दिल्ली में घरों व दफ्तरों में काम करने के लिए रखी गई लड़कियों के साथ मालिकों का अत्याचार और उनका यौन उत्पीड़न चिंताजनक है। यह सभ्य समाज पर काले धब्बे के समान है। इसके लिए जहां एक ओर उन्हें काम पर रखने वाले मालिक दोषी हैं वहीं कुकुरमुत्ते की तरह जगह-जगह खुली प्लेसमेंट एजेंसियों का गैरजिम्मेदाराना रवैया भी कम दोषी नहीं है। दिल्ली में गैरकानूनी ढंग से लड़कियों को काम पर लगाने और मानव तस्करी को बढ़ावा देने का कार्य कर रही प्लेसमेंट एजेंसियों पर तत्काल लगाम कसने की जरूरत है। वसंतकुंज में नौकरानी को घर में बंधक बनाकर अमानवीय अत्याचार करने का मामला पहला नहीं है। इस तरह के कई मामले उजागर होते रहे हैं। विडंबना है कि न तो इसमें लिप्त लोगों की सोच में कोई बदलाव आया है और न मानव तस्करी से जुड़े लोगों व प्लेसमेंट एजेंसियों पर सख्त कार्रवाई की गई। जैसे-जैसे नौकरानी सदमे से उबरती जा रही है वह मालकिन के अमानवीय अत्याचार की दास्तां बयां कर रही है। एक आम आदमी के विश्वास से परे है कि इस तरह की अमानवीय हरकतें कोई कैसे कर सकता है। यह पूरे समाज के लिए धब्बा है कि उसमें इस तरह के लोग भी रह रहे हैं।

नाबालिग लड़कियों को इस तरह काम पर लगाने को किसी भी स्थिति में उचित नहीं ठहराया जा सकता। उनके साथ अमानवीय व्यवहार व यौन उत्पीड़न जैसे कृत्य मामले को और गंभीर बनाते हैं। हालांकि इस मामले में पीड़ित लड़की को पुलिस नाबालिग नहीं मान रही लेकिन उत्पीड़न की शुरुआत उसी उम्र से हो चुकी थी। राजधानी में ऐसे गैरकानूनी कार्यो को रोकने के लिए आवश्यक है कि सरकार प्लेसमेंट एजेंसियों के कामकाज की निगरानी की पुख्ता व्यवस्था करे। साथ ही छुड़ाई गई लड़कियों के पुनर्वास की भी व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि किसी को फिर इस बुरे दौर से गुजरना न पड़े। लोगों को भी चाहिए कि किसी को घर या कार्यालय में काम पर रखने से पूर्व उसके निवास, आचरण, उम्र आदि की पूरी जानकारी हासिल कर लें। सिर्फ प्लेसमेंट एजेंसियों के भरोसे किसी को काम पर रखने को कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता। ऐसा करने से राजधानी में प्लेसमेंट एजेंसियों के नाम पर किए जा रहे गैरकानूनी कार्यो पर लगाम लगाने के साथ ही मानव तस्करी की घटनाओं को भी काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकेगा।

[स्थानीय संपादकीय: दिल्ली]

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