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पिंक इम्प्रेशन: बच्चन की 'No' सुनकर जब देश 'Yes' कहना सीख गया

उम्मीद है बॉलीवुड के बड़े स्टूडियोज और बड़े निर्माता, मसाला फ़िल्मों के अलावा 'पिंक' जैसी फ़िल्मों को भी बढ़ावा दे जिस से समाज का भी फायदा हो।

By Hirendra JEdited By: Updated: Sat, 24 Dec 2016 01:58 PM (IST)
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मुंबई। साल 2016 मेँ भी बॉक्स ऑफिस पर बड़ी बड़ी फ़िल्में आयीं, कुछ सफल रहीं कुछ बेहद सफल, कुछ औंधे मुंह गिरी और कुछ ने पानी तक न मांगा। 'चॉक एंड डस्टर', 'निल बटे सन्नाटा', 'जुगनी' जैसी कुछ फ़िल्में ऐसी आयी, जिन्होंने प्रमोशनल बजट के चलते बॉक्स ऑफिस पर वैसी सफलता तो हासिल नहीं की पर सिनेमाई भविष्य को लेकर आश्वस्त कर दिया कि ऐसी फ़िल्मों को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

वहीं 'एयरलिफ्ट' और 'नीरजा' जैसी फिल्में भी हिट हुई जिसने फ़िल्म इंडस्ट्री का ये भ्रम तोड़ा की सफल होने के लिए मसाला होना जरुरी है। इस साल सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब देश ने एक स्वर में कहा - "नो मीन्स नो"। जी हां, अमिताभ बच्चन और चार लड़कियों ने फ़िल्म 'पिंक' के जरिये देश में महिलाओं की स्थिति और और उन्हें कॉमोडिटी की तरह यूज करने की धारणा को नई सोच दी। 'पिंक' ने सन्देश देने के साथ बॉक्स ऑफिस पर भी कमाल दिखाया जिसकी उम्मीद बनाने वालों को भी नहीं थी। 'पिंक' ने ये बताया कि एक लड़की से सम्बन्ध बनाने के लिए, भले वो पत्नी ही क्यों न हो, उसकी मर्ज़ी का सम्मान जरुरी है। इस विचार ने देश भर को सोचने पर मजबूर कर दिया। "नो मीन्स नो", ये संवाद गली मोहल्ले तक में सुनायी देने लगा। एक सेवानिवृत्त उम्रदराज़ वकील के रूप में अमिताभ बच्चन ने फिर एक बार साबित कर दिया की उन्हें सदी का महानायक यूं ही नहीं कहा जाता।

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'मुन्ना भाई एमबीबीएस' हो या '3 इडियट्स', 'स्वदेस' हो या 'रंग दे बसन्ती, जब भी ऐसी विचारोत्तेजक फ़िल्में आती हैं, तो इस बात का एहसास होता है कि फ़िल्में वाकई समाज का आईना होती है। उम्मीद है बॉलीवुड के बड़े स्टूडियोज और बड़े निर्माता, मसाला फ़िल्मों के अलावा 'पिंक' जैसी फ़िल्मों को भी बढ़ावा दे जिस से समाज का भी फायदा हो।