गंगा का गम
मैं गंगा हूं। राजा भगीरथ की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा ने अपने कमंडल से मुझे छोड़ा। मेरे वेग को संभालने के लिए भगीरथ ने भगवान शंकर की तपस्या की। भोले-भंडारी ने प्रसन्न होकर अपने जटा की एक लट खोल दी जिसके सहारे मैं धरती पर सकुशल अवतरित हुई। अपने पुरखों को तारने की जिस लालसा के वशीभूत होकर
मैं गंगा हूं। राजा भगीरथ की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा ने अपने कमंडल से मुझे छोड़ा। मेरे वेग को संभालने के लिए भगीरथ ने भगवान शंकर की तपस्या की। भोले-भंडारी ने प्रसन्न होकर अपने जटा की एक लट खोल दी जिसके सहारे मैं धरती पर सकुशल अवतरित हुई। अपने पुरखों को तारने की जिस लालसा के वशीभूत होकर एक महामानव ने मुझे धरती पर बुलाया, कालांतर में वह मानवता के कल्याण में तब्दील होती गई। मेरे अविरल-कलकल से यहां के लोगों का तन-मन चिंहुक उठा। धरती उर्वर हो उठी। लोग धन-धान्य से परिपूर्ण होते गए। चहुंओर सांस्कृतिक और सामाजिक समरसता की मिसरी घुल गई। मुझे लोगों का बहुत प्यार, सम्मान और आदर मिला लेकिन कलयुग के इस कालखंड में मानव में आई कई विकृतियों ने मुझमें विकार पैदा करना शुरू कर दिए। लोगों ने जगह-जगह बांध-बैराज बनाकर मेरे नैसर्गिक प्रवाह को रोक दिया। मेरे किनारे बसे सैकड़ों शहरों का रोजाना कूड़ा-कचरा बिना झिझक मुझमें फेंका जाने लगा। खतरनाक औद्योगिक रसायनों के मिलने से मेरा रूप-स्वरूप बिगड़ता गया। मानव ने अपने लोभ में आकर मेरे अमृत रूपी जल को विष में तब्दील कर दिया है। अब तो मेरा विषैलापन जांचने के लिए बाकायदा शोध किए जाते हैं। कोई मेरे जल को नहाने के अनुपयुक्त बताता है तो कोई आचमन करने से भी मना करता है। कुछ संस्थाओं ने यह भी बता डाला कि बढ़ते आर्सेनिक तत्वों के चलते मेरे जल से नहाने के बाद कैंसर की आशंका भी बढ़ गई है। मैं मूक, अवाक सिर्फ यह सब देखने-सुनने को अभिशप्त हो चुकी हूं। मेरे ऊपर राजनीति भी की जाती रही है। दुनिया को तारने वाली अब खुद के उद्धार के लिए तरस रही है। गमों के सागर में डूबती-उतराती मैं अक्सर सोचती हूं कि करोड़ों साल पहले एक महामानव ने अपनी असीम साधना और इच्छाशक्ति के बल पर मुझे धरती पर उतरने को विवश किया। आज उसी महामानव के वंशज मुझे धरती से खत्म करने पर आमादा हैं। आखिर कोई तो होगा जो अपने भगीरथ प्रयासों और दृढ़ इच्छाशक्ति से मुझे फिर से मेरा असली रूप प्रदान करेगा। इसके लिए उसे राज, काज और समाज तीनों को साथ लेकर चलना होगा।
जनमत
क्या सख्त कानूनी बंदिशों से गंगा की निर्मलता-अविरलता लौटाई जा सकती है?
हां 85 फीसद
नहीं 15 फीसद
क्या गंगा नदी की निर्मलता-अविरलता के लिए सिर्फ केंद्र सरकार ही जवाबदेह है?
हां 10 फीसद
नहीं 90 फीसद
आपकी आवाज
मुझे नहीं लगता गंगा नदी की निर्मलता-अविरलता के लिए केवल केंद्र सरकार ही जवाबदेह है। इसके लिए आम जनता को भी सजग होना होगा। -अभिषेक सिंह
सख्त कानून ही काफी नहीं है, आम आदमी का सहयोग भी जरूरी है। -विनेश
देश का कोई भी मुद्दा केंद्र सरकार या राज्य सरकार का नहीं होता, यह हर नागरिक का होता है। - परमानंदसताक्षी@जीमेल.कॉम
गंगा के पुनरुद्धार के लिए सख्त कानून बनाने के साथ ही उनको ईमानदारी से लागू करना भी जरूरी है। आज तक इस अभियान में जितना खर्च हुआ है उसका हिसाब भी मांगा जाना चाहिए। -संजयराइस@जीमेल.कॉम
गंगा की निर्मलता बनाए रखने पर हम सरकार से ही सिर्फ जवाब क्यों मांगते हैं, इसे स्वच्छ रखने की जिम्मेदारी हमारी भी है। लोग इस पवित्र और निर्मल बनाए रखने में सहयोग करें। -मनुज20रिवास@जीमेल.कॉम
गंगा नदी की निर्मलता और अविरलता के लिए सिर्फ केंद्र सरकार कैसे जिम्मेदार हो सकती है। आदिकाल से गंगा को मां की संज्ञा दी गई है, इस नाते मां के प्रति सभी संतानों का दायित्व बनता है। -विनीता.अजित@जीमेल.कॉम
गंगा हमारी सबकुछ है, का उपदेश देने वाले कितने लोग इसे आत्मसात करने का प्रयास करते हैं। -अवनीन्द्रसिंह3@ जीमेल.कॉम