सारधा का सिरदर्द
बहुचर्चित सारधा चिट फंड घोटाले की जांच की आंच अब तेजी से तृणमूल कांग्रेस की ओर बढ़ रही है। जिस तरह से केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) ने तृणमूल के करीबी पूर्व पुलिस अधिकारी रजत मजूमदार के घर पर छापेमारी की और उसी दिन प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने राज्य के कपड़ा मंत्री श्यामापद मुखर्जी को तलब किया है उससे तृणमूल नेता व मंत्री का सिर दर्द बढ़ना लाजिमी है। अब तक तृणमूल प्रमुख व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती रही हैं कि सारधा कांड से उनके नेता व मंत्री का कुछ लेना देना नहीं है। जिसका लेना-देना था उसे जेल में भेज चुकी हूं। परंतु, जिस तरह से ईडी और सीबीआइ की सूची में नेता व मंत्री के नाम जुड़ रहे हैं उससे तृणमूल प्रमुख की चिंता जरूर बढ़ी होगी। क्योंकि, सीबीआइ के निदेशक पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि सारधा कांड में संलिप्त किसी को भी नहीं बख्शा जाएगा, चाहे वह किसी भी पद व किसी भी कार्य से क्यों न जुड़ा हो। सीबीआइ व ईडी भले ही अलग-अलग जांच में जुटी है। परंतु, दोनों का उद्देश्य एक ही है सारधा के दोषियों को पकड़ना। आखिरकार इस घोटाले में कितने लोग जुड़े हैं? किस-किस ने सारधा कांड के सूत्रधार सुदीप्त सेन के साथ लोगों के खून-पसीने की कमाई को लूटा है? यह जानने की कोशिश में सीबीआइ ने पिछले गुरुवार को कोलकाता समेत देशभर में 28 स्थानों पर छापेमारी की थी जिसमें से 22 ठिकाने सिर्फ कोलकाता व आसपास इलाके के थे। इन तलाशी अभियान का मुख्य केंद्र बिंदु में तृणमूल के करीबी पूर्व आइपीएस अफसर रजत मजूमदार थे, जिन का सुदीप्त सेन, तृणमूल से निलंबित राज्यसभा सांसद कुणाल घोष समेत इस मामले में गिरफ्तार अन्य आरोपियों ने पूछताछ में बार-बार नाम लिया था। परंतु, जांच के लिए गठित राज्य पुलिस की सीट ने कभी भी मजूमदार पर हाथ डालने की कोशिश क्यों नहीं की, यह भी सवाल अब उठ रहा है। सारधा कांड में नए-नए नाम के सामने आने से साफ रहा है कि इस कांड की जांच के लिए राज्य सरकार द्वारा गठित स्पेशल जांच टीम ने पूरी निष्पक्षता से पड़ताल नहीं की। यदि मामले की सीबीआइ जांच नहीं होती तो शायद ही इतने बड़ी साजिश में जुड़े लोगों के बारे में पता चलता। सीबीआइ व ईडी जांच के बारे में राज्य के शहरी विकास मंत्री व तृणमूल नेता फिरहाद हकीम का कहना है कि राजनीतिक जांच हो रही है। पहले जो जांच थी वह सही था। यानी अब जब कि तृणमूल नेताओं के गिरेबान पर सारधा कांड की जांच का शिकंजा कसने लगा है तो उसे राजनीति जांच कहना क्या उचित है? यह बात समझने व विचार करने की जरूरत है। क्योंकि, यह मामले छोटी नहीं इस में लाखों गरीब लोगों की गाढ़ी कमाई की लूट हुई है। इसीलिए जांच को लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिए।
[स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल]