स्वर्ग में सैलाब
जम्मू कश्मीर में आई भयावह बाढ़ प्रकृति को ठेंगे पर रखने वाले हमारे अड़ियल रवैये का प्रतिकार है। अब कुदरत का इंसान से यह बदला दोतरफा हो चला है। एक तो प्रकृति के अति दोहन और उसको खत्म करने वाले रुख ने ग्लोबल वार्मिग की समस्या को जन्म दे दिया है। दूसरी तरफ हम प्रकृति के अपने परंपरागत संबंधों को भूल चले हैं। ग्लोबल वार्मिग की सम
जम्मू कश्मीर में आई भयावह बाढ़ प्रकृति को ठेंगे पर रखने वाले हमारे अड़ियल रवैये का प्रतिकार है। अब कुदरत का इंसान से यह बदला दोतरफा हो चला है। एक तो प्रकृति के अति दोहन और उसको खत्म करने वाले रुख ने ग्लोबल वार्मिग की समस्या को जन्म दे दिया है। दूसरी तरफ हम प्रकृति के अपने परंपरागत संबंधों को भूल चले हैं। ग्लोबल वार्मिग की समस्या के चलते मौसम की अति सक्रिय दशाओं की आवृत्तिमें वृद्धि हुई है वहीं कुदरत को छेड़ने में कोई कसर नहीं किया जाता है। नदियों, झीलों, तालाबों को हम बिसारते जा रहे हैं। उनके बहाव क्षेत्र में जाकर हम अपना आशियाना बना रहे हैं। अनियोजित शहरीकरण और अतिक्रमण हमारा जन्मसिद्ध अधिकार बन चुका है। बाढ़ प्रबंधन के हम अपने परंपरागत ज्ञान को बिसार चुके हैं। पहले हम झीलों और संबद्ध जल निकायों द्वारा बाढ़ के पानी पर नियंत्रण रखते थे। अब न वह स्रोत रहे और न ही वह सोच। आपात स्थितियों के लिए हमारी तैयारी और पूर्व सूचना का तंत्र माशाअल्लाह है। लिहाजा बाढ़ और कुदरत का कहर स्वाभाविक हो चला है। ऐसे में धरती के स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर में आई जल प्रलय के निहितार्थ की पड़ताल और उससे लिए जा सकने वाले सबक हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
जनमत
क्या जम्मू-कश्मीर में आई भयावह बाढ़ कुदरत से इंसानी छेड़छाड़ का नतीजा है?
हां 90 फीसद
नहीं 10 फीसद
क्या प्रकृति से इंसान के टूटते सहज संबंधों के चलते प्राकृतिक आपदाओं की संख्या बढ़ी है?
हां 92 फीसद
नहीं 8 फीसद
आपकी आवाज
सड़के चौड़ी करने के लिए वनों को काटा जा रहा है। आज जम्मू और उत्ताराखंड में आई आपदाएं इसी का दुष्परिणाम हैं। - अंजनि कुमार श्रीवास्तव
यह आपदा विनाश का संक्षिप्त रूप है, प्रकृति आपदाओं से छेड़छाड़ इससे भी भयावह रूप ले सकती है। -अभय प्रताप
मानव द्वारा प्रकृति की घोर उपेक्षा ही विश्वभर में अचानक टूटी आपदाओं का कारण है। साथ ही इंसान के नित नए रोग और सामाजिक व मानसिक विकृतियां भी प्रकृति से उसके टूटते संबंधों का परिणाम है। -मीमधुराजा@जीमेल.कॉम
जब इंसान वृक्षों की जगह कंक्रीट के जंगल बनाएगा तो ऐसी विनाशकारी लीलाएं दिखती ही रहेंगी। - इकराम 707@जीमेल.काम
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