पिछले साल राज्य के कृषि विभाग ने एक दूरगामी महत्व का काम किया। इस बात की जांच कराई गई कि अधिक से अधिक फसल के लिए रासायनिक उर्वरकों का जिस तरह (असंतुलित) प्रयोग हो रहा है, उससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर कैसा असर हो रहा है। जांच के निष्कर्ष सावधान करने वाले हैं। पता चला है कि जीवन के लिए जरूरी अन्न देने वाली मिंट्टी में बांझपन बढ़ रहा है। 2013 में 2 लाख 31 हजार किसानों के खेतों से एकत्र मिट्टी के नमूनों में आर्गेनिक कार्बन की मात्रा काफी कम पाई गई। इसकी मात्रा सामान्य 0.5 से 0.7 की अपेक्षा 0.123 प्रतिशत है। नाइट्रोजन की प्रति हेक्टेयर अपेक्षित मात्रा भी 250 से 500 की तुलना में 177 किलोग्राम ही है। यही हाल फास्फोरस के साथ है। औसतन 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की अपेक्षा यह महज 11 किलोग्राम है। जमीन का बंजर होना एक खतरनाक संकेत है। इसके कारणों की गहरी और व्यापक समीक्षा होनी चाहिए। एक दूसरा तथ्य यह है कि राज्य में मानव आबादी बढ़ रही है। बिहार जनसंख्या स्थिरीकरण के मामले में शिथिल और आबादी बढ़ाने में सबसे तेज है। जनसंख्या संबंधी आंकड़े बताते हैं कि आज हम 10 करोड़ 38 लाख की विशाल संख्या से आगे बढ़ रहे हैं, जबकि उपजाऊ भूमि का कुल क्षेत्रफल लगातार घट रहा है। कृषि भूमि का खासा हिस्सा चौड़ी सड़क (फोर लेन), ज्यादा मकान, ज्यादा स्कूल-अस्पताल-कालेज और बाजार-जैसी बढ़ती आबादी की जरूरतें पूरी करने में जा रहा है। आबादी के दबाव में खेतों का दायरा छोटा और अनुत्पादक हो रहा है। इन चौतरफा दबावों ने कम भूमि से अधिक पैदावार लेने को इस तरह मजबूर किया है कि किसान रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध इस्तेमाल करने लगे हैं। इसके साइड-इफेक्ट सामने आ रहे हैं। उर्वरा शक्ति घट रही है।

राजधानी में शुक्रवार को आयोजित कार्यशाला में कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह ने कहा कि मिट्टी की सेहत बचाने के लिए जैविक विधि से खेती जरूरी है। एक तरफ मिट्टी का क्षरण रोकना और दूसरी तरफ उत्पादकता में वृद्धि करना, यह दोहरी चुनौती है। कार्यशाला में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कृषि सलाहकार डा.मंगला राय का कहना था कि मिट्टी,पानी व हवा को स्वच्छ रखने के लिए मनरेगा को उपयोगिता आधारित बनाना होगा। इसे भूमि विकास, वाटर हार्वेस्टिंग व बायोमास मैनेजमेंट से जोड़ना चाहिए। इससे मिट्टी की सेहत बचाने, पर्यावरण प्रदूषण रोकने व ईधन की समस्या का समाधान होगा। यह सब ठीक है, लेकिन इसके साथ ही हमें भूमि पर दबाव कम करने के लिए समयबद्ध कार्यक्रम भी चलाने होंगे। भूमि की घटती उर्वरा शक्ति इस कृषि-आश्रित राज्य के लिए बड़ा खतरा है। हालांकि राज्य सरकार कृषि रोडमैप के तहत पिछले कई वर्षो से काम कर रही है, लेकिन किसानों को आधुनिक, जैविक और वैज्ञानिक खेती के साथ-साथ छोटे परिवार का महत्व भी बताना होगा। आखिर खेती कितना बोझ उठा सकती है?

[स्थानीय संपादकीय: बिहार]

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