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'टॉयलेट: एक प्रेम कथा' ही नहीं इन 5 फ़िल्मों ने भी किया है दर्शकों को जागरूक, देखें तस्वीरें

बॉलीवुड समय-समय पर ऐसी फ़िल्मों का निर्माण करता रहा है जो हम सबको इंटरटेन ही नहीं करता बल्कि अवेयर भी करता है!

By Hirendra JEdited By: Updated: Wed, 14 Jun 2017 02:21 PM (IST)
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'टॉयलेट: एक प्रेम कथा' ही नहीं इन 5 फ़िल्मों ने भी किया है दर्शकों को जागरूक, देखें तस्वीरें
मुंबई। अक्षय कुमार इनदिनों अपनी फ़िल्म 'टॉयलेट: एक प्रेम कथा' को लेकर ख़बरों में हैं। फ़िल्म में खुले में शौच न करने जैसे सामजिक मुद्दे उठाये गए हैं और लोगों को जागरूक किया गया है। हर घर में शौचालय बने, बहू को शौच के लिए घर से बाहर न जाना पड़े जैसे विषयों को बखूबी इस फ़िल्म में दिखाया गया है। अक्षय कुमार की यह फ़िल्म 11 अगस्त को सिनेमा घरों में प्रदर्शित की जायेगी।

'टॉयलेट: एक प्रेम कथा' फ़िल्म को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना स्वच्छता अभियान से जोड़ कर देखी जा रही है। प्रधानमंत्री ने खुद ट्ववीट करके अक्षय और पूरी टीम को इस फ़िल्म के लिए शुभकामनाएं दीं हैं। यह फ़िल्म रिलीज़ होने से पहले ही लोगों में जागरूकता फैलाने को लेकर सुर्खियों में है। बहरहाल, इसी कड़ी में आइये जानते हैं हाल के वर्षों में बॉलीवुड की कुछ ऐसी ही फ़िल्मों के बारे में जहां किसी न किसी सामाजिक मुद्दे को उठाकर लोगों को जागरूक किया गया है।

दंगल

पिछले साल आई आमिर ख़ान की फ़िल्म 'दंगल' इनदिनों चीन में खूब धूम मचा रही है। बॉक्स ऑफिस के आंकड़े बताते हैं कि इस फ़िल्म ने कमाई के मामले में एक कीर्तिमान रच दिया है। दंगल एक सुपरहिट फ़िल्म साबित हुई है। इस फ़िल्म में हानिकारक बापू का किरदार भी सुपर हिट हुआ। फ़िल्म का एक डायलॉग है- 'म्हारी छोरियां छोरो से कम हैं के'। यानी हमारी बेटियां बेटों से कम हैं क्या? यह संवाद फ़िल्म के पोस्टर पर भी दिखा। यही इस फ़िल्म का मैसेज भी है। यह फ़िल्म लोगों को जागरूक करती है कि वे बेटा और बेटी में फर्क न करें।

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कहानी 2

पिछले साल ही विद्या बालन की आयी फ़िल्म 'कहानी 2' भी एक बड़े सामाजिक मुद्दे पर लोगों को जागरूक करती है। बाल यौन शोषण को केंद्र में रख कर सुजॉय घोष की इस फ़िल्म ने यह साफ़ संदेश देने की कोशिश की है कि आपके बच्चों के साथ यौन शोषण करने वाला कोई शख्स आपका अपना भी हो सकता है! फ़िल्म बताती है कि बच्चे छोटी-छोटी इशारों से अपनी बात कहने की कोशिश करते हैं। परिजनों को चाहिए कि वे उन इशारों को और बच्चों में आये बदलावों को समझें। 'कहानी 2' एक ज़रूरी विषय पर सार्थक फ़िल्म है।

पिंक

इसी कड़ी में अमिताभ बच्चन की चर्चित फ़िल्म 'पिंक' को भी शामिल किया जाना चाहिए। यह फ़िल्म एक बदलते हुए समाज और गहराई तक धंसी मेल डोमिनेटेड सोच पर एक मज़बूत चोट है। फ़िल्म बताती है कि अपने समाज में लोग बहुत आसानी से किसी पर कोई भी लेवल चिपका देते हैं। लड़के सिगरेट, शराब पीयें और अपनी मर्जी से सेक्स करें तो ये जैसे उनका स्वाभाविक काम है पर यही काम अगर लड़कियां करें तो तुरंत ही उनके चरित्र पर सवाल खड़े होने लगते हैं, इस दोहरी मानसिकता को ध्वस्त करने की कोशिश का नाम है पिंक। इस फ़िल्म का एक संवाद 'नो का मतलब नो होता है' काफी हिट रहा! यह फ़िल्म साफ़ तौर से यह मैसेज देती है कि लड़कियों के नो का मतलब ना ही होता है!

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उड़ता पंजाब

इसी कड़ी में उड़ता पंजाब भी एक ज़रूरी फ़िल्म है। इस फ़िल्म में यह साफ़ दिखाया गया है कि नशे की लत कैसे आपकी ज़िंदगी तबाह कर सकती है। साथ ही पंजाब जैसा समृद्ध और खुशहाल प्रदेश कैसे नशे की गिरफ्त में आ गया है और अगर वे नहीं संभले तो क्या नुक्सान हो सकता है आदि समस्याओं को भी इस फ़िल्म में बखूबी दिखाया गया है।

तारे ज़मीन पर

यह फ़िल्म भी दर्शकों को जागरूक करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण फ़िल्म मानी जाती है। यह डिस्लेक्सिया जैसी बीमारी के जरिये लोगों को बताती है कि अगर आपका बच्चा ठीक से पढ़ नहीं रहा, कुछ समझ नहीं रहा और आपको यह लग रहा है कि वह जान बुझ कर ऐसा कर रहा है तो आप गलत हैं। हो सकता है आपका बच्चा शैतान या मंदबुद्धि नहीं बल्कि डिस्लेक्सिया जैसी बीमारी से पीड़ित हो! आमिर ख़ान ने इस फ़िल्म में काफी सेंसिटिव एक्टिंग की है।

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बहरहाल, इस लिस्ट को देखते हुए यह समझा जा सकता है कि बॉलीवुड समय-समय पर ऐसी फ़िल्मों का निर्माण करता रहा है जो हम सबको इंटरटेन ही नहीं करता बल्कि अवेयर भी करता है!