दिल्ली में भीषण गर्मी के बीच गंभीर बिजली संकट चिंताजनक है। यह स्थिति सरकार और बिजली कंपनियों की अदूरदर्शिता की परिचायक है। गर्मी के दिनों में बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए बिजली की उचित व्यवस्था करने व विद्युत वितरण नेटवर्क को दुरुस्त रखने की जिम्मेदारी सरकार और बिजली कंपनियों की है। लेकिन न तो विद्युत वितरण नेटवर्क की जांच कर उसे गर्मी में अधिक लोड डोलने के लिए तैयार किया गया और न ही किसी आपात स्थिति से निबटने के लिए बिजली की अतिरिक्त उपलब्धता सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया जिसका खामियाजा आज दिल्लीवासियों को भुगतना पड़ रहा है। कई इलाकों में पूरी रात बिजली नहीं आ रही है तो कुछ इलाके ऐसे भी हैं जहां लोगों को 24-24 घंटे बिजली किल्लत से दो-चार होना पड़ रहा है। बिजली का यह संकट पेयजल आपूर्ति की राह में भी बाधा बन रहा है जिसकी वजह से हाहाकार मचना लाजिमी है।

यह सही है कि बिजली संकट के लिए विपक्षी दल सत्तारूढ़ भाजपा को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और मौजूदा समय में इस समस्या से निबटने की जिम्मेदारी भी भाजपा की है। लेकिन इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि विद्युत वितरण नेटवर्क के दुरुस्त न होने और आपात स्थिति में बिजली की पर्याप्त व्यवस्था न होने के लिए हाल ही में सत्ता में आई भाजपा सरकार को दोषी ठहराया जाना इन दलों द्वारा राजनीतिक रोटी सेंकने की कवायद मात्र है। केंद्र सरकार बिजली समस्या के हल के लिए आगे आई है, स्थिति में सुधार के कुछ उपाय किए गए हैं और दस दिनों में हालात बदलने का दावा भी किया गया है। लेकिन यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि दिए गए समय में स्थिति में सुधार हो जाए। सुधार के लिए किए जा रहे प्रयासों की दिन-प्रतिदिन के स्तर पर सघन निगरानी की जानी चाहिए ताकि लापरवाही के लिए कहीं कोई स्थान शेष न रहे। राष्ट्रीय राजधानी में ऐसी समस्या न सिर्फ यहां के लोगों के लिए परेशानी का सबब बनती है, बल्कि विश्व पटल पर दिल्ली की छवि को भी धूमिल करती है। मौजूदा समस्या के समाधान के साथ ही विद्युत वितरण तंत्र की जांच और मरम्मत की दीर्घकालीन योजना बनाई जानी चाहिए। साथ ही दिल्ली में बिजली उत्पादन बढ़ाने की दिशा में भी गंभीर प्रयास किए जाने चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी किसी स्थिति में दिल्लीवासियों को इस तरह की परेशानी से दो-चार न होना पड़े।

[स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]