लोकसभा चुनावों के परिणाम सामने आते ही मोदी सरकार के आम बजट की प्रतीक्षा शुरू हो गई थी। जैसे-जैसे सरकार के शपथग्रहण का समय करीब आता गया, उससे अपेक्षाएं भी बढ़ने लगीं, लेकिन अच्छे दिन आने की संभावना पर तब विराम सा लगता हुआ दिखा जब प्रधानमंत्री ने बिना किसी लाग लपेट के कहा कि आर्थिक हालात ऐसे हैं कि कड़वी दवा के बगैर काम चलने वाला नहीं है। इसके बाद मानसून के कमजोर होने के अंदेशे की पुष्टि होने के चलते इस बात की आशंका और भी बढ़ गई थी कि आम बजट में वित्तामंत्री अरुण जेटली को न चाहते हुए भी कुछ कठोर कदम उठाने पड़ सकते हैं। इसकी झलक आर्थिक समीक्षा ने भी दिखाई, लेकिन तमाम अंदेशे के बावजूद यह राहतकारी है कि आम बजट के जरिये देश की जनता को कहीं कोई कड़वी दवा नहीं दी गई और यही इस बजट की एक बड़ी खूबी है। वित्तामंत्री ने तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद सबको कुछ न कुछ देने के साथ-साथ सुधारों का मार्ग प्रशस्त करने की भी हरसंभव कोशिश की है। नि:संदेह इस क्रम में कुछ क्षेत्रों को मामूली अथवा प्रतीकात्मक राहत ही मिल पाई है और इसे लेकर सवाल उठने स्वाभाविक हैं, लेकिन इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि मोदी सरकार ने कुछ बड़े बुनियादी बदलावों की आधारशिला भी रखी है। प्रतिकूल परिस्थितियों में इससे अधिक राहत की उम्मीद भी नहीं की जाती थी।

आम बजट के आलोचकों को यह ध्यान रखने की जरूरत है कि यह भी एक किस्म का अंतरिम बजट ही है। सरकार ने अगले आठ महीनों की रूपरेखा प्रस्तुत की है और वह भी तब जब उसके पास बजट तैयार करने के लिए बहुत अधिक समय नहीं था। इस दौरान इराक संकट ने भी सरकार को अपनी प्राथमिकताओं में हेरफेर करने के लिए विवश किया होगा। इस पर आश्चर्य नहीं कि विपक्षी दलों के नेताओं का सुर लगभग वैसा ही है जैसा रेल बजट को लेकर था। उनकी प्रतिक्रिया कुल मिलाकर विरोध के लिए विरोध वाली राजनीति का उदाहरण है। यह निराशाजनक है कि अपने देश में विपक्षी दलों द्वारा सरकार के हर निर्णय की और खासकर रेल बजट एवं आम बजट की आलोचना करना एक फैशन बन गया है। इस फैशन के दुष्प्रभाव में कई बार घोर अतार्किक और हास्यास्पद टिप्पणियां भी की जाती हैं। यह ठीक नहीं। राजनीतिक दलों को अपनी इस प्रवृत्तिका परित्याग करना चाहिए। आम बजट के जरिये नई सरकार के नीति-नियंताओं ने सुधार की जो तस्वीर पेश की है वह फिलहाल प्रभावी दिख रही है, लेकिन उसे पूरे तौर पर आकर्षक बनाने के लिए कुछ अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। ये अतिरिक्त प्रयास योजनाओं और सुधार के उपायों के क्रियान्वयन में दिखने चाहिए। जब ऐसा होगा तभी उन अपेक्षाओं के पूरे होने का आधार तैयार होगा जो मोदी सरकार से बुनियादी बदलाव के संदर्भ में की गई हैं। यह अच्छी बात है कि नई सरकार राजनीतिक इच्छाशक्ति से लैस है और उसके पास जरूरी फैसले लेने तथा उन पर अमल करने की शक्ति भी है। यह इच्छाशक्ति उन सारे उपायों पर अमल में सहायक बननी चाहिए जो आम बजट के जरिये बताए गए हैं।

[मुख्य संपादकीय]