हमारे देश में जाति-धर्म की राजनीति खूब होती है और जब चुनाव हो तो फिर क्या कहना है। ऐसे में बंगाल कहां पीछे रहने वाला है। यहां जाति की नहीं। परंतु, धर्म की सियासत जोरों पर हो रही है। यहां की भी राजनीतिक पार्टियां इसका सहारा लेने के लिए मजबूर हैं। राज्य में तृणमूल से लेकर वाममोर्चा व कांग्रेस अल्पसंख्यकों के मुद्दे जमकर उछाल रहे हैं। वे विभिन्न मंचों से मुस्लिम हितों की बात कहने के साथ-साथ भाजपा व अन्य दलों पर निशाना साध कर खुद को बेहतर प्रमाणित कर रहे हैं। तृणमूल प्रमुख व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो मुस्लिम वोट बैंक बनाए रखने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती हैं। अभी जितनी चुनावी सभाओं को वह संबोधित कर रही हैं उनमें मुस्लिम वोट बैंक मुख्य मुद्दा बना हुआ है। यह भी बताना नहीं भूल रही है कि उन्होंने मुस्लमानों के लिए क्या-क्या कार्य किए हैं और 34 वर्षो के वामपंथी शासन में क्या हुआ था। इसके पहले भी मुख्यमंत्री ने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में शिलान्यास उद्घाटन के जरिए अल्पसंख्यकों का दिल जीतने का प्रयास किया। लोकसभा चुनाव करीब देख कर ममता पूरी ताकत से मुसलमानों को रिझाने की कोशिश में है। वहीं सर्वहारा का मोर्चा कहे जाने वाला वाममोर्चा के नेता भी मुस्लिमों को अपनी ओर करने के लिए पुस्तिका जारी कर ममता सरकार के कार्यो पर सवाल उठा रहे हैं। परंतु, सवाल यह है कि सभी संप्रदाय व धर्म के लोगों के साथ सर्वहारा की राजनीति में क्या यह उचित है कि तुष्टीकरण की सियासत हो? कहना नहीं होगा कि लोकसभा चुनाव सिर पर होने और मुकाबला चतुष्कोणीय होने से ममता ही नहीं वाममोर्चा से लेकर कांग्रेस तक की नींद उड़ी है। सभी को पता है कि बंगाल की कुल 42 लोकसभा सीटों में से 15-20 सीटें ऐसी हैं जहां पर जीत का आंकड़ा मुस्लिम मतदाता तय करते हैं। इनमें मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तार दिनाजपुर, वीरभूम व दक्षिण 24 परगना जिले में आने वाली लोस सीटों पर तो मुस्लिम पूरी तरह से निर्णायक हैसियत में हैं। बंगलादेश की सीमा से सटे इन जिलों की पहचान कभी माकपा के पैकेट वोट के रूप में होती थी। वैसे, यहां कांग्रेस का प्रभाव भी अच्छा रहा है। अब तृणमूल कांग्रेस ने तेजी से अपनी पैठ बनाई है, जबकि वाममोर्चा कमजोर है। इसी तरह नदिया, हावड़ा, कूचबिहार, उत्तार चौबीस परगना, दक्षिण दिनाजपुर और कोलकाता ऐसे जिले हैं, जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 28 फीसद से अधिक है। स्पष्ट है कि बंगाल में अधिक लोस सीटें जीतने के लिए मुस्लिम मतदाताओं का पूरा साथ चाहिए। ऐसे में वोट बैंक बनाए रखने के लिए मौकापरस्त राजनीति जमकर हो रही है। तृणमूल, माकपा और कांग्रेस अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए हर हथकंडे अपनाने को तैयार है। अर्थात, बंगाल में भी धर्म के आधार पर राजनीति चरम पर पहुंच चुकी है।

[स्थानीय संपादकीय, पश्चिम बंगाल]