RCEP से बाहर होकर भारत के लिए खुल गए कई दरवाजे, ईयू और यूएस से हो सकता है करार
आरसेप से निकलकर भारत के लिए कई दरवाजे खुल गए हैं। भारत अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ नए व्यापार समझौतों पर भी काम कर रहा है।
संदीप सोमानी। भारत का आरसेप से निकलना कोई आश्चर्य नहीं है। बढ़ते व्यापार घाटा और अन्य देशों से ट्रेड के लिए अपने बाजारों तक बेहतर पहुंच और सेवाओं के लिए भारत की चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता पर देश अब फ्रंट फुट पर खेल रहा है। यह विश्वास दुनिया में भारत के बढ़ते कद का एक प्रतीक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मजबूत वैश्विक नेतृत्व कौशल इस बात का प्रमाण भी है। भारत का आरसेप से निकलने का निर्णय न सिर्फ देश के किसानों के लिए, बल्कि एमएसएमई और डेयरी सेक्टर के लिए काफी मददगार साबित होगा।
भारत की तरफ से कड़ी सौदेबाजी
आरसेप वार्ताओं के दौरान भारत ने जिस तरह से कड़ी सौदेबाजी की, उसमें व्यावहारिकता झलकती है। इसमें गरीबों के हितों की रक्षा और भारत के मजबूत होते सेवा क्षेत्र को बढ़ावा देने का प्रयास है। यह तथ्य इस बात का द्योतक है कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा से दूर न रहते हुए, भारत यह सुनिश्चित करना चाहता था कि आरसेप की शर्ते सभी देशों के अनुकूल हों। वार्ता के दौरान भारत अपनी चिंताओं को उजागर करने में निरंतर सजग था। चाहे वह टैरिफ डिफरेंशियल के कारण उत्पत्ति के नियमों को दरकिनार करने के खतरे पर हो या आयात में वृद्धि को रोकने के लिए एक सुरक्षा तंत्र की मांग और घरेलू उद्योगों के हितों की रक्षा करना हो। एमएफएन के दायित्वों के तहत भारत को आरसेप देशों को उसी तरह के लाभ देने के लिए मजबूर होना पड़ेगा जो वह दूसरों को दे सकता है।
एक नजर इधर भी
आरसेप निर्णय को भारतीय पक्ष के लिए विफल एफटीएज की पृष्ठभूमि में भी देखा जाना चाहिए जो यूपीए सरकार के दौरान किए गए थे। भारत ने 2010 में आसियान और दक्षिण कोरिया के साथ और 2011 में मलेशिया और जापान के साथ एफटीए पर हस्ताक्षर किए थे। देश ने अपने बाजार का 74 फीसद हिस्सा भी आसियान देशों के लिए खोला था, जबकि इंडोनेशिया जैसे अमीर देशों ने इस अवधि के दौरान भारत के लिए केवल 50 फीसद खोला और भारत ने 2007 में भारत-चीन के बीच एफटीए करने का विचार किया और साथ 2011-12 में आरसेप वार्ता में शामिल होने के लिए सहमत हुआ।
नहीं हुआ फायदा
इन प्रयासों से भारत को किसी तरह से फायदा नहीं हुआ। दूसरी तरफ देश का व्यापार घाटा आरसेप देश के साथ 2004 में जहां 7 अरब डॉलर था वह साल 2014 में बढ़कर 78 अरब डॉलर पहुंच गया। पिछले कुछ वर्षो में सरकार ने कई उपायों और फैसलों के जरिये इन्हें सुधारने की कोशिश की है। आसियान सहित पिछले एफटीए में पहले के मुद्दों को हल किए बिना आरसेप के तहत एक और असमान सौदे पर हस्ताक्षर नहीं करना स्वाभाविक है। आरसेप के तहत एक सख्त और निष्पक्ष रूप-रेखा सुनिश्चित करने की जरूरत है।
एफटीए की समीक्षा
तीन साल पहले शुरू हुई कोरियाई एफटीए की भी तेजी से समीक्षा हुई है और भारत ने एफटीए की समीक्षा के लिए आसियान से भी समझौता कर लिया है। एक संयुक्त कार्यकारी समूह जापान एफटीए की समीक्षा पर भी चर्चा कर रहा है। इन प्रयासों से विभिन्न उद्योग खासकर कृषि, लघु और हथकरघा क्षेत्र के आयात पर लिए गए फैसलों को सही दिशा मिली है।
दुनिया की सबसे खुली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है भारत
आज भारत दुनिया की सबसे खुली अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गया है। भारत, अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ नए व्यापार समझौतों पर भी काम कर रहा है जिसमें भारतीय उद्योग और सेवाएं वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए मजबूत होंगी और बड़े विकसित बाजारों तक पहुंच मिलने से लाभान्वित भी होंगी। हम प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने अंतराष्ट्रीय दबावों के बावजूद कठिन रास्ता अपनाने का फैसला लिया है।
(लेखक फिक्की के अध्यक्ष हैं)
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