खोखली बातों का जाल
न्यूयार्क स्थित भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागडे के खिलाफ मुकदमे की प्रक्रिया जारी रखने का अमेरिकी प्रशासन का फैसला कतई आश्चर्यजनक नहीं है-खासकर यह देखते हुए कि भारत ने उनके साथ हुए दुर्व्यवहार के संदर्भ में वाशिंगटन पर कोई असली सख्ती नहीं दिखाई। अमेरिका का यह खुलासा तो देवयानी के साथ हुए दुर्व्यवहार से बड़ा तमाचा है कि उसने देवयानी की नौकरानी के तीन परिजनों को भारत में संभावित मुकदमे से बचाने के लिए सुरक्षित निकाल लिया था। अमेरिका ने देवयानी की गिरफ्तारी के दो दिन पहले ही नौकरानी के पति और दो बच्चों को टी (ट्रैफिकिंग) वीजा पर भारत से निकाल लिया। इससे कम आश्चर्यजनक नहीं है यह तथ्य सामने आना कि हाल के वषरें में किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक संख्या में भारतीयों को टी वीजा पर अमेरिका ने अपने देश बुलाया है।
इस अमेरिकी अपमान के सामने भारत का जवाब क्या रहा? बड़ी-बड़ी बातों के जाल में मत फंसिये। भारत की एकमात्र प्रतिक्रिया यह रही है कि उसने अमेरिकी राजनयिकों और उनके परिजनों को दी गई एकतरफा रियायतें और सहूलियतें वापस ले ली हैं। क्या यह सवाल नहीं उठना चाहिए कि अभी तक अमेरिकी राजनयिकों और कांसुलर स्टाफ के साथ बराबरी का व्यवहार क्यों नहीं किया जाता रहा? क्या दरियादिली के तहत दी गई रियायतों को वापस लेना जवाबी कूटनीतिक कार्रवाई मानी जा सकती है?
सच्चाई यह है कि भारत का कथित जवाब कोई कार्रवाई नहीं है। भारत ने ऐसा एक भी कदम नहीं उठाया जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि अमेरिका ने जो किया है उसकी कीमत उसे चुकानी होगी। इसके विपरीत भारत ने ठीक उल्टा काम करते हुए अमेरिका को एक नए बड़े हथियार सौदे के साथ पुरस्कृत कर दिया। कूटनीतिक विवाद जब अपने चरम पर था तब भारत ने छह अतिरिक्त सी-130 जे सुपर हरक्युलिस एयरक्राफ्ट की आपूर्ति के लिए अमेरिका को एक अरब अमेरिकी डालर से अधिक के सौदे का तोहफा दे डाला। इतना ही नहीं, भारत ने अपनी नाराजगी को सही आकार देने की भी कोशिश नहीं की। अमेरिका से औपचारिक माफी की भारत की मांग भी अनसुनी कर दी गई। नई दिल्ली अपने नए राजदूत को तब तक वाशिंगटन में कार्यभार ग्रहण करने से भी नहीं रोक सकी जब तक अमेरिका अपने रवैये में सुधार के संकेत नहीं देता। देवयानी खोबरागडे के साथ हुए दुर्व्यवहार और अपमान ने अनेक ऐसे मुद्दे खड़े कर दिए हैं जो भारत और अमेरिका के संबंधों के दायरे से परे हैं। मुख्य मुद्दा यह है कि अमेरिका स्थित कासुंलर अधिकारियों के साथ अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों के तहत सभ्यता वाला व्यवहार किया जाएगा या नहीं? क्या हमारे राजनयिक इसी तरह हथकड़ी लगाकर गिरफ्तार किए जाते रहेंगे, उनकी कपड़े उतारकर तलाशी होती रहेगी, उन्हें शातिर अपराधियों के साथ जेल में बंद किया जाता रहेगा? किसी आपराधिक आरोप से घिरे राजनयिक के खिलाफ संबंधित देश के कानून के तहत कार्रवाई एक बात है और कार्रवाई के नाम पर उन्हें अपमानित-उत्पीड़ित करना अलग बात, जैसा कि अमेरिका ने देवयानी खोबरागडे के मामले में किया। अमेरिका ने देवयानी के मामले में 1963 की वियना संधि का स्पष्ट रूप से उल्लंघन किया।
देवयानी के साथ जो बर्ताव हुआ उसे किसी भी तरह सामान्य नहीं कहा जा सकता, जैसा कि अमेरिकी अधिकारी और वहां का मीडिया दावा कर रहा है। अमेरिका इसी तरह का काम चीन अथवा रूस के किसी राजनयिक के साथ नहीं कर सकता था, क्योंकि तब उसे अपने कदम की भारी कीमत चुकानी पड़ती। रूस और चीन का जवाब कड़ा और स्पष्ट होता। सच्चाई यह है कि भारतीय राजनयिक की गिरफ्तारी से महज एक सप्ताह पहले एक दागी अभियोजक प्रीत भरारा ने रूस के 49 पूर्व और वर्तमान राजनयिकों और उनके परिजनों के खिलाफ 15 लाख अमेरिकी डालर की धोखाधड़ी के संदर्भ में आरोप लगाए, लेकिन उनमें से किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई-कपड़े उतारकर तलाशी लेना और हथकड़ी के साथ गिरफ्तारी तो बहुत दूर की बात है। इन आरोपों का सामना करने वाले लोगों में से अनेक अभी भी न्यूयार्क स्थित रूसी कांसुलेट अथवा संयुक्त राष्ट्र में रूसी मिशन में काम कर रहे हैं। अमेरिका के पास देवयानी की गिरफ्तारी का कोई विधिक आधार नहीं था, क्योंकि उन पर जो आरोप लगाया गया यानी कि वह अपनी एक कर्मचारी को उचित वेतन नहीं दे रही थीं, राजनयिक संबंधों के संदर्भ में वियना संधि के तहत गंभीर अपराध की श्रेणी में नहीं आता। असली मुद्दा राजनयिक छूट का नहीं, बल्कि दुर्व्यवहार का है। यह दुर्व्यवहार गिरफ्तारी से लेकर तलाशी, हथकड़ी लगाने तक नजर आता है।
देवयानी के साथ खतरनाक अपराधी की तरह व्यवहार करने के बजाय अमेरिका ने भारत से उन्हें वापस बुला लेने के लिए क्यों नहीं कहा? विदेशी राजनयिक के साथ कैसे बर्ताव किया जाना चाहिए, यह भारत ने हाल में मुंबई स्थित बहरीनी कांसुलर अधिकारी के मामले में दिखाया। बहरीन के राजनयिक पर एक लड़की के साथ छेड़छाड़ का आरोप था, लेकिन उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया, बल्कि जल्दी से जल्दी भारत से चले जाने के लिए कहा गया। आखिरकार इसमें संदेह था कि उन पर लगा आरोप उनकी गिरफ्तारी के लिए वीसीसीआर के तहत गंभीर अपराध की कसौटी पार कर सकेगा। एक सवाल बहुत कम लोग पूछ रहे हैं कि भारत ने अपनी तरफ से अमेरिकी राजनयिक को विशेष छूट, सुविधाएं और रियायतें दी ही क्यों थीं? भारतीय अधिकारियों को ऐसे ही एक नहीं अनेक सवालों का जवाब देना होगा। अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों को ऐसे विशेष एयरपोर्ट पास क्यों दिए गए जिनमें व्यक्तिगत पहचान संबंधी कोई विवरण नहीं था। इस सुविधा के चलते अमेरिकी दूतावास अधिकारियों को दिए गए पास का इस्तेमाल अन्य राजनयिक और कांसुलर अधिकारी आसानी से कर लेते थे। भारत की दरियादिली का आलम तो यह है कि अमेरिकी कांसुलर अधिकारियों के परिजनों तक को भारतीय पहचान पत्र दे दिए जाते हैं जिससे वे कुछ ऐसी सहूलियतें हासिल कर लेते हैं जिनके वे हकदार नहीं हैं। पिछले वषरें में भारत सरकार की ओर से यह जांचने के कोई प्रयास नहीं किए गए कि भारत में चल रहे अमेरिकी स्कूलों और अन्य अमेरिकी सरकारी प्रतिष्ठानों में काम करने लोगों को भारत की अनुमति मिली हुई है या नहीं और क्या वे भारतीय कानून के तहत करों का भुगतान कर रहे हैं या नहीं?
भारत ने इस मामले में हो रही गड़बड़ी के प्रति एक तरह से आंखें बंद रखीं। ये सब ऐसी गड़बड़ियां हैं जिन पर कोई भी अमेरिका में आसानी से जेल पहुंच जाता। इस अनुत्तरित सवाल का भी जवाब सामने आना चाहिए कि जब देवयानी की फरार चल रही नौकरानी के खिलाफ भारत में गैर जमानती वारंट जारी थी तो उसके परिजनों को देश से बाहर कैसे चले जाने दिया गया? यह सही है कि फरार चल रहे किसी शख्स के लिए परिजन जिम्मेदार नहीं हैं, लेकिन भारतीय आव्रजन व खुफिया अधिकारियों को गड़बड़ी का अहसास क्यों नहीं हुआ?
[लेखक ब्रह्मा चेलानी, सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं]
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