पसंद है प्यार में जुनून: हुमा कुरैशी
निर्देशक अभिषेक चौबे की फिल्म 'डेढ़ इश्किया' में माधुरी दीक्षित और नसीरुद्दीन शाह जैसे कलाकारों के साथ स्क्रीन शेयर करने का मौका मिला है हुमा कुरैशी को। फिल्म को लेकर हुमा से बातचीत के अंश: 'डेढ़ इश्किया', 'इश्किया' से अलग कैसे है? ये किरदार और इसकी दुनिया दोनों ही बहुत
By Edited By: Updated: Thu, 14 Nov 2013 11:57 AM (IST)
मुंबई। निर्देशक अभिषेक चौबे की फिल्म 'डेढ़ इश्किया' में माधुरी दीक्षित और नसीरुद्दीन शाह जैसे कलाकारों के साथ स्क्रीन शेयर करने का मौका मिला है हुमा कुरैशी को। फिल्म को लेकर हुमा से बातचीत के अंश:
'डेढ़ इश्किया', 'इश्किया' से अलग कैसे है? ये किरदार और इसकी दुनिया दोनों ही बहुत अलग है। एक पुरानी दुनिया है जो नई दुनिया में मिसफिट साबित हो रही है। लखनऊ के पास एक जगह है महमूदाबाद, जहां एक हवेली में एक बेगम रहती है। बेगम का अपना एक इतिहास है। साथ ही उनके जीवन का एक हल्का-फुल्का पहलू भी है। जिसमें रंग भरने आते हैं बब्बन और खालू। बब्बन और खालू माने अरशद वारसी और नसीर साहब। 'इश्किया' में डार्कर साइड अधिक था लेकिन इस बार कॉमिक एलिमेंट अधिक हैं और यहीं फिल्म अलग हो जाती है। दूसरे शब्दों में कहूं तो फिल्म में पागलपन अधिक है। पढ़ें:फेसबुक पर रिलीज होगा माधुरी दीक्षित की 'डेढ़ इश्किया' का ट्रेलर
हवेली, नवाब, बेगम और लखनऊ एक साथ हैं, तो कहानी का कालखंड क्या हुआ? मार्डन डे लखनऊ दिखाया गया है। अभिषेक चौबे ने पूरी मेहनत के साथ लेखक दाराब फास्खी के साथ मिलकर फिल्म की कहानी तैयार की है। फिल्म में पुरानी चीजों के साथ ही आप आईफोन और डिश टीवी के भी रिफरेंस देखेंगे। ये फिल्म देसी कूल कॉन्सेप्ट को बिलॉन्ग करती है, मतलब आप कूल भी हैं और देसी भी। इस फिल्म में प्यार की सात अवस्थाओं को बखूबी डिफाइन किया गया है, जो पुराने लखनऊ के लोगों के लिए आम बात थी।
प्यार की ये सात अवस्थाएं कौन सी हैं और आप किस जगह खड़ी है? सातों तो मुझे याद नहीं लेकिन कुछ याद है। मोहब्बत, उन्स, अकीदत, इबादत, जुनून और सबसे आखिर में मौत। दो भूल रही हूं। मैं कौन सी अवस्था में हूं, ये तो बताना मुश्किल है, लेकिन मुझे जुनून वाली अवस्था काफी पसंद है। जब दो लोग जुनून वाली अवस्था में होते हैं तो ही प्यार में सबसे परफेक्ट रहते हैं। पढ़ें:माधुरी-नसीरुद्दीन स्टारर 'डेढ़ इश्किया' रिलीज होगी 13 दिसंबर को आपका बेगम की जिंदगी से क्या लेना देना है? मैं बेगम के साथ रहने वाली मुनिया के किरदार में हूं। पूरा नाम मुनीरा असलम जिया उल बानो। वह बेगम के साथ साये की तरह रहती है। उठती- बैठती और खाती-पीती है। बेगम के फैसलों में भी उसका जिक्र रहता है। उसके कहने से बेगम अपनी भावनाओं का वेग तक निर्धारण करती है। खालू और बब्बन के बेगम की जिंदगी में आने से मुनिया के जीवन पर भी असर पड़ता है, लेकिन वह किसी भी कीमत पर बेगम के जीवन को सुरक्षित रखना चाहती है। पुरानी 'इश्किया' से तुलना करेंगे तो पाएंगे कि खालू और बब्बन के किरदार का मोटिवेशन है। बेगम के किरदार का भी है लेकिन मुनिया का नहीं है। आपको अंत तक नहीं पता चलेगा कि मुनिया चाहती क्या है? लेकिन मुनिया नहीं होगी तो आपको कहानी स्थिर लगेगी। पहले अनुराग कश्यप और अब विशाल भारद्वाज। एक के बाद एक प्रयोगधर्मी निर्माता-निर्देशकों के साथ काम का मौका मिलना स्वाभाविक है या प्रयास का परिणाम? स्वाभाविक तो सिर्फ अभिनय होता है। मैं लकी हूं कि मुझे विशाल के साथ दूसरी बार काम करने का मौका मिला। अनुराग ने भी मुझे मौका दिया। मैं खुद भी रोल को लेकर कांशस रहती हूं। उस तरह के किरदार ठुकरा देती हूं जिसमें दोस्त की सहेली बनना हो या फिर चार-पांच लड़कियों के साथ मिलकर नाचना हो। ऐसे किरदार करने से बेहतर होता कि मैं कोई और काम कर लेती। (दुर्गेश सिंह)
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