लंदन जा कर अतिथि फंसे मुश्किल में, मामला पहुंचा अदालत में
अतिथि तुम कब जाओगे भी मुश्किल में फंस चुकी थी, जब जाने माने कार्टूनिस्ट आबिद सुरती ने इस फिल्म की कहानी को 1976 में छापे गुजराती नॉवेल बाऊतर वारस नो बाबो से सीधा उठाने का आरोप लगाया था ।
By Manoj KhadilkarEdited By: Updated: Tue, 23 May 2017 12:46 PM (IST)
मुंबई। हॉलीवुड के स्टूडियो वार्नर ब्रदर्स के इंडियन डिवीजन ने बॉम्बे हाईकोर्ट में फिल्म गेस्ट इन लंडन की रिलीज़ पर स्टे लगाने के लिए एक याचिका दाखिल की है। कॉपीराइट उल्लंघन का आरोप लगाते हुए कंपनी ने कहा है कि इस फिल्म को साल 2010 में आई अतिथि तुम कब जाओगे के सीक्वल के रूप में प्रमोट किया जा रहा है।
इस मामले की सुनवाई सोमवार को हुई थी और अब अगली डेट 29 मई की दी गई है। फिल्म को 9 जून को रिलीज़ किया जाना तय किया गया है। आपको सात साल पहले आई अजय देवगन और परेश रावल की कॉमेडी यानि अतिथि तुम कब जाओगे तो याद ही होगी। इस फिल्म को देख कर आज भी लोग हंस पड़ते हैं लेकिन लगता है कि फिल्म के सीक्वल को लेकर फिल्म बनाने वालों की मुस्कराहट फुर्र हो गई है। वार्नर ब्रदर्स पहली फिल्म के प्रोड्यूसर थे और अब उनकी तरफ से गेस्ट इन लंडन को लेकर फिल्म के निर्माता कुमार मंगत और अभिषेक पाठक के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया है।यह भी पढ़ें:Exclusive: दबंग सलमान के हाथों में होगा ट्यूबलाईट जलाने वाला पॉवर
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वार्नर ब्रदर्स काफी समय से कॉपीराइट उल्लंघन को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ रहा है। फिल्म के पहले भाग के हिट होने और जमकर कमाई करने के बाद उसके सीक्वल की बात उठी थी और कुमार मंगत ने हॉलीवुड स्टूडियो से बात भी की थी क्योंकि फिल्म के सारे राइट्स उनके पास ही हैं। स्टूडियो का आरोप है कि बिना अनुमति के फिल्म की घोषणा की गई और किसी विवाद से बचने के लिए अतिथि इन लंदन का नाम बदल कर गेस्ट इन लंडन कर लिया गया। हालांकि फिल्म का सारा प्लॉट पहले वाली फिल्म जैसा ही है। उधर निर्माता अभिषेक पाठक ने वार्नर ब्रदर्स के आरोपों को बेबुनियाद बताया है और कहा है कि मामला फिलहाल कोर्ट में हैं।यह भी पढ़ें:Exclusive: ट्यूबलाइट में शाहरुख़ की होगी ऐसी धमाकेदार एंट्री
बता दें कि अतिथि तुम कब जाओगे भी मुश्किल में फंस चुकी थी जब जाने माने कार्टूनिस्ट आबिद सुरती ने निर्देशक और निर्माता के खिलाफ कानूनी नोटिस भेजते हुए कहा था कि इस फिल्म की कहानी 1976 में छापे गुजराती नॉवेल बाऊतर वारस नो बाबो से सीधा उठाई गई है। इस किताब को बाद में हिंदी में ' बहत्तर साल का बच्चा' के नाम से प्रकाशित किया गया था।