामरिक हितों का केंद्र बिंदु बन गया है, समेत प्रमुख एशियाई देशों के साथ संबंध सुधारने पर केंद्रित है। अमेरिका सीमा विवाद पर तटस्थता की नीति अपना रहा है। चीन द्वारा शुरू किए गए हालिया भूराजनीातिक संकट में वाशिंगटन जापान को भी संयम से काम लेने की नसीहत दे रहा है, ताकि टकराव की स्थिति में किसी एक का पक्ष लेकर दूसरे को नाराज करने की नौबत न आए। इसमें अमेरिकी नीति निहित है कि चीन के उदय पर अंकुश लगाए बिना उसे अनुकूल बनाए रखे। ओबामा प्रशासन का चीन को सीधे चुनौती न देने का रवैया ही उसकी दबंगई को बढ़ा रहा है।

चीन अनेक पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद में उलझा हुआ है। भारत के साथ उसका सीमा विवाद जगजाहिर है। फिलीपींस को स्कारबोरो शोआल और सेकंड थॉमस शोआल पर प्रभावी नियंत्रण हासिल करने से वह रोक चुका है। वियतनाम के साथ उसका समुद्री सीमा को लेकर विवाद जारी है। नए वायु रक्षा क्षेत्र में चीन ने दक्षिण कोरिया के कब्जे वाले लियोडो टापू को भी शामिल कर लिया है, जिसे बीजिंग सुयान रॉक कहता है। चीन ने नए वायु रक्षा क्षेत्र से जापान और कोरिया के नियंत्रण वाले क्षेत्रों पर भी अपना दावा मजबूत कर लिया है। इससे चीन-जापान टकराव का खतरा बढ़ गया है। नए वायु रक्षा क्षेत्र से गुजरने वाले हवाई जहाजों को नए चीनी नियमों का पालन करना होगा, जो आसान नहीं है क्योंकि चीन के पास जल्द चेतावनी देने वाले राडार और अन्य उपकरणों की कमी है। इसीलिए जापान ने चीन के निर्देशों को मानने से इन्कार कर दिया है।

कदम-कदम बढ़ाने की नीति के चलते बीजिंग की नए वायु रक्षा क्षेत्र को तुरंत लागू करने की कोई मंशा नहीं है। नए रक्षा क्षेत्र को चीन बाद में तब लागू करेगा जब हालात अधिक अनुकूल होंगे। अभी तक चीनी नेताओं की वरीयता इस खतरनाक खेल को धीमे-धीमे आगे बढ़ाना है। अगर चीन अंतरराष्ट्रीय आलोचना के बावजूद इस वायु क्षेत्र को लागू करने में कामयाब हो गया तो दक्षिण चीन सागर में भी इसी प्रकार का वायु रक्षा क्षेत्र लागू करने के लिए उसका हौसला बढ़ जाएगा। इस क्षेत्र में 80 प्रतिशत इलाके पर चीन अपना औपचारिक दावा जताता है। चीन सरकार के एक प्रवक्ता ने घोषणा कर दी है कि तैयारियां पूरी होते ही चीन इसी प्रकार के और भी वायु रक्षा क्षेत्र स्थापित करेगा।

इस आलोक में अमेरिका के लिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि एशिया में चीन के सीमा विस्तार पर अभी अंकुश लगा दिया जाए। अन्यथा चीन पूर्वी और दक्षिण चीन सागर में भी इसी प्रकार अपने वायु क्षेत्र का विस्तार करता रहेगा। इसके अलावा वह भारत के भीतर घुसपैठ करने और चीन से निकल कर अन्य देशों में बहने वाली एशिया की प्रमुख नदियों का रुख मोड़ने जैसी हरकतों से बाज नहीं आएगा। दरअसल, चीन एक पुरानी कहावत पर अमल कर रहा है- छल से बिना जंग के ही दुश्मन को परास्त कर दो और हमले को सुरक्षा के रूप में दशाओ। अमेरिका के सम्मिलित प्रयासों के बिना पूर्वी चीन सागर में चीन की आक्रामकता पर अंकुश लगाना संभव नहीं होगा। अगर चीन की दबंगई नहीं रोकी गई तो वह परत-दर-परत दूसरे देशों के भूभाग को अपने अधिकार क्षेत्र में शामिल करता चला जाएगा।

[लेखक ब्रह्मा चेलानी, सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं]

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