सुशील कुमार सिंह। चीन के हुबेई प्रांत से कोरोना का उठा बवंडर अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को भी बाकायदा चपेट में ले लिया है। एक ओर जहां दुनिया में इसके विकराल रूप के चलते संक्रमित लोगों की संख्या डेढ़ लाख से ऊपर पहुंच गई है वहीं मरने वालों का भी आंकड़ा 6 हजार पार कर चुका है। अब इसकी जद में दुनिया के 150 से अधिक देश है। हालांकि भारत की इस बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए कि उसने समय रहते कई प्रकार के कदम उठाए नतीजतन पड़ोसी चीन की यह बीमारी भारत को उस तरह प्रभावित नहीं कर पाई जैसा कि इन दिनों यूरोप और अमेरिका प्रभावित हैं। इस बीच संयुक्त राष्ट्र की कांफ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट ने कहा है कि कोरोना वायरस से प्रभावित दुनिया की 15 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारत भी है। चीन में उत्पादन में आई कमी का असर भारत पर साफ-साफ देखा जा सकता है। अंदाजा है कि भारत की अर्थव्यवस्था को लगभग 35 करोड़ डॉलर तक का नुकसान उठाना पड़ सकता है।

दरअसल भारत सरकार ने कोरोना के चलते आगामी 15 अप्रैल तक के लिए सभी देशों के वीजा रद कर दिए हैं। इस क्षेत्र से दो लाख करोड़ रुपये से अधिक की कमाई प्रति वर्ष होती है। इसमें नुकसान साफ-साफ दिख रहा है। इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन का अनुमान है कि विमानन उद्योग को यात्रियों से होने वाले कारोबार में कम से कम 63 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है। ऑटोमोबाइल उद्योग पर भी इसका खतरा बाकायदा देखा जा सकता है। भारत में इस क्षेत्र में लगभग पौने चार करोड़ लोग काम करते हैं। कोरोना वायरस ने भारत के ऑटो उद्योग के लिए कल-पुर्जो की किल्लत पैदा कर दी है। ऐसे में यहां बेरोजगारी का खतरा तुलनात्मक रूप से बढ़ गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया चेतावनी में कहा गया है कि अंटार्कटिका को छोड़ दिया जाए तो यह वायरस सभी महाद्वीपों में फैल चुका है।

भयावह स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि छह करोड़ की आबादी वाले इटली में मरने वालों की तादाद रिकॉर्ड तोड़ रही है। इतनी तेजी से मौत तो चीन में भी नहीं हुई है। हालांकि भारत में संक्रमित होने वालों का आंकड़ा बमुश्किल सौ के पार है। जाहिर है सरकार की चेतना, जागरूकता और जनता के इसमें पूरी तरह साथ देने के चलते कोरोना वायरस को तेजी से फैलने से रोकने में मदद मिल रही है। वहीं इस वायरस ने शेयर मार्केट में भी बड़ी चिंता पैदा की है। वहां एक दिन में 11 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है जो 2008 के वित्तीय संकट के बाद सबसे बुरा दौर कहा जाएगा।

कोविड-19 के फैलने की चिंता आरबीआइ को भी है। उसकी सलाह है कि अर्थव्यवस्था पर इस संक्रामक बीमारी के प्रसार के आर्थिक प्रभावों से निपटने के लिए आकस्मिक योजना तैयार रखी जानी चाहिए। आरबीआइ भी मानता है कि दुनिया के विभिन्न देशों में इसके फैलने से वैश्विक पर्यटन और व्यापार पर दुष्प्रभाव पड़ेगा। गौरतलब है कि अमेरिका, ईरान के तनाव के चलते जनवरी की शुरुआत में कच्चे तेल और सोने के दाम चढ़ गए थे और अब कोरोना वायरस के चलते इनमें गिरावट आई है। कोरोना वायरस का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव 2003 में फैले सार्स के मुकाबले अधिक है।

सार्स के समय चीन छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश था और उसका वैश्विक जीडीपी में योगदान 4.2 प्रतिशत था, जबकि कोरोना के समय में वह दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और वैश्विक जीडीपी में 16.3 प्रतिशत का योगदान देता है। ऐसे में यह वायरस केवल नरमी वाला झटका नहीं देगा, बल्कि व्यापक प्रभाव छोड़ेगा। अनुमान है कि वैश्विक जीडीपी में पहली तिमाही में 0.8 फीसद और दूसरी में 0.5 फीसद की कमी आएगी। इसमें कोई दुविधा नहीं कि इस वायरस से दुनिया सहित भारत की अर्थव्यवस्था की सांस उखड़ेगी। भारत तो पहले ही आर्थिक सुस्ती में फंसा था। अब हालात और खराब हो सकते हैं।

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस का प्रभाव 2.7 टिलियन डॉलर का माना जा रहा है, जो भारत की कुल अर्थव्यवस्था के बराबर है। गौरतलब है कि अमेरिका 19 टिलियन डॉलर और चीन 13 टिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले देश हैं। दवाइयों की खपत और वाहनों की बिक्री में कटौती तथा पर्यटन से लेकर होटल उद्योग आदि सभी इसकी चपेट में रहेंगे। भारत को कोरोना के साथ-साथ अपनी आर्थिक स्थितियों से भी निपटना है। गिरी हुई विकास दर को थामना है और अंतरराष्ट्रीय बाजार से मुकाबला भी करना है। जैसा कि कहा जा रहा है कि चीन की विकास दर एक फीसद गिर सकती है।

इसका मतलब है कि 136 अरब डॉलर के नुकसान में चीन रहेगा और जैसा कि स्पष्ट है कि 35 करोड़ डॉलर के नुकसान में भारत भी आ सकता है। ऐसे में कोविड-19 को शीघ्र समाप्त करना जरूरी है। इसी में जनमानस से लेकर अर्थव्यवस्था की भलाई है। सार्स के समय चीन छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश था और उसका वैश्विक जीडीपी में योगदान 4.2 प्रतिशत था, जबकि कोरोना के समय में वह दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और वैश्विक जीडीपी में 16.3 प्रतिशत का योगदान देता है

(लेखक वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के निदेशक हैं)

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