पड़ोस का पशोपेश
पड़ोस का महत्व कोई भारतीय दर्शन से सीखे। वक्त-बेवक्त हर जरूरतों के लिए हम पड़ोसी पर आश्रित हो जाते हैं। यह निर्भरता ग्लानि रहित होती है। शायद इसके पीछे हमारी यह धारणा स्वत: स्फूर्त तरीके से काम करती है कि पड़ोसी भी किसी चीज के लिए कभी हमारे यहां साधिकार धमक सकता है। पड़ोस से विवाद भी होता रहता है। मनमुटाव के बावजूद ि
धर्म
पड़ोस का महत्व कोई भारतीय दर्शन से सीखे। वक्त-बेवक्त हर जरूरतों के लिए हम पड़ोसी पर आश्रित हो जाते हैं। यह निर्भरता ग्लानि रहित होती है। शायद इसके पीछे हमारी यह धारणा स्वत: स्फूर्त तरीके से काम करती है कि पड़ोसी भी किसी चीज के लिए कभी हमारे यहां साधिकार धमक सकता है। पड़ोस से विवाद भी होता रहता है। मनमुटाव के बावजूद विपदा की घड़ी में हम उसका दुख बांटने जरूर जाते हैं। उसकी हर मुश्किल को कम करने की अप्रत्यक्ष-परोक्ष कोशिश करना हर पड़ोसी अपना धर्म समझता है। यह बात और है कि कड़वाहट के चलते हम उससे बात न करें।
धमक
यह सार्वभौमिक सत्य है कि हम दोस्त तो बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं। पड़ोसी के साथ ही हमें रहना सीखना होगा। ऐसे में अगर आपका पड़ोस खुशहाल और तरक्की पसंद है तो निश्चितरूप से आपको उन्नति करने से कोई नहीं रोक सकता। लेकिन प्रतिकूल स्थिति में असर आप पर आना लाजिमी है। बीमार पड़ोसी अपने आसपास के लोगों को संक्रमित करता है। लिहाजा खुद को स्वस्थ रखते हुए यह जरूरी है कि पड़ोसी को भी स्वस्थ रखने के हर संभव प्रयास किए जाएं। हमें पाकिस्तान के रूप में एक प्रतिकूल पड़ोस विरासत में मिला है। रह-रहकर यह देश अशांत हो उठता है। लोकतंत्र को लील लेने वाली घटनाएं होने लगती हैं। कई बार तो इसकी परिणर्ति हिंसक और डरावनी बन चुकी है। आज पाकिस्तान फिर उसी राह पर चलता दिखाई दे रहा है। चुनी गई सरकार के खिलाफ दो नेताओं ने बड़ा जन आंदोलन छेड़ रखा है। इनको सेना की भी शह प्राप्त है। भले ही यहां पर कुछ दिनों में सबकुछ शांत हो जाए, लेकिन ऐसे हालात फिर उठ खड़े होने से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
मर्म
इतिहास गवाह है कि कभी एक दूसरे के जानी दुश्मन रहे कई देश आज सफल पड़ोस को हैं। ये देश अपना अतीत भूल भविष्य को संवारने में जुड़े हैं। क्या पड़ोसी धर्म निबाहते हुए पाकिस्तान को उबारने के क्रम में हम ऐसा नहीं सोच सकते हैं। हां, यह सही है कि हमारे पूर्व के कई प्रयासों पर उसने पानी फेरा है, हमारी पीठ में छुरा घोंपा हैं लेकिन क्या बड़े भाई का फर्ज इससे कम हो जाता है। अगर हमें आगे बढ़ना है तो पड़ोस के रूप में खुशहाल पाकिस्तान की संकल्पना को जीवंत करना होगा। इसके लिए हमें परोक्ष और प्रत्यक्ष रूप से सारे प्रयास करने होंगे। ऐसे में आंतरिक कलह के चलते विफल राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर पाकिस्तान के प्रति हमारे पड़ोसी धर्म के निर्वहन की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
जनमत
क्या अस्थिर पाकिस्तान की तुलना में शांत और विकासपरस्त पाकिस्तान ज्यादा हमारे हित में है?
हां 56 फीसद
नहीं 44 फीसद
क्या आपसी विवाद के बावजूद पाकिस्तान की घरेलू समस्याओं को हल करने में भारत को आगे आना चाहिए?
हां 25 फीसद
नहीं 75 फीसद
आपकी आवाज
पाकिस्तान में राजनीतिक नेताओं के बीच मतभेद होने के कारण वहां की स्थिति अस्थिर है। परंतु जब पाकिस्तान हमारे आतंरिक मामलों में टिप्पणी करता है तो हमें आपत्ति होती है। लिहाजा हमें उसके घरेलू मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। -मनीषा श्रीवास्तव
पाकिस्तान द्वारा हमारे साथ बार-बार धोखा किए जाने के बाद तो यही लगता है कि हमें पाकिस्तान के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है। -शुभम गुप्ता@जीमेल.कॉम
पाकिस्तान को उसके हाल पर ही छोड़ देने में भलाई है, वर्तमान के हालत आज उसके द्वारा खुद बनाए गए है। अब उसका इनके साथ रहना ही उसके लिए असली सबक है। अमृता43557गोयल@जीमेल.कॉम
भारत को पाकिस्तान के मामले में अन्य देशों की तरह ही बर्ताव करना चाहिए। पड़ोसी होने का फायदा तो वह पहले भी कई बार उठाता रहा है। हमें उससे धोखे के अलावा कुछ नहीं मिला है, लेकिन इस बार हमारा शांत रहना ही बेहतर है। -अश्विनकुमार@जीमेल.कॉम