आयोग की विफलता
बंगाल में निष्पक्ष व शांतिपूर्ण चुनाव कराने में चुनाव आयोग के कार्यो पर एक बार फिर सवालिया निशान लग गया है।
बंगाल में निष्पक्ष व शांतिपूर्ण चुनाव कराने में चुनाव आयोग के कार्यो पर एक बार फिर सवालिया निशान लग गया है। पहले चरण के पहले दिन के मतदान के 48 घंटे के भीतर मत प्रतिशत 3.3 बढ़ने पर सवाल उठा था तो लगा कि आयोग दूसरे दिन यानी आज के मतदान में अधिक सख्ती बरतेगा, पर ऐसा नहीं दिखा। यदि निष्पक्ष, निर्बाध व शांतिपूर्ण मतदान हुआ होता तो छह घंटे में एक हजार से अधिक शिकायतें आयोग को नहीं मिली होतीं। इस चरण में भी खासकर विरोधी राजनीतिक दलों का आरोप रहा कि मतदान में धांधली हुई। अभी पांच चरण के मतदान बाकी हैं और यह प्रक्रिया 5 मई तक चलेगी।
उम्मीद है कि आगे के चरणों में आयोग अपनी चाक-चौबंद व्यवस्था से कोई गड़बड़ी नहीं होने देगा। वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव से पहले तक तृणमूल कांग्रेस के नेताओं द्वारा लगातार यह आरोप लगाया जाता था कि माकपा वर्षो से चुनाव धांधली कर जीत हासिल करती थी। इसके साक्ष्य भी चुनाव आयोग को उपलब्ध कराए जाते थे। अब वही आरोप तृणमूल पर लग रहा है। दरअसल स्वतंत्र संस्था होने के नाते आयोग का यह दायित्व बनता है कि लोगों को उसके वोट देने के मौलिक अधिकार की रक्षा की जाए।
इसके प्रति आयोग को और गंभीर होना होगा। कुछ वर्षो से विशेषकर जब से टीएन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त बने, लोगों में वोट देने के प्रति दिलचस्पी बढ़ी। उसके बाद से जो भी मुख्य आयुक्त हुए, उनकी पहली प्राथमिकता रही है कि चुनाव में अशांति न हो। लोग अपनी स्वतंत्रता से वोट दे सकें और कोई दूसरा किसी का वोट न दे। चूंकि यह आरोप कि सत्तारूढ़ दल के समर्थक विपक्षी समर्थकों को अपने पक्ष में वोट देने के लिए डराते-धमकाते रहते हैं, इसलिए मतदाताओं के मन से भय निकालने के लिए आयोग ने सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की, ताकि बूथों पर कोई गड़बड़ी नहीं हो सके। जैसा कि पंचायत, निकाय व लोकसभा चुनाव के दौरान हुआ था।
इस बार मतदाताओं के मन में भय इसलिए भी नहीं था, क्योंकि मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने चुनाव तिथि की घोषणा के पहले ही राज्य में केंद्रीय बल तैनात कर दिया था। इसके बाद आयोग बंगाल में छह चरण में सात दिन मतदान कराने का फैसला किया, ताकि वैज्ञानिक धांधली या अन्य प्रकार की गड़बड़ी की बात सामने नहीं आए। तैयारी भी उसी तरह से शुरू हुई। पुरुलिया, बांकुड़ा और पश्चिम मेदिनीपुर की 18 सीटों पर चार अप्रैल को मतदान संपन्न कराने के बाद सुरक्षाकर्मी दूसरे दिन के मतदान के लिए तैनात कर दिया गया। उसी तरह से पर्यवेक्षकों को भी विधानसभा क्षेत्रों के बारे में जानकारी लेने के लिए पूरा समय मिला। इसके बावजूद दूसरे दिन तीनों जिलों में अशांति, मारपीट, हमले होते रहे। ऐसे में आयोग की निष्पक्ष मतदान पर सवाल खड़ा हो गया है।
[ स्थानीय संपादकीय-पश्चिम बंगाल ]