मैं यह लेख ऐसे वक्त में लिख रहा हूं, जब देश में तमाम लोग हमारे मुल्के की व्यवस्था पर गुस्से में हैं। बहुत हद तक उनका गुस्सा जायज है। यहां व्यवस्था से निराशा इस बात की तरफ भी इशारा कर रही है कि यहां काबिज राजनेताओं की टोली में हमेशा हीरो की कमी रही है। इसीलिए लोग सिस्टम की नाराजगी के समय उस हीरो को तलाशने की कोशिश करते हैं और अन्ना हजारे के रूप में अगर उसे कोई मिल जाता है तो उसके साथ हो लेते हैं। भले ही कुछ वक्त के लिए ही सही। अब बात करते हैं एक ऐसे हीरो की, जिसका व्यवस्था से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन खेल के जरिये देश को बांधने में उसका बहुत बड़ा योगदान है। यह हीरो पिछले 15 सालों से ज्यादा वक्त से देश के लिए हीरो रहा है और रहेगा। एक पूरी नई पीढ़ी को प्रेरणा देने वाला हीरो सचिन तेंदुलकर। यह हीरो खेल के मैदान पर अपनी पारी के शायद आखिरी पड़ाव पर है और यह पारी कब खत्म होनी चाहिए, यह फैसला भी सिर्फ और सिर्फ इस खिलाड़ी का होना चाहिए। किसी और का नहीं। लेकिन सचिन के बारे में लिखे जाने के और कई पड़ाव अभी बाकी हैं।

सचिन के सिर्फ एक दिवसीय मैचों में अद्भुत रिकॉर्ड को हम देखें तो दंग रह जाते हैं। मुझे अभी भी याद है शारजाह के मैदान पर सचिन का पाकिस्तान के अब्दुल कादिर से सामना और कादिर को क्रीज से बाहर निकलकर मारने वाले सचिन। यह उन दिनों की बात है, जब दुनिया जानना और पहचानना शुरू रही थी कि चाहे एक दिवसीय हो या टेस्ट मैच, एक बल्लेबाज का राज करने का समय आ चुका है।

कुछ सचिन के रिकॉ‌र्ड्स की सरल बातें आपके सामने रख रहा हूं। उन्होंने 463 मैच खेले हैं, जहां तक कोई क्रिकेटर नहीं पहुंच पाया है। सचिन ने लगातार 185 एकदिवसीय मैच खेले हैं, यह भी एक रिकॉर्ड है। सबसे ज्यादा 90 स्टेडियमों में उन्होंने खेला है। इसके अलावा एकदिवसीय में सबसे पहले सचिन ने दोहरा शतक [200] ठोंका। उनके बाद वीरेंद्र सहवाग ने वेस्टइंडीज के खिलाफ 219 रन बनाकर सचिन का यह रिकॉर्ड तोड़ा। सचिन ने 44.83 के औसत एकदिवसीय मैचों में 18426 बनाए हैं। कमाल की बात यह है कि उनका स्ट्राइक रेट रहा 86.24, वह भी तब जब टी-20 का युग नहीं था। वह एकदिवसीय मैचों का युग था और इस तरह से उस युग को सचिन ने अपनी छाप दी है। ये महज आंकड़े नहीं हैं, यह एक बल्लेबाज का अपने खेल के प्रति समर्पण का भाव है। इसे कभी नहीं भुलाया जा सकता। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सबसे ज्यादा शतक बनाने वाले सचिन 62 बार मैन ऑफ द मैच और 15 बार मैन ऑफ द सीरीज रहे हैं।

एक खिलाड़ी रिकॉ‌र्ड्स के लिए नहीं, सबसे पहले अपने देश और अपने देश की जीत के लिए खेलता है। सचिन भी हमेशा कहते रहे हैं कि देश के लिए खेलना सबसे बड़ी बात होती है। बाकी सब तो पीछे रह जाता है। सचिन के खाते में सबसे ज्यादा मैन ऑफ द मैच और मैन ऑफ द सीरीज पुरस्कार इस बात की तस्दीक करते हैं कि क्रिकेट के प्रति उनके जुनून और समर्पण का क्या स्तर था।

पिछले दिनों टेस्ट सीरीज में इंग्लैंड के हाथों बुरी हार के बाद अब भारतीय युवा क्रिकेटरों के सामने बहुत बड़ी चुनौती है और सबक भी। सारी बहस इस बात पर आकर रुक गई है कि क्या भारत के पास अब उस तरह का टैलेंट है, जो टेस्ट क्रिकेट जैसे मुश्किल इम्तेहान को पार कर भारत के लिए एक लंबी पारी खेल सके? क्या भारत को सचिन, द्रविड़ और लक्ष्मण जैसे क्रिकेट के प्रति जुनूनी खिलाड़ी मिलेंगे? क्रिकेट के ज्यादातर जानकारों को यह मुमकिन नहीं लगता। उनका कहना है कि कुछ खिलाड़ियों को छोड़ दें तो ज्यादातर टी-20 युग के हैं। इनके पास न तकनीक और धैर्य दोनों की कमी है। ये अपने खेल को उतनी तेजी से नहीं बदल सकते कि क्रिकेट के अलग-अलग फॉर्मेट में खुद को फिट रख सकें। दूसरी बात यह कि टी-20 युग के क्रिकेटरों को सबकुछ जल्दी-जल्दी चाहिए और इनके दिमाग पर पैसे का बुखार हावी हो गया है। आइपीएल के जरिये हो रही पैसों की बारिश ने तो आज के खिलाड़ियों की सारी नैतिकता और उसूलों को ही धो डाला है। विज्ञापनों में दिखने वाले क्रिकेटरों के आलोचक मानते हैं कि ये नई पौध बहुत लालची हो चुकी है। क्रिकेट के व्यावसायीकरण के दौर में खेल का नहीं, माल का बोलबाला है।

अब मैं सचिन से जुड़ी दलीलों पर आता हूं। सचिन के बारे में लिखते वक्त अगर आप रिकॉडर्स की लिस्ट बनाकर लिखने लगें तो और कुछ लिखने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। मेरे पास उनके विशाल क्रिकेट करियर के पूरे आंकड़े तो नहीं हैं, लेकिन यह जरूर मानता हूं कि जैसे कई सारे रिकॉ‌र्ड्स उनके नाम हैं, वैसे ही सबसे ज्यादा ब्रांड एंडोर्समेंट या कह लें विज्ञापन करने का रिकॉर्ड भी सचिन के नाम होगा। अपने एकदिवसीय क्रिकेट करियर में उन्होंने विज्ञापनों के जरिये शायद सबसे ज्यादा पैसा भी कमाया होगा, लेकिन इन बातों का उनके खेल पर कोई असर क्यों नहीं पड़ा। आज जो दलीलें दी जाती हैं कि क्रिकेटर को सिर्फ और सिर्फ पैसा ही चाहिए, इस बात ने सचिन की रफ्तार को कभी क्यों नहीं कम किया। यह है आज के युवा खिलाड़ियों के लिए सचिन से सीखने का सबसे बड़ा सबक।

एक और बड़ी बात। जब हम सचिन तेंदुलकर के योगदान और शख्सियत की बात करते हैं, मीडिया से एक लंबे वक्त से जुडे़ होने के नाते मैं यह बखूबी जानता हूं कि इस युग में मशहूर होना कितना मुश्किल है और विवादों से चर्चा में आना कितना आसान। सचिन जैसे इतने बड़े क्रिकेटर के हम व्यक्तिगत व्यवहार को देखें तो उसकी जितनी भी तारीफ करें, वह कम नजर आती है। 16 साल की उम्र से वह क्रिकेट खेल रहे हैं। दूसरे युवा क्रिकेटरों की तरह वह भी बड़े हुए। उन्होंने भी पार्टियों में शिरकत की। उन पार्टियों में, जहां तमाम तमाशे और झगड़े क्रिकेटरों के साथ जुड़े। मीडिया में कितना कुछ लिखा गया उन घटनाओं के बारे में। लेकिन सचिन तेंदुलकर का नाम कभी भी उन घटनाओं से जुड़ा। उनका बल्ला जितना भी आक्रामक होकर बोला, उनकी भाषा और बोली में शालीनता के सिवाय कुछ भी नहीं नजर आया।

सचिन वह खिलाड़ी हैं, जिनकी तुलना सुनील गावस्कर से कई बार की गई, क्योंकि उन्होंने उस वेस्टइंडीज टीम के खौफनाक गेंदबाजों के सामने रन बनाए, जो क्रिकेट पर राज कर रहे थे और दुनिया झुककर जिनका लोहा मानती थी। वहीं सचिन तेंदुलकर का रिकॉर्ड बेहतरीन ऑस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ शानदार रहा है। एकदिवसीय में भी और टेस्ट में भी। ग्लेन मैक्ग्रा और शेन वॉर्न जैसे गेंदबाजों से मैदान पर हुई तनातनी के बावजूद मैदान के बाहर सचिन की शख्सियत हमेशा एक जेंटलमैन की थी। क्रिकेट की पुरानी कहावत है कि यह जेंटलमेन का खेल है। मेरे हिसाब से सचिन इसे परिभाषित करते हैं। ये ऐसी बातें हैं, जो आजकल क्रिकेट खेलने वालों को जाननी और समझनी चाहिए। वरना, तेंदुलकर बनने का सपना तो सब रख सकते हैं, लेकिन वह कैसे बना जाता है, उसके गुर वे नहीं जान पाएंगे।

सचिन की लोकप्रियता के बारे में मेरे या किसी भी व्यक्ति के कुछ भी लिखने की जरूरत नहीं है। फिर भी एक मैच का जिक्र मैं जरूर करूंगा, जो उनकी लोकप्रियता के पैमाने बताती है। वर्ष 2005 में लाहौर में भारत और पाकिस्तान का मैच चल रहा था। यह वही मैच है, जिसके बाद परवेज मुशर्रफ ने महेंद्र सिंह धौनी के हेयरस्टाइल की तारीफ की थी। मुशर्रफ साहब जहां बैठे थे, उसके ठीक ऊपर बॉक्स में बैठकर मैं वह मैच देख रहा था। सचिन बैटिंग कर रहे थे और बहुत बढि़या बैटिंग। आसपास बैठे लोग उनके हर शॉट का आकलन कर रहे थे। सचिन 90 पर आउट हो गए। हालांकि भारत ने वह मैच जीता था, लेकिन मुझे अभी भी याद है, जब सचिन आउट हुए तो कई चेहरों पर उनके शतक से चूक जाने की मायूसी साफ दिखी। यह था उनकी लोकप्रियता का जादू। यकीनन ऐसे कितने ही किस्से उनसे जुड़े बाकी लोगों के पास होंगे, इसका कोई हिसाब नहीं होगा।

आखिर में वही बात। एक चैंपियन को लोगों की नजरों में चैंपियन ही रहना चाहिए, क्योंकि वह उस पीढ़ी की प्रेरणा होता है। एक ऐसे देश में जहां लोग व्यवस्था, समाज के चेहरों से निराश होकर आक्रोशित हो जाते हैं, इससे ऊपर उठकर कोई चैंपियन हमेशा याद किया जाता है। आज इस बात की जो बहस हो रही है कि सचिन तेंदुलकर को खेलना चाहिए या नहीं खेलना चाहिए, कुछ वक्त बाद इसका कोई मायने नहीं रह जाएगा। इसे याद भी नहीं किया जाएगा। याद किया जाएगा उस तेंदुलकर को, जिसकी न सिर्फ तुलना सर डॉन ब्रैडमैन से की गई, बल्कि खुद ब्रैडमैन ने उसकी तारीफ की। इस तारीफ के साथ-साथ अंग्रेजों के खेल से भारतीय बनने वाले इस क्रिकेट को इस देश में और दीवानगी की जगह मिलती है। सचिन को मैदान पर क्रिकेट के किसी फॉरमेट में जो भी खेलते हुए देख पाया, वह उसकी वे यादें हैं, जिसे वह अपने बच्चों और पोतों को बताता रहेगा।

[अभिज्ञान प्रकाश: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं]

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