गरिमा

संसद। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का मंदिर। जनता की समस्याओं का निराकरण करने वाली देश और दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक पंचायत। सबकी आस्था और भरोसे का प्रतीक। सफलतापूर्वक करीब 62 साल पूरे करने वाली संस्था। हमारी उम्मीदों, आशाओं और आकांक्षाओं को आधार देने वाली हमारे जनप्रतिनिधियों की पंचायत।

गिरावटआगामी 13 मई को संसद 62 साल की हो जाएगी लेकिन लगता है कि जैसे जैसे इसकी आयु बढ़ रही है, यह परिपक्व और सक्षम होने के विपरीत होती जा रही है। इसके संस्थापक हमारे पुरखों ने शायद इस दिन के बारे में कभी सोचा भी न हो। सत्र दर सत्र अमर्यादाओं और अगंभीरता का रिकॉर्ड रचा जा रहा है। वर्तमान विस्तारित शीतकालीन सत्र के दौरान तेलंगाना बिल के मसले पर कुछ सदस्यों के कृत्य को संसद के इतिहास का सबसे शर्मनाक दिन बताया जा रहा है। लगातार बाधित सत्र में कुछ सांसदों ने मिर्च स्प्रे जैसे कृत्यों द्वारा अनुशासनहीनता की पराकाष्ठा का प्रदर्शन किया। यह स्थिति तब है जब हाल ही में राष्ट्रपति ने भी संसद सदस्यों के आचार, विचार और व्यवहार को लेकर चिंता जताई थी।

गुनहगार

दरअसल संसद तो ईट, पत्थर, सीमेंट और बजरी से बना मात्र एक भवन है। हमारे माननीय सांसद अपने दायित्वों को प्रभावशाली ढंग से पूरा करके उस संसद में प्राण प्रतिष्ठा करते हैं। इन जनप्रतिनिधियों को हम चुनकर इसलिए भेजते हैं कि ये लोग वहां जाकर हमारे कल्याण के लिए नीतियां, कानून और योजनाएं बनाएं। जो सांसद ऐसा नहीं करके सिर्फ हंगामे और संसद की गरिमा को तार-तार करने में लगे हैं वे शायद अपने दायित्व से भटक चुके हैं। ऐसे जनप्रतिनिधियों को अपना बहुमूल्य वोट देकर संसद में भेजने के लिए न सिर्फ हम सबको अफसोस जाहिर करना चाहिए बल्कि ऐसी प्रवृत्तिवाले लोगों को अपना प्रतिनिधि बनाने पर पुनर्विचार भी करना चाहिए। ऐसे में संसद की साख पर उठ खड़े हुए सवाल और उसकी गरिमा को बचाए रखने के उपायों की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

जनमत

क्या गुरुवार को संसद में कुछ सदस्यों के आचरण से आपने एक नागरिक के नाते शर्मिदगी महसूस की?

हां 95 फीसद

नहीं 5 फीसद

क्या संसद में अराजकता के लिए जिम्मेदार सदस्यों पर कार्यवाही से आप संतुष्ट हैं?

हां 54 फीसद

नहीं 46 फीसद

आपकी आवाजसंसद में अराजकता के जिम्मेदार लोगों पर कार्यवाही अवश्य होनी चाहिए। आज इनकी वजह से ही आम जनता का राजनीति से विश्वास उठ गया है। -एसके मिश्रा

संसद में सांसदों का अभद्र व्यवहार वास्तव में निंदनीय है। इसके पहले भी संसद में ऐसी घटनाएं हो चुकी है। लेकिन इस बार की घटना पर सख्त कार्यवाही अवश्य होनी चाहिए। -मनीषा श्रीवास्तव

अराजकता एक मानसिकता है, जिसे नजरअंदाज करना उचित नहीं। अगर कोई जनप्रतिनिधि इस मानसिकता का शिकार है तो उसको सजा मिलनी चाहिए और उसकी सदस्यता को अस्थाई रूप से तब तक के लिए रद की जाय जब तक वे लिखित में न दे। - विनीतमी.58 जीमेल.कॉम

संसद में अराजकता के लिए जिम्मेदार सांसदों पर हुई कार्यवाही पर्याप्त नहीं है। लोकसभा स्पीकर प्रधानाचार्य की तरह होता है। अत: उसे सदस्यों को कड़ी से कड़ी सजा देनी चाहिए, जिससे दोबारा ऐसी पुनरावृति न हो। -अजय. मनकामनेश्वर जीमेल.कॉम

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