सीडीएस: एक बड़े कदम के कई मायने, तीनों सेनाओं में होगा बेहतर तालमेल
सीडीएस की नियुक्ति के बड़े खास मायने हैं। यह नियुक्ति भारत की सुरक्षा को नई ताकत भी देगी।
अमित तिवारी। सीडीएस के रूप में केंद्र सरकार ने सैन्य मजबूती की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। करीब दो दशक से उठ रही मांग को अमली जामा पहनाते हुए बीते 24 दिसंबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ यानी सीडीएस के पद के गठन को मंजूरी दी थी। हफ्तेभर के भीतर ही जरनल बिपिन रावत को पहला सीडीएस बनाने का एलान भी हो गया। करीब तीन वर्ष सेना प्रमुख के रूप में कमान संभालने और सेना के आक्रामक स्वरूप को धार देने के बाद अब जनरल रावत यह नई जिम्मेदारी निभाएंगे।
दुनिया भर में युद्ध के स्वरूप में हो रहे बदलाव को देख भारत जैसे विशाल देश के लिए रणनीति में सुधार करना जरूरी हो गया है। सीडीएस इसी दिशा में उठाया गया एक अहम कदम है। जल, थल और वायु तीनों ही सेनाओं का अपना एक विस्तृत आयाम है। किसी भी सैन्य कार्रवाई के दौरान इनकी अलग-अलग जरूरत और भूमिका रहती है। ऐसे में कार्रवाई के दौरान इनके बीच समन्वय में जरा सी चूक से बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ता है। वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान हमारे सामने ऐसी ही स्थिति आई थी। युद्ध के बाद गठित के सुब्रमण्यम समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सही तालमेल न हो पाने के कारण सक्षम होते हुए भी भारतीय सेना को ज्यादा नुकसान हुआ था। उसी समय एक ऐसे समन्वयक पद के सृजन की सिफारिश की गई थी जो इस कमी को पूरा कर सके। दो दशक के बाद इस दिशा में निर्णायक कदम उठाया जा सका है।
ब्रिटेन, अमेरिका, इटली, चीन, फ्रांस और कनाडा जैसे देशों में भी सीडीएस सरीखा पद है। यहां भी ऑपरेशनल कमांड से इतर समन्वय की जिम्मेदारी सीडीएस या इसके समकक्ष अधिकारी को दी जाती है। यह अधिकारी देश के प्रमुख सैन्य सलाहकार के रूप में भी भूमिका निभाता है। भारत में भी सीडीएस के लिए लगभग ऐसा ही स्वरूप तय किया गया है। सीडीएस की भूमिका प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के सैन्य सलाहकार की होगी। परमाणु हथियारों के मामले में भी सीडीएस को सलाहकार की भूमिका दी गई है। सीडीएस के पूरे खांचे को देखा जाए, तो यह मात्र एक पद नहीं है, यह एक ऐसा छत्र है जिसके साये में देश की तीनों सेनाएं पल्लवित होंगी।
सीडीएस की दिशा में कदम बढ़ाते समय इस बात का ध्यान रखा गया है कि तीनों सेना प्रमुखों के साथ सीडीएस के अधिकारों में कोई टकराव की स्थिति नहीं बने। इसीलिए सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि सीडीएस को तीनों सेनाओं का कमांडर इन चीफ यानी सेनापति नहीं बनाया गया है। तीनों सेनाओं के प्रमुख पहले की तरह ही अपनी जिम्मेदारियां निभाते रहेंगे। इस पद के सृजन के बड़े मायने हैं। भारत अपनी सैन्य चुनौतियों को लेकर सजग है। नए दौर की नई रणनीति में देश किसी भी स्तर पर पीछे नहीं रहना चाहता है। यह कदम इसलिए भी ऐतिहासिक है, क्योंकि देश में पहले इतने शक्तिशाली किसी पद के सृजन के बारे में नहीं सोचा गया था। सीडीएस सेनाओं और सरकार के बीच पुल की तरह काम करेगा।
इसके अलावा सीडीएस की नियुक्ति से सैन्य आधुनिकीकरण की दिशा में तेजी से बढ़ना भी संभव होगा। अभी कई बार ऐसा देखने में आता है कि लगभग एक जैसी जरूरतों के लिए भी तीनों सेनाएं अपने-अपने स्तर पर अलग-अलग प्रक्रिया अपनाती हैं। इससे खर्च भी बढ़ता है और देरी भी होती है। सीडीएस के होने से इस खामी को सुधारा जा सकेगा। तीनों सेनाओं के परिचालन, लॉजिस्टिक्स, प्रशिक्षण, संचार, मरम्मत व रखरखाव जैसे कामों में समन्वय में सीडीएस की भूमिका रहेगी। इसके बाद तीनों सेनाओं के लिए संयुक्त रूप से खरीद, अधिग्रहण जैसी गतिविधियों को अंजाम देना संभव हो सकेगा। संयुक्त संचालन के माध्यम से उपलब्ध संसाधनों का श्रेष्ठ व तर्कसंगत प्रयोग करने के लिए सैन्य कमानों के पुनर्गठन और संयुक्त कमानों के गठन का रास्ता भी खुलेगा।
पहले सीडीएस के तौर पर जनरल बिपिन रावत का चयन भी सरकार के इरादों को स्पष्ट करता है। जनरल रावत अपनी आक्रामण रणनीति के लिए जाने जाते हैं। वर्ष 2016 में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में की गई सर्जिकल स्ट्राइक के मुख्य रणनीतिकार वे ही थे। उस समय वह उप सेनाध्यक्ष थे। सेनाध्यक्ष के रूप में उन्होंने कश्मीर में आतंकियों के खात्मे के लिए ऑपरेशन ऑल आउट को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। कश्मीर में सेना को खुला हाथ देकर जनरल रावत ने सैनिकों का हौसला बढ़ाया। इसका नतीजा रहा कि सेना ने पाक सीमा में घुसे बगैर भी उसके कई शिविर ध्वस्त किए और मुंहतोड़ जवाब दिया। जनरल रावत सैन्य सुधार की दिशा में उठाए गए कदमों के लिए भी जाने जाते हैं। सैनिकों की समस्याओं पर त्वरित कार्रवाई के लिए मोबाइल एप जारी करना इस दिशा में अहम रहा। दिव्यांगता पेंशन और पेंशन संबंधी अन्य विसंगतियों पर भी उन्होंने खासा काम किया। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद हमारी सेना ने जिस तरह पूरी स्थिति को संभाला, उसके लिए भी जरनल रावत के नेतृत्व की सराहना की जाती है।
बहरहाल जनरल रावत के कंधे पर सीडीएस की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। इसका महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि जनरल रावत इस भूमिका में नई लकीर बनाएंगे। बतौर सीडीएस उनका हर कदम मानक बनेगा। देश को भरोसा है कि जिस तरह सेनाध्यक्ष के रूप में उन्होंने उपलब्धियां हासिल की हैं, सीडीएस के रूप में ऐसी ही उपलब्धियां उनके खाते में जुड़ेंगी।