डेढ़ दशक में सबसे न्यूनतम स्तर पर देश का औद्योगिक उत्पादन, पिछड़ रही अर्थव्यवस्था
वर्तमान में देश का औद्योगिक उत्पादन पिछले डेढ़ दशक में न्यूनतम स्तर पर है। इससे विकास की ओर उन्मुख अर्थव्यवस्था की गति धीमी हो गई है।
डॉ. संजीव मिश्र। पिछले कुछ महीनों से देश भर में आर्थिक सुस्ती का माहौल कायम होने को लेकर चर्चा हो रही है। नौकरियों की घटती संख्या का भी चिंताजनक हो रही है जो भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती को भी दर्शा रही है। इस बीच पिछले दिनों भारतीय मूल के अमेरिका में रहने वाले प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने जब अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार जीता, तो उनसे हुए सवालों में भारतीय अर्थव्यवस्था की सुस्ती भी सबसे ऊपर रही। इन सभी चर्चाओं और चिंताओं के बीच हाल ही में एक और खतरे की घंटी बजी है।
न्यूनतम स्तर पर औद्योगिक उत्पादन
दरअसल देश का औद्योगिक उत्पादन पिछले डेढ़ दशक के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है। इससे ना सिर्फ चिंताएं बढ़ी हैं, बल्कि भविष्य में भी अर्थव्यवस्था के सुधार व औद्योगिक उन्नयन पर सवाल खड़े होने लगे हैं। हाल ही में देश के उद्योग मंत्रलय ने देश के आठ प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों के उत्पादन की स्थितियों का ब्यौरा जारी किया है। इसमें फर्टिलाइजर को छोड़कर शेष सात क्षेत्रों- कोयला, कच्चा तेल, रिफाइनरी, स्टील, सीमेंट, बिजली और प्राकृतिक ऊर्जा क्षेत्रों में उत्पादन घटा है। उद्योग मंत्रलय की रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ सितंबर माह में ही देश के औद्योगिक उत्पादन में 5.2 प्रतिशत गिरावट रिकॉर्ड की गई है, जो पिछले चौदह वर्षो में सर्वाधिक है।
चौंकाने वाले तथ्य सामने
इस पूरी गिरावट को अलग-अलग समझें तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं। सबसे पहले बात कोयला की करें तो भले ही आज घरेलू रूप से इसकी खपत बहुत कम हो गई हो, लेकिन औद्योगिक स्तर पर इसकी खपत बहुत ज्यादा होती है। देश के अधिकांश तापीय बिजली वाले संयंत्रों में आज कोयले की खपत भारी मात्र में हो रही है। और शायद यही कारण है कि कोयला उत्पादन देश के विकास की दिशा तय करता है और इस समयावधि के दौरान कोयले का उत्पादन 20.5 प्रतिशत गिरा है। कच्चे तेल के उत्पादन में 5.4 प्रतिशत और प्राकृतिक गैस के उत्पादन में 4.9 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई है।
औद्योगिक गिरावट का शिकार
देखा जाए तो समग्र ऊर्जा क्षेत्र गिरावट की चपेट में है। रिफाइनरी उत्पादों में 6.7 प्रतिशत और बिजली उत्पादन में 3.7 प्रतिशत कमी हुई है। यही नहीं, निर्माण क्षेत्र भी औद्योगिक गिरावट का शिकार हुआ है। इसी का परिणाम है कि सीमेंट के उत्पादन में 2.1 प्रतिशत की कमी आई। वहीं स्टील का उत्पादन भी 0.3 प्रतिशत कम हुआ है। इस दौरान केवल फर्टिलाइजर का उत्पादन ही 5.4 प्रतिशत बढ़ा है। जिन आठ क्षेत्रों का विश्लेषण किया गया है, वे देश के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के औसतन 40 प्रतिशत का आधार बनते हैं। ऐसे में औद्योगिक उत्पादन में यह कमी देश की समग्र अर्थव्यवस्था के सामने छाए संकट को भी चरितार्थ करती है।
इंडियन आयल कॉरपोरेशन के लाभ में कमी
हालात कुछ इस तरह हो गए हैं कि वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में सरकारी क्षेत्र की तेल कंपनी इंडियन आयल कॉरपोरेशन के लाभ में 83 प्रतिशत की कमी की रिपोर्ट सामने आई है। इसी तरह उत्पादन घटने से बिजली की मांग कम हुई और इसका असर सकल विद्युत उत्पादन पर भी पड़ा है। औद्योगिक उत्पादन में गिरावट सरकार के लिए भी चुनौती देने वाली है। यह वह समय है, जब हमें नीतिगत रूप से पूरे तंत्र का आकलन करना होगा। प्राचीन काल से ही यदि देखा जाए तो भारतीय अर्थशास्त्री पूरी दुनिया को दिशा देते रहे हैं। कौटिल्य से लेकर नोबेल पुरस्कार पाए अभिजीत बनर्जी तक की अर्थशास्त्रिक यात्र हमारे लिए प्रेरणास्नोत है।
अभिजीत बनर्जी को लेकर हुई बयानबाजी दुर्भाग्यपूर्ण
इन सबसे सकारात्मक सूत्र वाक्य लेकर हमें आर्थिक नीतियों का नियोजन कुछ इस तरह करना होगा, जिससे देश की आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके। रोजगार के अवसर सृजित हो सकें और अमीरी-गरीबी के बीच गहराती खाई पाटी जा सके। नोबेल पुरस्कार की घोषणा होने के बाद जिस तरह अभिजीत बनर्जी को लेकर देश के भीतर बयानबाजी हुई, वह भी दुर्भाग्यपूर्ण है। वह बयानबाजी कई दफा हमारे नेतृत्व के एक हिस्से की अपरिपक्वता भी दिखाती है। अभिजीत बनर्जी को उनकी जिन उपलब्धियों के लिए नोबेल पुरस्कार मिला है, देश के आम आदमी, किसान और गरीब के भले के लिए उनका इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
बनर्जी ने जताई थी चिंता
अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार जीतने के बाद अभिजीत बनर्जी ने स्वयं भी भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर ना सिर्फ चिंता जताई, बल्कि समाधान के रास्ते भी सुझाए। उन्होंने साफ कहा है कि इस समय ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुधारने पर भी फोकस होना चाहिए। शहरी अर्थव्यवस्था में सुधार के नाम पर किसानों और ग्रामीणों के साथ आर्थिक रूप से खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए। देश भर में किसानों को उनकी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य कम होने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक संकट बढ़ता गया है, जिससे मांग घटी है और उसका असर समग्र अर्थव्यवस्था पर देखने को मिल रहा है। हमें इस सिस्टम को सुधारना होगा।
दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में भारत
जिस तरह सकल घरेलू उत्पाद के मामले में दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में भारत पांचवें से सातवें स्थान पर आ चुका था, हाल ही में विश्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए भारत की विकास दर का अनुमान घटा दिया है। पहले इस वित्तीय वर्ष में 7.5 प्रतिशत विकास दर का अनुमान विश्व बैंक द्वारा घोषित किया गया था, अब इसे घटाकर छह प्रतिशत कर दिया गया है। ऐसे में घरेलू अर्थव्यवस्था में सुधार के माध्यम से ही इन चुनौतियों का सामना किया जा सकता है। इसके लिए समग्र पहल करनी होगी और सरकारों को कई मोर्चो पर जिद छोड़नी होगी। साथ ही कस्बाई क्षेत्रों में लोगों को सुनिश्चित रोजगार मुहैया कराना होगा, ताकि उनकी आर्थिक दशा में सुधार हो सके। ग्रामीण क्षेत्रों में भी नए सिरे से सुधार पर जोर देना होगा। और यदि ऐसा हुआ तो अर्थव्यवस्था सुधरेगी और देश भी समृद्धि के नए शिखर छूने के लिए आगे बढ़ेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
यह भी पढ़ें:-
Indira Gandhi के वो फैसले जो हमेशा रहेंगे याद, वैश्विक मंच पर भारत को दिलाई थी पहचान
कोई सुनने को तैयार नहीं पाकिस्तान का कश्मीर राग, फिर भी लिखा यूएन को पत्र
पटरी से उतर गई हांगकांग की अर्थव्यवस्था, हांगकांग की आग में चीन के हाथ जलना तय