चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की यात्रा के दौरान भारत ने पलक पांवड़े बिछा दिए। दोनों देश नए दौर की दोस्ती की इबारत लिखने को बेकरार दिख रहे हैं। भले ही कुछ विशेषज्ञ चीन के इस रुख को भारत-जापान संबंधों पर श्रेष्ठता कायम करने के एक दांव के रूप में देख रहे हों, लेकिन इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि वैश्विक मंचों पर कई मुद्दों पर भारत और चीन के रुख एक से हैं। चाहे वह डब्ल्यूटीओ से जुड़े मसले हों, अंतरराष्ट्रीय वित्त प्रणाली में सुधार की बात हो, जलवायु परिवर्तन का मसला हो, सीरिया में हिंसा की बात हो। क्षेत्रीय स्तर पर दोनों ही देश क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देने की वकालत करते हैं। आतंकवाद से जंग और अफगानिस्तान जैसे मसलों पर दोनों के एक से हित हैं।

आने वाले दिनों में दुनिया में एशिया की धमक के चलते चीन इस तथ्य से भलीभांति वाकिफ है कि पश्चिमी देश और उसके दुश्मन देश भारत पर डोरे डाल सकते हैं। लिहाजा भारत का भरोसा हासिल करने को वह बेकरार दिखता है। भारत सहित दुनिया को वह यह दिखते हुए लगने चाहता है कि वह अपने पड़ोसी देश का स्वाभाविक मित्र बनने की ओर चल पड़ा है। भारत की स्थिति दूध से जली बिल्ली की तरह है जो छाछ को भी फूंक-फूंककर पी रही है।

पूर्व में मिले घाव और सीमा पर रह-रहकर होने वाली हलचल के चलते रहस्यमयी चीन के प्रति उसकी शंका जायज है। साथ ही उसे पता है कि क्षेत्रीय स्थिरता और तरक्की के लिए दोनों देशों का मिल जुलकर काम करना बहुत जरूरी है। ऐसे में इस यात्रा को लेकर दोनों देश न केवल गंभीर हैं बल्कि हिंदी चीनी भाई-भाई के नारे को और मजबूती देने को प्रतिबद्ध दिखते हैं। दोनों देशों की दोस्ती की इस प्रतिबद्धता के पीछे छिपी हिचक और हित की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

जनमत

क्या चीनी राष्ट्रपति के भारत दौरे से दोनों देशों के बीच भरोसे का पुल और मजबूत होगा?

हां 71 फीसद

नहीं 29 फीसद

क्या पश्चिमी देशों को पीछे छोड़ने के लिए दोनों एशियाई शक्तियों चीन-भारत का मिलकर काम करना वक्त की जरूरत है?

हां 12 फीसद

नहीं 88 फीसद

आपकी आवाज

पूरे विश्व की नजर अभी भारत और चीन के संबंधों पर टिकी है। अगर एशिया की ये दोनों महाशक्तियां साथ मिलकर काम करती है तो विश्व इतिहास में निश्चय ही नई नीतियों की इबारत लिखी जाएगी। -मधुराजकुमार

भारत में निवेश बढ़ाने और रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए हमें चीन का सहयोग लेना चाहिए। इससे दोनों देशों के बीच भागीदारी बढ़ेगी और भरोसे का पुल मजबूत होगा। परंतु चीन के विस्तारवादी रवैये को देखते हुए हमें सतर्क रहने की भी जरूरत है। -चंदन सिंह

चीनी राष्ट्रपति के भारत दौरे के दौरान हुए वार्ता में आम मुद्दों पर चर्चा से दोनों देशों के बीच व्यापक और दोस्ती के संबंध में प्रगति होगी और गहनता बढ़ेगी। - मनीष श्रीवास्तव

चीन से नया और मजबूत संबंध बनाने के लिए मोदी सरकार ने अच्छा प्रयास किया है। चीन हमारी कई तरह से मदद कर सकता है। लेकिन देखने वाली बात यह है कि चीन पहले की तरह विश्वासघात तो नहीं करेगा। -सुमनभट्टाचार्या1920@जीमेल.कॉम

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