यह संतोषजनक है कि स्विट्जरलैंड सरकार की ओर से यह कहा गया कि वह ऐसे भारतीयों की सूची बना रही है जिन पर संदेह है कि उन्होंने काला धन स्विस बैंकों में जमा कर रखा है, लेकिन देखना यह है कि ऐसी कोई सूची भारत को कब और किस रूप में हासिल होती है? नि:संदेह स्विट्जरलैंड सरकार के इस रुख से विदेश में जमा काले धन का पता लगाने की भारत की कोशिश को बल मिलेगा, लेकिन इस मामले में और भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। यह भी स्पष्ट है कि केवल स्विट्जरलैंड सरकार के सहयोग भरे रुख से बात बनने वाली नहीं है, क्योंकि इस तरह के बैंक दुनिया के अन्य देशों में भी हैं और इसकी भरी-पूरी संभावना है कि वहां भी भारतीयों ने अच्छा खासा धन जमा कर रखा हो। इस धन के संदर्भ में इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि यह केवल कर चोरी के रूप में हासिल किया गया धन नहीं है। इसमें से एक अच्छा-खासा धन वह है जो अवैध और अनुचित तरीके से कमाया गया है। दुनिया के जिन देशों में बिना किसी पूछ-परख के काला धन जमा करने की सुविधा है वे मूलत: विकसित देश हैं और यह जगजाहिर है कि वे अपने दशकों पुराने गोपनीयता कानूनों की आड़ में यह जानकारी देने से बचते रहते हैं कि किन देशों के किन लोगों का किस तरीके का धन उनके बैंकों में जमा है।

नि:संदेह विकसित देश इससे अच्छी तरह परिचित हैं कि उनके यहां के निजी और सरकारी बैंकों में विदेशी लोगों का जो धन जमा है उसमें एक बड़ा हिस्सा गलत तरीके से कमाए गए धन का है, लेकिन वे ऐसी हर कोशिश का विरोध करते हैं जिससे काला धन जमा करने वाले लोगों के नाम उजागर हों और संबंधित देशों की सरकार उनके खिलाफ कोई कार्रवाई कर सके। एक ओर वे दावा करते हैं कि उनके यहां किसी तरह के गलत कार्यो को सहयोग-संरक्षण नहीं दिया जाता और दूसरी ओर काले धन के मामले में वे इसके ठीक विपरीत व्यवहार करते हैं। निराशाजनक यह है कि काले धन की रोकथाम के सिलसिले मेंसंयुक्त राष्ट्र की ओर से पहल किए जाने के बावजूद विकसित देश अपना रवैया बदलने के लिए तैयार नहीं हैं। यही कारण है कि भारत और उसके जैसे अन्य देश चाहकर भी उन लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं जिन्होंने विदेशी बैंकों में बड़ी मात्रा में काला धन जमा कर रखा है। कुछ समय पहले अमेरिका ने कुछ देशों से अपने यहां के लोगों के बैंक खातों की जानकारी हासिल कर ली थी, लेकिन यह एक सच्चाई है कि अमेरिका जैसी स्थिति अन्य देशों की नहीं हो सकती। इन स्थितियों में यह जरूरी हो जाता है कि विकसित देश अपने यहां ऐसे कानून बनाएं जिससे कोई भी उनके यहां काला धन न जमा कर सके। यह भी जगजाहिर है कि कुछ देशों में ऐसे बैंक हैं जो काला धन ही जमा करने का काम करते हैं। विकसित देश इससे अपरिचित नहीं हो सकते कि यह काला धन विकासशील और गरीब देशों में किस तरह गरीबी और असमानता को बढ़ावा दे रहा है। इन स्थितियों में यह उनकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे आगे आएं और ऐसे कदम उठाएं जिससे उनके यहां काला धन न जमा हो सके।

[मुख्य संपादकीय]