केंद्र सरकार की ओर से केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की जासूसी होने से इन्कार किए जाने के बावजूद संसद के दोनों सदनों में यह मसला जिस तरह फिर से उठा उससे यह साफ है कि विपक्ष इस मामले को लेकर कुछ ज्यादा ही संजीदा है। यह विचित्र है कि जासूसी तो कथित तौर पर सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री की हो रही थी, लेकिन जो चिंता में दुबला हुआ जा रहा है वह विपक्ष है। हालांकि खुद गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ-साथ नितिन गडकरी ने भी जासूसी मामले को काल्पनिक और निराधार बताते हुए किसी तरह की जांच से इन्कार किया, लेकिन इसमें संदेह है कि विपक्ष चैन से बैठेगा। वह आगे भी इस मसले को उठा सकता है, क्योंकि इस तरह की अपुष्ट खबरें तैर रही हैं कि गडकरी के साथ कुछ और मंत्रियों की जासूसी की कोशिश हुई थी। आम जनता के लिए यह समझना कठिन है कि क्या बिना आग के ही धुआं उठा? अगर यह मामला पूरी तौर पर बेबुनियाद है तो फिर सरकार को यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि एक कथित काल्पनिक मसले ने सिर ही क्यों उठाया और उसके लिए कौन जिम्मेदार है? बेहतर होता कि सरकार की ओर से ऐसा कोई जवाब सामने आता जिससे आम जनता को इसका यकीन होता कि वास्तव में किसी की जासूसी की कहीं कोई कोशिश नहीं हुई और जो बातें सामने आई वे गलतफहमी या शरारत का नतीजा थीं।

अपने देश में नेताओं की जासूसी के मामले पहले भी सामने आए हैं, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से कभी किसी मामले की तह तक जाने की कोशिश नहीं की गई। आज जो कांग्रेस जासूसी के मसले को लेकर गंभीर दिख रही है वह उस समय मौजूदा सरकार सरीखा रवैया अपनाए थी जब उसके शासनकाल में उसके कुछ मंत्रियों की जासूसी की बात सामने आई थी। यह समझना भी कठिन है कि जब देश के अंदर से जासूसी होने-कराए जाने का कोई मामला उठता है तब अलग रवैये का परिचय दिया जाता है और जब कहीं बाहर से ऐसा कुछ होने की खबर आती है तो अलग। चंद दिनों पहले जब यह सामने आया था कि अमेरिकी एजेंसी ने भाजपा समेत दुनिया के कुछ और राजनीतिक दलों की जासूसी कराई थी तो उसे लेकर विदेश मंत्रालय के स्तर से भी गहरी नाराजगी जताई गई थी। माना जा रहा है कि भारत दौरे पर आए अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी के समक्ष भी इस मसले को उठाया जा सकता है। भाजपा की जासूसी के पहले अमेरिका की ओर से भारत सरकार की जासूसी किए जाने का मसला उठा था। तब आश्चर्यजनक रूप से तत्कालीन विदेश मंत्री की ओर से अमेरिका को क्लीनचिट दे दी गई थी। ऐसा तब किया गया था जब कुछ देशों ने सख्त नाराजगी के साथ अमेरिका को फटकार भी लगाई थी। यह अजीब है कि जासूसी पर अमेरिका को क्लीनचिट देने वाले लोग अब हंगामा कर रहे हैं। पता नहीं जासूसी मौजूदा मामले का सच क्या है, लेकिन यह अपेक्षा अवश्य की जाती है कि ऐसी व्यवस्था बने जिससे जासूसी के जिन्न बेवजह सिर न उठा सकें। यह सही है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक-दूसरे की जासूसी कोई नई-अनोखी बात नहीं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि भारत में देशी-विदेशी संस्थाएं बहुत आसानी से सेंध लगाने में सफल रहें।

[मुख्य संपादकीय]