देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान को लेकर अक्सर विवाद सामने आते रहे हैं। एक बार फिर जब 'भारत रत्न' देने पर चर्चा शुरू होते ही फिर से बहस छिड़ गई है। इस बार बहस स्वतंत्रता के महान नायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस को 'भारत रत्न' दिए जाने की अटकलों पर है। क्योंकि, नेताजी के परिवार ने 'भारत रत्न' स्वीकार करने से साफ इन्कार कर दिया है। उनका कहना है कि सबसे पहले नेताजी के गायब होने की गुत्थी सुलझाई जानी चाहिए। नेताजी के परपोते चंद्र कुमार बोस का कहना है कि सरकार मरणोपरांत बताकर उन्हें 'भारत रत्न' दे रही है तो उसे बताना होगा कि उनकी मृत्यु कब हुई लेकिन इसका कोई प्रमाण है कहां? इतना ही नहीं उनका तर्क है कि नेताजी और महात्मा गांधी जैसी हस्तियां इन पुरस्कारों से कहीं ऊपर हैं। नेताजी के एक रिश्तेदार एवं तृणमूल सांसद सुगत बोस का कहना है कि दलीय राजनीति से नेताजी को अलग रखा जाना चाहिए। उनका दर्जा भारत रत्‍‌न से कहीं बड़ा है। राजीव गांधी के बाद नेताजी को भारत रत्‍‌न कैसे दिया जा सकता है? इतिहास बोध वाला कोई भी शख्स इससे सहमत होगा। बोस ने हैरत जताई कि कैसे उन्हें भारत रत्‍‌न दिया जा सकता है जब उनसे पहले 43 लोगों को इस सम्मान से नवाजा जा चुका है। सुगत बोस व चंद्र बोस की बातों में दम है। क्योंकि,'भारत रत्न' देने से ही नेताजी का सही सम्मान होगा ऐसा नहीं है। उनका सच्चा सम्मान तब होगा जब उनके सपनों को पूरा किया जाएगा। देश के इतने बड़े स्वतंत्रता सेनानी के लापता होने का रहस्य अब तक सामने नहीं आया है। क्या यह केंद्र सरकार का कर्तव्य नहीं है कि वह पहले नेताजी के लापता होने की गुत्थी को सुलझाए? उन्हें सम्मानित करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका यह होगा कि उन सरकारी फाइलों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए, जिसमें उनके लापता होने का रहस्य दफन है। नेताजी के करीब 60 परिजन इस मुद्दे पर एकमत हैं। कोई भी सदस्य नेताजी की तरफ से यह सम्मान लेने को तैयार नहीं है। यह सही है कि नेताजी के लिए भारत रत्न जैसी उपाधि व सम्मान उपयुक्त नहीं है। दशकों से नेताजी के परिजन प्रधानमंत्री से लेकर बंगाल की मुख्यमंत्री तक को पत्र लिखकर नेताजी के रहस्यमय तरीके से गायब होने का पता लगाने की मांग करते आ रहे हैं। यहां तक कि नरेंद्र मोदी से भी पत्र लिख कर सर्वोच्च न्यायालय के किसी वर्तमान न्यायाधीश के नेतृत्व में विशेष जांच टीम गठित करने की मांग की थी। इससे पहले भी जांच आयोग गठित किया गया था, इस मामले की जांच करने वाले मुखर्जी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस बात को मानने से इन्कार कर दिया था कि नेताजी की मौत 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में विमान हादसे में मौत हुई थी।

[स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल]