इराक का संकट जिस तेजी के साथ गहराता जा रहा है उससे निपटने की कोशिश उतनी ही सुस्त दिखाई दे रही है। यह तो पहले दिन से स्पष्ट है कि इराक की मौजूदा सरकार सुन्नी बहुल क्षेत्र कायम करने पर आमादा विद्रोही संगठन आइएसआइएस का मुकाबला करने में सक्षम है, लेकिन यह समझना कठिन है कि संयुक्त राष्ट्र के स्तर पर कोई पहल क्यों नहीं हो पा रही है। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि अमेरिका इराक में हस्तक्षेप की तैयारी करता दिख रहा है और इस काम में कभी उसका जानी दुश्मन रहा ईरान भी उसकी मदद की इच्छा जता रहा है, लेकिन बेहतर होगा कि संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में कोई पहल हो या फिर अमेरिका, ब्रिटेन और ईरान की ओर से जो साझा कार्रवाई की जाए उसे विश्व समुदाय का समर्थन हासिल हो। मुश्किल यह है कि बिना संयुक्त राष्ट्र की पहल के विश्व समुदाय में कोई सहमति बन पाने के आसार कम हैं। जहां शिया बहुल ईरान शियाओं के प्रभुत्व वाली इराक सरकार की मदद करना चाहता है वहीं सऊदी अरब सरकार इराक में किसी तरह के दखल को लेकर उत्साहित नहीं। इस संदर्भ में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि सऊदी अरब पर यह आरोप लगता रहा है कि वह आइएसआइएस को आर्थिक सहायता देने में लगा हुआ है। एक समय सऊदी अरब पर ऐसे ही आरोप तालिबान को समर्थन देने के भी लगे थे। यह किसी से छिपा नहीं कि अफगानिस्तान पर काबिज होने के बाद तालिबान ने अल कायदा को न केवल संरक्षण प्रदान किया, बल्कि उसे फलने-फूलने का अवसर भी प्रदान किया।

यह दुर्योग मात्र नहीं हो सकता कि आइएसआइएस के लड़ाकों को तालिबान के लड़ाकों से भी अधिक संगठित और हिंसक माना जा रहा है। वे जिस तरह इराक के एक के बाद एक शहरों में कब्जा करते जा रहे हैं और अब बगदाद पर कब्जा जमाने की कोशिश में हैं उससे यह साफ है कि अगर उन्हें रोका नहीं गया तो वे और अधिक तबाही मचाएंगे। विगत में अल कायदा का समर्थन पाने वाले आइएसआइएस ने जिस तरह सीरिया के भी कुछ इलाकों में अपना कब्जा जमा रखा है उसे देखते हुए इसकी आशंका बढ़ गई है कि वे सीरिया और इराक के कुछ हिस्सों में उसी तरह काबिज हो सकते हैं जैसे तालिबान अफगानिस्तान में हुआ था। अगर ऐसा हुआ तो इराक का विभाजन होना तय है। ध्यान रहे कि इराक में स्वायत्त कुर्द क्षेत्र की सरकार की इसमें कोई दिलचस्पी नहीं कि आइएसआइएस के लड़ाके अपने कब्जे वाले इलाकों से पीछे हटें। यह स्थिति इराक की स्थितियों को लेकर विश्व समुदाय की चिंता बढ़ा रही है। यदि इराक के हालात और बिगड़ते हैं तो इसके लिए अमेरिका को ही उत्तरदायी ठहराया जाएगा। तेल बहुल इराक के हालात बिगड़ने का असर पूरी दुनिया पर भी पड़ेगा और भारत भी इससे अछूता नहीं रह सकता। वैसे फिलहाल भारत को इस ओर ध्यान देना है कि इराक में फंसे भारतीय नागरिकों को कैसे सुरक्षित वापस लाया जाए? चूंकि वहां के हालात दिन-प्रतिदिन खराब होते जा रहे हैं इसलिए भारत सरकार को अपने नागरिकों की सुरक्षित वापसी के लिए कोई ठोस पहल करनी ही होगी।

[मुख्य संपादकीय]