भारतीय मनीषा में अज्ञात कुल-शील के लोगों से दोस्ती की वर्जना के बावजूद आधुनिक चलन और भौतिकता की अंधी दौड़ में शामिल होने की ललक का असर झारखंड तक पहुंच चुका है। फेसबुक आदि सोशल मीडिया की दोस्ती को एकदम वास्तविक मानकर चलने वाले लोग किस प्रकार धोखा खा रहे हैं, इसका जीता-जागता प्रमाण राजधानी रांची के ही दो लोगों के बुरी तरह ठगे जाने के रूप में सामने आया है। एक व्यवसायी इसी धोखे में 84 लाख रुपये गंवा बैठा, जबकि एक महिला भी बीस लाख रुपये की चपत खाने के बाद पुलिस की शरण में पहुंची है। सेल फोन पर हुई बातों के प्रभाव में आकर आए दिन एटीएम से पैसे गंवाने वालों की लंबी कतार है। इसके शिकार उच्च शिक्षित और उच्च पदस्थ लोग भी हो रहे हैं। इन अत्याधुनिक संचार उपकरणों और सोशल मीडिया जैसे टूल का इस्तेमाल निजी आवश्यकता, ज्ञान वद्र्धन और मन बहलाव से इतर करने वालों पर भारी गुजरना स्वाभाविक है। यह ठीक है कि ये संसाधन दुनिया भर में एक नई किस्म का समाज गढ़ रहे हैं। इन संसाधनों के कारण पूरा विश्व मु_ी में सिमटा हुआ नजर आने लगा है, लेकिन सावधानी पूर्वक इनका इस्तेमाल करने में ही समझदारी है। आदमी मिट्टी की साधारण हांडी भी ठोंककर ही खरीदता है, लेकिन चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर बिना सोचे-समझे लाखों का लेनदेन घाटे का सौदा साबित होना ही है।

इन माध्यमों का बेजा लाभ उठाने में दुनिया भर के लोग लगे हुए हैं। फेसबुक पर हुई दोस्ती का नाजायज लाभ उठाकर ठगी करने वालों में अबतक नाइजीरिया और इंग्लैंड के जालसाजों के नाम सामने आ चुके हैं। धोखा खाने वाले वे लोग हैं, जो थोड़ा सा निवेश कर रातोंरात बड़ा धन अर्जित कर लेना चाहते हैं। हैरानी की बात यह कि वे लालच में ऐसे लोगों पर भरोसा कर लेते हैं, जिनसे उनका परिचय तक नहीं। वे यह भी जानते हैं कि जिन पर विश्वास कर वे अपना धन लगा रहे हैं, उन तक पहुंचना आसान नहीं है। इस प्रकार के बड़े धोखे का शिकार होने के बाद यदि वे सोचते हों कि पुलिस तत्काल उनकी जमा-पूंजी वापस दिला देगी तो यह भी संभव नहीं लगता। ये घटनाएं बाकी लोगों को आगाह कर रही हैं कि टूल का इस्तेमाल टूल की तरह ही किया जाय और विश्वास उन पर ही किया जाय, जो आजमाए हुए हों। यह अलग बात है कि मुसीबत के समय अज्ञात व्यक्ति की भी सहायता की जानी चाहिए, लेकिन इसमें भी समझदारी आवश्यक होती है।

[स्थानीय संपादकीय: झारखंड]