हरदोई (जेएनएन)। उत्तर प्रदेश का एक विधानसभा क्षेत्र ऐसा भी रहा जहां चुनाव में पंजे को मजबूत मिली, निर्दलीयों ने दिल जीता, हाथी चिंघाड़ा और साइकिल दौड़ी लेकिन जनसंघ या भाजपा सफलता से दूर रहीं।यहगचान वाला क्षेत्र हरदोई सदर है। यहां की राजनीतिक क्षेत्र में अलग पहचान रही। वैसे तो हरदोई सदर विधान सभा क्षेत्र के मतदाताओं ने सभी दलों को मौका दिया। परिसीमन में तीन विधान सभा क्षेत्र हरदोई-सुरसा, बावन-हरियावां और अहिरोरी का भूगोल बिगाड़ कर नए विधानसभा क्षेत्र के रूप में हरदोई की सीमांकन हुआ पर भूगोल तो जरूर बिगड़ा लेकिन इतिहास अभी कायम है। जहां दो परिवारों के बीच हरदोई की राजनीति सिमट गई वहीं भाजपा को हीत हासिल नहीं हो सकी।
यह भी पढ़ें: अखिलेश यादव के प्रति कठोर मुलायम, भेंट करने पहुंचे सीएम पांच मिनट में ही लौटेआजादी के बाद से उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों के इतिहास में देंखे तो 1951 में हरदोई (पूर्वी) नाम से पहचान वाली यह सीट आरक्षित श्रेणी में थी और सबसे पहले चुनाव में बाबू किन्दर लाल 21247 मत हासिल कर विधायक बने थे। इसी वर्ष किन्दर लाल के सांसद भी चुने गए और उपचुनाव हुआ तो कांग्रेस के चंद्रहास 27160 मत विजयी हुए। वर्ष 1957 में बाबू बुलाकी राम कांग्रेस से 42530 मत हासिल कर विधानसभा पहुंचे। 1962 में कांग्रेस ने महेश सिंह को ही मैदान में उतारा और वह 13510 मत हासिल कर निर्वाचित हुए। 1967 में हरदोई के दिग्गज नेता धर्मगज सिंह निर्दल लड़े और 12953 मतों के साथ जीते। इस चुनाव में कांग्रेस के राधाकृष्ण अग्रवाल दूसरे स्थान पर रहे थे। 1969 में धर्मगज सिंह की पत्नी आशा कांग्रेस से उतरीं और 19392 मत पाकर विधानसभा पहुंचीं। 1974 के चुनाव में कांग्रेस ने श्रीश चन्द्र अग्रवाल को लड़ाया और वह 16663 मत लेकर विजयी हुए।
यह भी पढ़ें: UP Elections 2017 : रामगोपाल यादव लखनऊ पहुंचे, कहा कांग्रेस से गठबंधन होगाआपातकाल के बाद 1977 की विरोधी लहर में धर्मगज सिंह ने 27117 मतों के साथ सीट कांग्रेस की झोली में डाल दी। 1980 में सदर सीट से कांग्रेस ने बाबू श्रीशचंद्र अग्रवाल के पुत्र नरेश अग्रवाल को मैदान में उतारा और 28597 मत हासिल कर विधानसभा में कदम रखा था। भाजपा के दिग्गज नेता और जनसंघ के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गंगाभक्त सिंह 14295 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे। 1985 में कांग्रेस ने अपने ही विधायक नरेश अग्रवाल की जगह उमा त्रिपाठी को टिकट दिया और वह 24039 मत पाकर निर्वाचित हुई थी। वर्ष 1989 में कांग्रेस ने फिर उमा त्रिपाठी को ही टिकट दिया। नरेश अग्रवाल को दूसरे जिले भेजने की बात कही गई लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकरा कर वह सदर से निर्दल चुनाव में लड़ा और 36402 मत हासिल कर विजय हुए। कांग्रेस की उमा त्रिपाठी 26207 वोट के साथ रनर रहीं।
यह भी पढ़ें: 'साइकिल' जीतने के बाद पिता मुलायम से आशीर्वाद लेने पहुंचे अखिलेश यादव1991 की राम-लहर में कांग्रेस ने फिर से नरेश अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया। इस चुनाव में काफी करीबी मुकाबला हुआ था और 30370 मत मिले। 1993 के चुनाव में सपा व बसपा ने गठबंधन से चुनाव लड़ा लेकिन कांग्रेस के नरेश अग्रवाल 41605 मत हासिल कर जीत हासिल की। 1996 के चुनाव के बाद नरेश अग्रवाल ने राजनीतिक दिशा को मोड़ दिया और कांग्रेस व बसपा के गठबंधन में वह 56744 मत लेकर जीते। वर्ष 2002 में नरेश अग्रवाल पहली बार समाजवादी पार्टी की साइकिल से चुनाव लड़े और 63825 मत हासिल कर विजय पाई तो बसपा के शिवप्रसाद 37242 वोट मिले थे। 2007 में नरेश अग्रवाल फिर
समाजवादी पार्टी से लड़े और 67317 वोट हासिल कर जीते। मई 2008 में नरेश अग्रवाल विधानसभा की सदस्यता और सपा छोड़ बसपा में चले गए और हरदोई सदर की सीट अपने पुत्र नितिन अग्रवाल को सौंप दी। उपचुनाव में बसपा से नितिन अग्रवाल 65533 वोट लेकर निर्वाचित हुए। 2012 के विधानसभा चुनाव से दिसंबर 2011 में नरेश अग्रवाल फिर सपा में आ गए और 2012 में नितिन अग्रवाल को सपा ने उम्मीदवार बनाया तो उन्होंने 110063 मत हासिल कर रिकार्ड जीत हासिल की थी। हरदोई विधान सभा का भूगोल देंखे तो पूर्व में हरदोई- सुरसा, बावन हरियावां और अहिरोरी क्षेत्र का काटकर हरदोई सदर बनाई गई। भूगोल तो बिगड़ गया लेकिन इतिहास अभी भी कायम है। सभी चुनावों में देखे तो न कभी जनसंघ सफल हुई और न ही भाजपा का कमल खिल पाया था।
यह भी पढ़ें: मेमोरी गर्ल की सीएम अखिलेश से गुहार, अंकल अब तो करा दो एडमिशनसरपट दौड़ा था घोड़ा तो दहाड़ा था शेरहरदोई सदर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा छोड़कर हर दल को मौका मिला तो यहां पर घोड़ा भी दौड़ा और शेर भी दहाड़ा। वर्ष 1967 के विधान सभा चुनाव में धर्मगज सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में उनका चुनाव चिह्न घोड़ा था और वह विधायक चुने गए। तो 1989 के विधानसभा चुनाव में नरेश अग्रवाल ने निर्दलीय चुनाव लड़ा, उन्हें शेर चुनाव चिह्न मिला था और वह भी शेर से विधायक चुने गए। हरदोई सदर सीट का इतिहास रहा कि यही दोनों निर्दलीय विधायक चुने गए थे।
यह भी पढ़ें: एशिया बुक की मेमोरी गर्ल बनीं प्रेरणा, वियतनामी युवक का तोड़ा रिकॉर्डवर्ष - विधायक -पार्टी1951- चंद्रहास- कांग्रेस1951- किंदरलाल- कांग्रेस1957- महेश सिंह- कांग्रेस1957 बुलाकीराम वर्मा- कांग्रेस1962- महेश सिंह कांग्रेस1967- धर्मगज सिंह निर्दल1969- आशा सिंह कांग्रेस1974- श्रीशंचद्र- कांग्रेस1977- धर्मगज सिंह - कांग्रेस1980- नरेश अग्रवाल- कांग्रेस1985- उमा त्रिपाठी- कांग्रेस1989- नरेश अग्रवाल- निर्दल1991- नरेश अग्रवाल- कांग्रेस1993- नरेश अग्रवाल- कांग्रेस1996- नरेश अग्रवाल- कांग्रेस2002- नरेश अग्रवाल- सपा2007- नरेश अग्रवाल- सपा2008- नितिन अग्रवाल- बसपा2012- नितिन अग्रवाल- बसपा( वर्ष 2008 में उपचुनाव हुआ था। )
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