---मतदाताओं की सोच और पसंद अब बदल चुकी है। चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेकर वे इसे जाहिर भी कर रहे हैं।-----इन दिनों प्रदेश की जनता दिलो-दिमाग को पूरी तरह खुला रख पूरे विवेक से अपना फैसला सुनाने की प्रक्रिया से गुजर रही है। जनता ने किसके फैसले में क्या लिखा है, यह तो बाद में पता चलेगा, फिलहाल फैसले की इबारत लिखने की उसकी तेजी और उत्साह काबिलेतारीफ है। पिछले दो चरणों की तरह तीसरे चरण में भी उसने बड़ी संख्या में घरों से बाहर निकल पोलिंग बूथ की तरफ रुख किया और उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला मतपेटियों में बंद कर दिया। जनता के इस रुख, रवैये और तेवर से नेताओं के पसीने छूटने लगे हैं। विकास और जनकल्याण के मुद्दों से भरे घोषणापत्रों से चुनावी प्रचार का आगाज भले ही किया हो, पर मतदाताओं की सोच-समझ और उसके तार्किक सवालों से नेता निरुत्तर हैं। तमाम नेताओं के चेहरे पर हताशा साफ दिखने लगी है। चुनावी रैलियों में उनके फूले हाथ-पांव और बनते-बिगड़ते हाव-भाव देख सहज अनुमान लगाया जा सकता है। जनता का रुख मोड़ने के प्रयास में वे क्या बयानबाजी या भाषणबाजी कर रहे हैं, उन्हें खुद ही समझ नहीं आ रहा है। लेकिन उनके सामने ऐसी ही स्थिति उत्पन्न करने की जरूरत थी। हमारा लोकतंत्र परिपक्व होने के साथ ही जनता भी इस मामले में परिपक्व हो चुकी है। यह संकेत है कि एकतरफा भाषण सुनना भले अभी उसकी मजबूरी हो, पर एक दिन ऐसा भी आएगा, जब नेताओं की उपस्थिति में जनता के बीच मुद्दे दर मुद्दे उठेंगे और वास्तविक रूप से जनता उनके विचार जानेगी। उनके विवेक, सोच और दृष्टिकोण को परखेगी। वास्तविक रूप से प्रत्याशियों में तुलना करेगी और फिर तय करेगी कि किस नेता को आगे लाना है। स्वच्छ, शिक्षित और प्रगतिशील विचारों के उम्मीदवारों को तरजीह तभी मिलेगी। जनता भी निजी स्वार्थ और लाभ के दायरे से बाहर आकर जनकल्याण और सामुदायिक, सामाजिक उन्नयन, उन्नति को तरजीह देने वाले उम्मीदवारों को आगे लाने का मन बनाएगी तो पार्टियों की सोच में भी बदलाव आएगा। वे भी ऐसे ही प्रत्याशी को टिकट देंगे। अभी तो फिलहाल पार्टियां ऐसे प्रत्याशियों को टिकट देने पर ध्यान देती हैं जो जिताऊ हो या फिर टिकट की अच्छी खासी कीमत दे सके। जो भी हो, मतदाताओं की सोच और पसंद बदल चुकी है। वे इसे चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेकर जाहिर भी कर रहे हैं। अब पाटियरें के हाईकमान को विचार करना है कि वे किस दिशा में जाएंगे। कुल मिलाकर नेता अब चाहे कुछ भी कर लें, पर जीतेगी जनता ही।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]