'शुभ मंगल सावधान' समेत इन 11 फ़िल्मों के सब्जेक्ट बोल्ड हैं, लेकिन इन पर बात करना ज़रूरी
मेल इंफ़र्टिलिटी को समाज में अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता और बीमारी से ज़्यादा इसे कमज़ोरी के तौर पर देखा और समझा जाता है।
By मनोज वशिष्ठEdited By: Updated: Sat, 02 Sep 2017 10:29 AM (IST)
मुंबई। बॉलीवुड फ़िल्में सिर्फ़ मनोरंजन नहीं करतीं, बल्कि कई बार कहानियां समाज को आईना दिखाने का काम भी करती हैं। अलग-अलग दौर में ऐसी कहानियां और मुद्दे पर्दे पर आते रहे हैं, जिनको लेकर समाज में एक नकारात्मक सोच या पूर्वाग्रह रहता है। फ़िल्मों के ज़रिए ऐसी सोच पर प्रहार किया जाता रहा है।
आरएस प्रसन्ना निर्देशित फ़िल्म 'शुभ मंगल सावधान' मेल इंफ़र्टिलिटी यानि पुरुषों में नपुंसकता के विषय पर आधारित है। मेल इंफ़र्टिलिटी को समाज में अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता और बीमारी से ज़्यादा इसे कमज़ोरी के तौर पर देखा और समझा जाता है। इसी मुद्दे पर 'शुभ मंगल सावधान' बात करती है। आयुष्मान खुराना और भूमि पेडनेकर लीड रोल्स में हैं। फ़िल्म पहली सितंबर को रिलीज़ हो चुकी है।यह भी पढ़ें: पापा कहते थे बड़ा नाम करेगा, पर ये 8 स्टार किड्स तो हो गये गुमनाम
एक्टर श्रेयस तलपड़े 'पोस्टर बॉयज़' से डायरेक्टोरियल करियर शुरू कर रहे हैं। इस फ़िल्म में सनी देओल और बॉबी देओल लीड रोल्स में नज़र आएंगे। फ़िल्म की कहानी नसबंदी को लेकर समाज में फैली भ्रांतियों पर आधारित है। 'पोस्टर बॉयज़' 8 सितंबर को रिलीज़ हो रही है।
अश्विनी अय्यर तिवारी की डायरेक्टोरियल डेब्यू फ़िल्म 'निल बटे सन्नाटा' ने प्रौढ़ शिक्षा के मुद्दे को एड्रेस किया था। फ़िल्म में स्वरा भास्कर ने हाउस मेड का रोल निभाया था, जो एक बच्चे की मां होती है और इसकी एजुकेशन के लिए वो ख़ुद भी स्कूल में दाख़िला लेती है।यह भी पढ़ें: इतिहास के लीजेंड्स जब उतरे सिल्वर स्क्रीन पर, कोई बना अकबर तो कोई अशोकअलंकृता श्रीवास्तव की फ़िल्म 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्क़ा' उम्रदराज़ महिलाओं की सेक्सुअल लाइफ़ को लेकर समाज में फैले पूर्वाग्रहों को दर्शाती है। फ़िल्म में रत्ना पाठक के किरदार के ज़रिए इस इशू को हाइलाइट किया गया।गौरी शिंदे की फ़िल्म 'इंग्लिश विंग्लिश' में गृहिणियों को रसोई घर तक सीमित कर देने वाली पुरुषवादी सोच पर कमेंट किया गया था। श्रीदेवी ने इस फ़िल्म में लीड रोल निभाया।यह भी पढ़ें: आर्यन दिखने लगे हैं बिल्कुल पापा शाह रुख़ की तरह, 5 तस्वीरें हैं गवाहकंगना रनौत की बेहतरीन अदाकारी वाली फ़िल्म 'क्वीन' शादी टूटने के सोशल स्टिग्मा को हाइलाइट करती है। विकास बहल की इस फ़िल्म में कंगना के किरदार के ज़रिए समझाने की कोशिश की गयी कि शादी टूटना लड़की के लिए कोई कलंक नहीं है।शूजित सरकार की डायरेक्टोरियल फ़िल्म 'विक्की डोनर' में स्पर्म डोनर जैसे अहम इशू के बारे में बात की गयी, जिसकी चर्चा करना आम ज़िंदगी में लगभग वर्जित समझा जाता है। हिंदी सिनेमा में इस सब्जेक्ट को इससे पहले कभी नहीं उठाया गया। आयुष्मान खुराना और यामी गौतम ने फ़िल्म में लीड रोल्स निभाये।यह भी पढ़ें: इन 12 तस्वीरों में देखिए ईशा देओल की मॉम टू बी जर्नीप्रीति ज़िंटा ने अपने करियर की शुरुआत में 'क्या कहना' जैसी बोल्ड फ़िल्म में काम किया था। ये फ़िल्म शादी से पहले प्रेग्नेंसी को लेकर सोशल टैबू पर बात करती है। फ़िल्म में सैफ़ अली ख़ान ने मेल लीड रोल निभाया था। कुंदन शाह ने फ़िल्म को डायरेक्ट किया था।रेवती डायरेक्टेड फ़िल्म 'फिर मिलेंगे' में एड्स को लेकर सामाजिक सोच पर चोट की गयी। फ़िल्म में शिल्पा शेट्टी ने लीड रोल निभाया था, जबकि सलमान ख़ान ने गेस्ट एपीयरेंस किया और अभिषेक बच्चन ने अहम किरदार निभाया।यह भी पढ़ें: अभिषेक से आदर तक... इन 8 स्टार किड्स के डेब्यू में है ये कॉमन बातओनीर की फ़िल्म 'माय ब्रदर निखिल' में भी एचआईवी संक्रमण की वजह से होने वाली सामाजिक दिक्कतों को उठाया गया। फ़िल्म में संजय सूरी और जूही चावला लीड रोल्स में थे।ऋषि कपूर के करियर की बेहतरीन फ़िल्मों में से एक 'प्रेम रोग' में विधवाओं को लेकर समाज और परिवार के पूर्वाग्रहों को दिखाया गया था। फ़िल्म में पदमिनी कोल्हापुरे ने फ़ीमेल लीड रोल निभाया था। फ़िल्म का डायरेक्शन राज कपूर ने किया था।यह भी पढ़ें: ये हैं बॉलीवुड के वो सितारे जिन्होंने एक-दो नहीं की हैं तीन-चार शादियां