हालात नहीं सुधरे
प्रदेश में बजट खर्च में सुधार करने की कसरत परवान नहीं चढ़ रही है। इसका असर विकास गतिविधियों पर पड़ना तय है। विकास कार्यो के लिए धन जब खर्च ही नहीं हो पाएगा तो उससे जनता कितना लाभान्वित होगी, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। चालू वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में खर्च की बात तो छोड़िए, बजट स्वीकृति में ही नाक
प्रदेश में बजट खर्च में सुधार करने की कसरत परवान नहीं चढ़ रही है। इसका असर विकास गतिविधियों पर पड़ना तय है। विकास कार्यो के लिए धन जब खर्च ही नहीं हो पाएगा तो उससे जनता कितना लाभान्वित होगी, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। चालू वित्ताीय वर्ष की पहली छमाही में खर्च की बात तो छोड़िए, बजट स्वीकृति में ही नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं। गिने-चुने नहीं, बल्कि 20 प्रशासनिक महकमों के लिए बजट 25 फीसद भी स्वीकृत नहीं हुआ। बजट स्वीकृति की हालत पतली है तो खर्च की तस्वीर किसतरह उजली हो सकती है। इस सूची में तमाम महकमे आम जनता को राहत पहुंचाने के नजरिए से महत्वपूर्ण हैं। कृषि, सड़क परिवहन, ऊर्जा, सिंचाई, लघु सिंचाई, आपदा प्रबंधन, शहरी विकास, वानिकी, तकनीकी शिक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी, सहकारिता, पुलिस, श्रम, पंचायती राज जैसे महकमों के लिए कम बजट की मंजूरी को लेकर सरकार और महकमों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लाजिमी हैं। महकमे बजट की मांग को समय पर प्रस्ताव प्रस्ताव देने और उन्हें स्वीकृति दिलाने में नाकाम रहे हैं। वहीं इस अवधि में शासन स्तर से भी चुस्त मानीटरिंग नहीं की गई। स्याह तस्वीर सामने आने पर शासन अब सुध ले रहा है। मुख्य सचिव की ओर से महकमों को सख्त हिदायत के साथ निर्देश जारी किए गए हैं। ध्यान देने योग्य यह है कि बजट मंजूरी और खर्च को लेकर स्थिति शुरुआती महीनों में भी ठीक नहीं रही। छमाही से पहले तिमाही और मासिक समीक्षा में यह तथ्य सामने आ चुका है। इसके बावजूद सरकार नहीं चेती। हालांकि, छह महीनों में बजट स्वीकृति पर इस दौरान हुए दो उपचुनावों में आचार संहिता की छाया भी पड़ी है। सरकारी मशीनरी का यह तर्क कि चुनाव आचार संहिता के चलते बजट स्वीकृति और खर्च पर असर पड़ा, कुछ हद तक ही सही है। दोनों ही उपचुनावों में आचार संहिता का दायरा सीमित रहा। यही नहीं, बड़ी संख्या में महकमों को कम बजट स्वीकृति पर संबंधित महकमों के मंत्रियों ने ध्यान देने की जरूरत महसूस नहीं की। महकमों के इस प्रदर्शन के लिए संबंधित मंत्रालय अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकते। वैसे भी कांग्रेस ने सत्ता संभालने से पहले पिछली भाजपा सरकार को बजट बेहद कम इस्तेमाल करने के मुद्दे पर जनता के बीच कठघरे में खड़ा किया था। अब खुद कांग्रेस सरकार इसी संकट से जूझ रही है। सत्तारूढ़ दल के लिए अब विपक्ष के आरोपों का जवाब देना भारी पड़ सकता है। केंद्र से मिली विशेष सहायता का फायदा भी तब ही है, जब उसका समय पर उपयोग हो। बचे-खुचे समय में ठोस नीति और मजबूत इच्छाशक्ति के साथ कदम नहीं बढ़े तो बजट खर्च को पटरी पर लाना मुमकिन नहीं होगा।
[स्थानीय संपादकीय: उत्ताराखंड]