तंबाकू के खिलाफ अधूरी जंग
पिछले कुछ दशकों के शोध प्रयासों ने निश्चित रूप से तंबाकू उपभोग के हानिकारक प्रभावों को स्थापित कर दिया है, फिर भी तंबाकू सेवन दुनिया में मृत्यु और रोग के सबसे बड़े कारणों में से एक है। इस खतरे को रोकने की आवश्यकता को पहचानते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2003 में एक अनुबंध के माध्यम से तंबाकू नियंत्रण के उपाय लागू किए। यह अनुबंध सभी रूपों में तंबाकू सेवन को सीमित करने के लिए मानकों को निर्धारित करता है। हालांकि भारत ऐसे अनुबंधों की अभिपुष्टि में सबसे आगे रहता है, किंतु उन्हें सशक्त रूप से लागू करने में हमेशा पिछड़ जाता है। डब्ल्यूएचओ का यह अनुबंध भी कुछ ऐसा ही है। इसके लागू होने के सात वर्ष बाद भी भारत इसकी प्रतिबद्धता में विफल रहा है। सिगरेट के पैकेट पर जारी स्वास्थ्य चेतावनी पर अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में 198 देशों में से भारत का 123वां स्थान है।
डब्ल्यूएचओ अनुबंध सिफारिश करता है कि स्वास्थ्य चेतावनी मुख्य प्रदर्शन क्षेत्र को 50 प्रतिशत या अधिक और कम से कम 30 प्रतिशत तक ढके। 2006 में, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम 2003 के तहत यह निर्धारित किया कि स्वास्थ्य चेतावनी हर पैकेट के आगे और पीछे के मुख्य प्रदर्शन क्षेत्रों को कम से कम 50 प्रतिशत तक ढकेगी। 2009 में उस आवश्यकता को पैकेट के आगे के मुख्य प्रदर्शन क्षेत्र को कम से कम 40 प्रतिशत तक घटा दिया गया। कोई आश्चर्य नहीं कि भारत आज अन्य राष्ट्रों से निचले स्थान पर है। तंबाकू निर्माता पैकेट के शेष स्थान का उपयोग ग्राहकों में अपने उत्पादों का प्रचार करने के लिए करते हैं। आकर्षक पैकेजिंग, रंग, विज्ञापन संबंधी पाठ और चित्र का उपयोग युवाओं को लुभाने और उन्हें तंबाकू का सेवन आरंभ करवाने के लिए किया जाता है।
ऑस्ट्रेलिया ने तंबाकू उत्पादों की प्लेन पैकेजिंग का कानून पारित कर एक मिसाल कायम की है। पिछले दिसंबर से, ऑस्ट्रेलिया में सभी तंबाकू निर्माताओं को तंबाकू प्लेन पैकेजिंग अधिनियम, 2011 का पालन करना होगा। यह पैकेट पर तंबाकू उद्योग के लोगो, ब्रैंड चित्र, रंग और विज्ञापन संबंधी पाठ पर पाबंदी लगाता है। उत्पाद और ब्रैंड के नाम पैकेट पर पूर्व-निर्धारित क्षेत्र पर मानक रंग, स्थान और आकार में ही छापे जा सकते हैं। स्वतंत्र शोधकर्ताओं द्वारा किए गए सर्वेक्षण बताते हैं कि तंबाकू पैकेटों को फीका और अनाकर्षक बनाने से युवकों के तंबाकू सेवन शुरू करने की दर में कमी आती है। भारत अपने पड़ोसी श्रीलंका से भी कुछ सीख सकता है। श्रीलंका ने एक नियम अपनाया है जिसके अंतर्गत 80 प्रतिशत मुख्य प्रदर्शन क्षेत्र को स्वास्थ्य चेतावनी से ढकना अनिवार्य है। अन्य पड़ोसी जैसे कि चीन और यहां तक कि पाकिस्तान भी तंबाकू उत्पादों के लिए पैकेजिंग मानदंडों के संबंध में भारत से बहुत आगे हैं।
भारत में मैंने निजी सदस्य विधेयक की सहायता से तंबाकू उत्पादों में प्लेन पैकेजिंग अनिवार्य करने के लिए कानून में संशोधन का प्रस्ताव रखा है। वह विधेयक स्वास्थ्य चेतावनी के आकार को पैकेट के आगे और पीछे की सतह का कम से कम 60 प्रतिशत करने की मांग करता है। यह गोदामों, दुकानों और अन्य बिक्री के स्थानों पर तंबाकू उत्पादों के विज्ञापन को भी निषेध करता है। मुझे देश में तंबाकू की लॉबी से कड़े विरोध की आशंका है, जो तंबाकू सेवन के बुरे प्रभावों के बावजूद इसका निरंतर प्रचार करती है। दो बातों पर मेरे विधेयक का विरोध हो सकता है। एक, तंबाकू लॉबी प्लेन पैकेजिंग मानदंडों की वैधता पर इस आधार पर सवाल उठा सकती है कि ये वाक स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं। हालांकि, 2008 में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा ऐसे एतराज का खंडन पहले ही किया जा चुका है। महेश भट्ट और कस्तूरी बनाम भारत संघ में न्यायालय ने फैसला सुनाया कि चूंकि वाणिज्यिक विज्ञापनों में व्यापार और वाणिज्य का तत्व होता है, उन्हें समाचार, सार्वजनिक भाषणों, और विचारों के प्रचार के स्थान पर नहीं रखा जा सकता है। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि एक वाणिज्यिक विज्ञापन संविधान की धारा 19 के तहत सुरक्षा का हकदार केवल तभी होगा जब यह साबित हो जाए कि वह सार्वजनिक हित में है। इसलिए, वे विज्ञापन जो साधारण नागरिकों को तंबाकू उत्पादों का प्रचार करने या उनका सेवन जारी रखने का निमंत्रण देते हों उन्हें वाक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत सुरक्षा नहीं दी जा सकती।
दूसरा, तंबाकू उद्योग उस विधेयक पर बौद्धिक संपदा अधिकारों के हनन के आधार पर आपत्तिायां उठा सकता है। ऑस्ट्रेलिया में, इसी आधार पर अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी। तर्क दिया गया कि उद्योगों को उनके ब्रैंड का उपयोग करने से रोक देना, बिना मुआवजे के उनकी संपत्तिजब्त कर लेने के समान होगा। हालांकि ऑस्ट्रेलियाई उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि प्लेन पैकेजिंग संविधान का उल्लंघन नहीं करेगी चूंकि सरकार ने सिगरेट कंपनियों की किसी संपत्तिअर्थात पैकेज डिजाइन, लोगो और ब्रैंड का अधिग्रहण नहीं किया है और न ही इसमें सरकार का कोई 'आर्थिक लाभ' हो रहा है। भारत में, दस लाख से अधिक लोग एक वर्ष में तंबाकूजनित बीमारियों से मरते हैं। योजना आयोग का अनुमान बताता है कि तंबाकू संबंधी बीमारियों पर वार्षिक स्वास्थ्य खर्च 35,000 करोड़ रुपये है। आज यह जरूरी है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठन और सिविल सोसायटी समूह लोकप्रिय समर्थन जुटाएं और सरकार पर सार्वजनिक हित में कार्य करने का दबाव डालें। जब तक देश में तंबाकू उद्योग के सुधार के एजेंडे को शीघ्रता से संबोधित नहीं किया जाएगा, इसके गंभीर प्रभाव हमारी मानव पूंजी की क्षमता पर भारी पड़ते रहेंगे।
[लेखक बैजयंत जय पांडा, संसद सदस्य हैं]
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