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काले धन का जवाब

इसमें दोराय नहीं हो सकती कि काले धन के मामले में केंद्र सरकार के इस जवाब से लोगों को निराशा हुई है क

By Edited By: Updated: Sun, 19 Oct 2014 06:29 AM (IST)

इसमें दोराय नहीं हो सकती कि काले धन के मामले में केंद्र सरकार के इस जवाब से लोगों को निराशा हुई है कि जिन देशों से दोहरे कराधान संबंधी संधि है वहां काला धन जमा करने वाले भारतीयों के नाम उजागर नहीं किए जा सकते। ध्यान रहे कि यह वही जवाब है जो मनमोहन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिया था और जिसके चलते उसकी चौतरफा आलोचना हुई थी। आलोचना करने वालों में भाजपा भी शामिल थी। क्या यह अजीब नहीं कि भाजपा ने जिस जवाब के लिए पिछली सरकार की घेरेबंदी की वही जवाब उसने भी देना पसंद किया? केंद्र सरकार के नीति-नियंताओं को यह आभास होना चाहिए था कि काले धन के मामले में पिछली सरकार जैसा जवाब दाखिल करने पर जनता में कैसी प्रतिक्रिया होगी? यह सही है कि केंद्र सरकार के इस जवाब के लिए दोहरे कराधान संबंधी संधि उत्तारदायी है और उसे आनन-फानन नहीं बदला जा सकता, लेकिन यह संधि कोई पत्थर की लकीर भी नहीं हो सकती। ऐसी किसी संधि को तो प्राथमिकता के आधार पर बदलने की कोशिश होनी चाहिए जो कुल मिलाकर काला धन बटोरने और जमा करने वालों के हितों की रक्षा करती हो। यह एक किस्म की अनैतिक संधि है। यह समझना कठिन है कि क्या सोचकर 1995 में यह संधि की गई? काले धन के मामले में कम से कम उन लोगों को तो शोर मचाने का अधिकार नहीं दिया जा सकता जिन्होंने इस संधि को आकार दिया। क्या कोई बताएगा कि किन कारणों के चलते काले धन के खातों के मामले में स्वर्ग माने जाने वाले देशों के साथ ऐसी संधि की गई? सवाल यह भी है कि काले धन पर तमाम हल्ला-गुल्ला मचने के बावजूद किसी ने इस संदिग्ध किस्म की संधि से पीछा छुड़ाने के बारे में क्यों नहीं सोचा?

यह संतोषजनक है कि काले धन पर सुप्रीम कोर्ट में सरकार के जवाब पर मचे शोर-गुल के बाद वित्तामंत्री अरुण जेटली ने यह स्पष्ट किया कि सरकार काला धन रखने वालों का पता लगाने, उनके नाम सार्वजनिक करने और उन्हें दंडित करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया है कि इस मामले में सरकार एक परिपक्व दृष्टिकोण के साथ सामने आएगी। उनके इस आश्वासन पर यकीन न करने कोई कारण नहीं, लेकिन बेहतर होता कि सरकार सुप्रीम कोर्ट में ऐसे ही दृष्टिकोण से लैस होकर पहुंचती। मोदी सरकार से यह भी वांछित है कि वह दोहरे कराधान संबंधी संधि पर नए सिरे से विचार करे। मौजूदा हालात में यह आवश्यक भी है और पहले के मुकाबले आसान भी, क्योंकि अब सभी देश यह महसूस कर रहे हैं कि काले धन का कारोबार करने वाले अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के साथ संबंधित देश की छवि खराब करने का भी काम कर रहे हैं। चूंकि ऐसे कारोबारी हर देश में सक्रिय हैं इसलिए सभी देशों और विशेष रूप से काला धन जमा करने में विशेष सहूलियत देने वाले देशों को अपनी रीति-नीति पर नए सिरे से विचार करना ही होगा। यदि वे ऐसा करने में आनाकानी करते हैं तो भारत को उन देशों के साथ मिलकर कोई पहल करनी चाहिए जहां के लोगों ने बड़े पैमाने पर विदेशों में काला धन जमा कर रखा है। इस मामले में अमेरिका की तरह भारत को भी सख्त रवैया अपनाने की जरूरत है।

[मुख्य संपादकीय]