शाहरुख खान: 'मैं अच्छा लूजर हूं'
शाहरुख खान की अगली फिल्म 'हैप्पी न्यू ईयर' दीवाली के मौके पर 24 अक्टूबर को रिलीज होगी। पिछले साल अगस्त में आई 'चेन्नई एक्सप्रेस' के
शाहरुख खान की अगली फिल्म 'हैप्पी न्यू ईयर' दीवाली के मौके पर 24 अक्टूबर को रिलीज होगी। पिछले साल अगस्त में आई 'चेन्नई एक्सप्रेस' के बाद यह उनकी खास फिल्म है। इसका निर्देशन फराह खान ने किया है। 'हैप्पी न्यू ईयर' के साथ अन्य विषयों पर भी अजय ब्रह्मात्मज और शुभा शेट्टी साहा के साथ बात की शाहरुख खान ने...
आजादी की पूर्व संध्या पर ट्रेलर लाने का कोई खास मकसद?
इसके टेक्निकल कारण हैं। 15 अगस्त को रिलीज हुई 'सिंघम रिटर्न्स' के साथ 'हैप्पी न्यू ईयर' का ट्रेलर आया। वितरक और मार्केटिंग टीम ही यह फैसला करती है। फिल्म का एक अलग पहलू भी है, इसमें कमर्शियल हैप्पी पैट्रियाटिक फील है। 'हैप्पी न्यू ईयर' बहुत बड़ी फिल्म है। इसमें फन, गेम और फुल एंटरटेनमेंट है। आमतौर पर बॉलीवुड की फिल्मों के बारे में दुष्प्रचार किया जाता है कि वे ऐसी होती हैं, वैसी होती हैं। फराह खान ने जब इस फिल्म की स्टोरी सुनाई, तभी यह तय किया गया कि बॉलीवुड के बारे में जो भी अच्छा-बुरा कहा जाता है, वह सब इस फिल्म में रहेगा। बस इसे इंटरनेशनल स्तर का बनाना है। पूरे साहस के साथ कहना है, जो उखाडऩा है, उखाड़ लो। हम यहीं खड़े हैं। इस फिल्म में गाना है, रिवेंज है, फाइट है, डांस है। अब चूंकि समय बदल गया है, इसलिए सभी चीजों के पीछे लॉजिक भी है। उन्हें थोड़ा रियल रखा गया है। अब ऐसा नहीं होगा कि कमरा खोला और स्विट्जरलैंड पहुंच गए। हमने ऐसा विषय चुना, जिसमें बॉलीवुड के सभी तत्व डाले जा सकें। फिल्म के अंदर 'इंडिया वाले' कांसेप्ट बहुत महत्वपूर्ण है। यह अच्छा संयोग है कि स्वतंत्रता दिवस के एक दिन पहले हम लोग ट्रेलर लेकर आए।
क्या कांसेप्ट है इंडिया वाले का? आपकी एक पुरानी फिल्म है, 'फिर भी दिल है हिंदुस्तानी' ?
'फिर भी दिल है हिंदुस्तानी' मीडिया पर थी। इंडिया वाले कांसेप्ट के पीछे दो बातें हैं। अमूमन लोग विजेताओं पर फिल्में बनाते हैं। जो जीत जाते हैं, कुछ हासिल करते हैं, हम उनकी ही फिल्में बनाते हैं। वे इंस्पायरिंग और हीरो होते हैं। हमने लूजर्स की कहानी कही है। पहले के हीरो बहुत अच्छे होते थे। हमारे हीरो हर तरह से हारे हुए हैं। उन सभी के पास कुछ ख्वाब हैं, जिन्हें वे पूरा करना चाहते हैं। यह पहली फिल्म होगी, जो लूजर्स होने का जश्न मनाती है। आप थक गए हों, हार गए हों तो भी अपने ख्वाबों को पूरा करने की सकारात्मकता रहनी चाहिए।
आपके लिए लूजर का रोल प्ले करना बहुत मुश्किल रहा होगा...?
मैं लूजर होने का मतलब समझता हूं, इसीलिए मैं विनर हूं। हार की समझ हो, तभी आप जीत सकते हैं। हम जिंदगी में बहुत कुछ खोते हैं। हर किसी का अपना एक लेवल होता है। हम लोगों का खोना 100 करोड़ का होता है। हार को मैंने करीब से देखा है। आईपीएल में हारता रहा हूं। 'हैप्पी न्यू ईयर' में एक लाइन है। दुनिया में हर तरह के लोग होतेहैं, काले-गोरे, बड़े-छोटे, सच्चे-झूठे, मेरे खयाल से यह विभाजन सही नहीं है। दुनिया में दो ही तरह के इंसान होते हैं। एक विनर और दूसरा लूजर। जिंदगी हर हारने वाले को एक मौका जरूर देती है, जब वह जीत सके। यह कहानी उन सभी की है। गौर करें तो दुनिया में ज्यादातर लोग लूजर हैं लेकिन उनकी खुशियों पर कोई गौर नहीं करता। बहुत कम लोग ही सफल होते हैं। एक-दो ही स्टीव जॉब्स होते है। लूजर की हार को भी सेलीब्रेट करना चाहिए। 'हैप्पी न्यू ईयर' लूजर्स की हार को सेलिब्रेट करती है।
अपने पिता को भी आप सफल फैल्योर कहते रहे हैं...?
मैं उनसे बहुत प्रभावित हूं। उनकी भद्रता, शिक्षा और उनके सबक। प्रभाव की वजह शायद यह भी हो सकती है कि वे हमें छोड़कर जल्दी चले गए। वे बहुत ही योग्य, सुंदर और त्याग करने वाले व्यक्ति थे। वे स्वतंत्रता सेनानी थे। आजादी के लिए उन्होंने अपना परिवार छोड़ दिया। उन्होंने हमें जीवन मूल्य दिए। वे हमेशा यही कहते थे कि धोखा मत देना। घटियापन, छिछोरापन नहीं करना, बदतमीजी नहीं करना। वे बहुत ही विनम्र और सुशील थे। मैं पूरे गर्व से कहता हूं कि वे दुनिया के सफलतम फैल्योर थे। इसके बावजूद मैं उन्हें लूजर नहीं कहूंगा, क्योंकि उनकी सारी सफलताएं मुझे मिली हैं। उनकी शिक्षा से ही मैं सफल हुआ, उनका सिखाया बेकार नहीं गया।
आपके अमेरिका टूर स्लैम में भी क्या इंडिया वाले कांसेप्ट ही रहेगा?
नहीं। इसमें फिल्म के यूनिट के लोग जरूर हैं लेकिन हम सिर्फ अपनी ही फिल्म 'हैप्पी न्यू ईयर' पर परफॉर्म नहीं करेंगे। सभी की राय थी कि हम लोग वर्ल्ड टूर पर चलें। मुझे भी लगा कि मेरी फिल्म में हीरो-हीरोइन और बाकी टैलेंट हैं तो उन सभी के साथ क्यों न एक टूर किया जाए। हम सुष्मिता सेन को भी शामिल करना चाह रहे थे। 'मैं हूं ना' से उनके साथ एसोसिएशन रहा है लेकिन वह कहीं शूटिंग कर रही हैं। व्यस्त हैं। हम लोग छह शो करेंगे। मैं अमूमन 18 शो करता हूं। इस टूर को 'हैप्पी न्यू ईयर' टूर कहना ठीक नहीं होगा, इसीलिए हमने इसे स्लैम नाम दिया है। हां, सभी को एक साथ देखकर लोगों को 'हैप्पी न्यू ईयर' का खयाल आएगा। फिल्म के प्रचार के लिए हमें जाना ही है। उसमें रेगुलर सवालों के जवाब देने से बेहतर है कि हम परफॉर्म और एंटरटेन करें। तब तक अगर 'हैप्पी न्यू ईयर' के गाने आ गए तो उन पर भी परफॉर्म करेंगे। यह ढाई घंटे का एंटरटेनिंग पैकेज होगा। मैं, अभिषेक, दीपिका, सोनू, फराह, विवान और बोमन ईरानी के अलावा कुछ और लोग भी होंगे। जैकी श्राफ को भी निमंत्रित करूंगा।
क्या आप अच्छे लूजर हैं?
मैं अच्छा लूजर हूं। मैं खिलाड़ी रहा हूं। खेल में हमेशा जीतते ही नहीं हैं। खेल बताता है कि आप हार को कैसे स्वीकार करते हैं। क्रिकेट और फुटबॉल में हार जाता था तो टीचर कहते थे, तुम कल जीतोगे। माइकल जॉर्डन ने कहा था, मैं बार-बार हारता हूं, बार-बार गलत हो जाता हूं, एक टीम के तौर पर इतना हार चुका हूं कि मैंने जीत सीख ली है। लूजर होने के बाद यह सबक मिलता है कि इस एहसास से निकलने के लिए कल अलग तरीके से खेलना होगा। मैं गुड लूजर हूं। मैं बैड लूजर नहीं हूं। निजी तौर पर उदास हो जाऊंगा, परेशान रहूंगा, दुख तो पहुंचता ही है। कोई काम करें आप और वह लोगों को पसंद न आए, अच्छा न जाए। हमारा काम इतना तनाव से भरा होता है। सभी कहते हैं कि यह कला है लेकिन यह कला लोगों की पसंद-नपसंद पर निर्भर करती है। मेरे खयाल में कला के साथ आर्थिक विचार नहीं जुड़ा होना चाहिए। कविता तो कविता होती है, कोई कविता 250 या 500 रुपए की कैसे हो सकती है? यह कहने में ही घटिया लगता है लेकिन फिल्मों के साथ अलग मामला है। हम 150-300 करोड़ की फिल्में बना रहे हैं। हम ऐसी विवश स्थिति में हैं।
क्या सफलता और समृद्धि आपके लिए जुड़ी हुई चीजें नहीं हैं?
बिल्कुल नहीं। मैंने बहुत पैसे बनाए हैं। मैं सफल भी हूं। अल्लाह का फजल है। मैं खुशकिस्मत हूं। मैं आपको इंटरव्यू दे सकता हूं कि मुझे बिजनेस की अच्छी समझ है। जब चल पड़ती है, तब खूब चलती है। वजह और बहाने एक ही जैसी चीजें हैं। जीतने की वजह लोग बताते हैं और हारने के बहाने बताते हैं। और दोनों में से कोई भी सही नहीं होता!
आप हमेशा यह कहते रहे हैं कि आपको बिजनेस की ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन 'स्मार्ट बिजनेसमैन' का तमगा आपको ही मिला है... आक्रामक प्रचार का तरीका आपने ही शुरू किया...?
मैं अपनी बिजनेस टीम के साथ बैठता हूं तो वे कई योजनाएं लेकर आते हैं। मैं उन्हें सुनकर कुछ बता देता हूं। कुछ सुझा देता हूं। चल पड़ती है तो क्रेडिट मुझे मिल जाता है। मेरे खयाल में बड़े सिनेमा का एक्सपीरियंस ऐसा होना चाहिए कि सभी खुश हों। वरना लोग टीवी या लैपटॉप पर फिल्में देखने लगेंगे। फिल्म की वह इज्जत हो कि उसे सिनेमाघर में ही देखा जाए। हमारे यहां जिंदगी डिब्बों में होती है। हम लोग अपने परिवारों में सब कुछ डिब्बों और पैकेट्स में बंदकर के रखते हैं। गहने, जेवर, बच्चों के कपड़े, अपने कपड़े... सब कुछ संजोकर डिब्बे में रखते हैं। अपने पहले लेख, पहली किताब, पहला सब कुछ संजोने की कोशिश करते हैं। अगर उन्हें डिब्बे में न रखें या डिब्बे इधर-उधर हो जाएं तो हम डर जाते हैं। हमें उन सभी चीजों से दिक्कत होती है, जिन्हें हम डिब्बाबंद या श्रेणीबद्ध नहीं कर पाते। हम श्रेणीबद्ध या रेफ्रेंस से जोड़कर सुरक्षित महसूस करते हैं। मुझे जो तमगे मिले या दिए गए हैं, उनके बारे में मुझे भी नहीं मालूम। कुछ हो जाता है और लोग समझ नहीं पाते तो तमगे दे देते हैं। मैं आज तक नहीं समझ पाया कि मैं कैसी फिल्में करता हूं। यह लोग मुझे समझा देते हैं। सभी की इच्छा रहती है कि वे हर चीज समझ लें और समझा दें। मैं सब कुछ करता हूं और चल भी रहा हूं। इसे समझने की कोशिश में लोग अलग-अलग चीजों को श्रेय देते हैं। कभी कोई कहता है कि इसकी पीआर टीम बहुत अच्छी है। कभी किसी को लगता है कि मैं खुद ही कुछ कमाल कर देता हूं। मैं एक्टर हूं। मुझे इस तरह के तमगे अच्छे लगते हैं। जब तक लोग समझ नहीं पाएंगे, तब तक लोग तमगे देते रहेंगे। इसकी वजह से मेरे साथ जुड़ा रहस्य बरकरार रहता है। जो लोग बाहर से देखते-समझते हैं, उनकी धारणा कुछ और होती है। जो लोग आसपास रहते हैं, वे लोग मुझे थोड़ा-बहुत समझ पाते हैं।
अभी आपकी उम्र के सारे हीरो सोलो हीरो की फिल्में कर रहे हैं। ऐसे दौर में 'हैप्पी न्यू ईयर' जैसी फिल्म लेकर आना कुछ नया है? ऐसा एंसेबल कास्ट जमा करने की जरूरत क्यों महसूस हुई?
इस फिल्म में न केवल सारे कलाकारों को प्रमुख भूमिका मिली है। बल्कि पोस्टर पर भी हम सभी साथ नजर आएंगे। सच कहूं तो अपने प्रोडक्शन में अभी तक मैंने खुद के लिए कोई फिल्म नहीं बनाई। कभी यह नहीं सोचा कि यह मेरी खासियत है और मुझे ऐसी ही फिल्म करनी चाहिए। अभी मैंने खुद के लिए फिल्में बनाना शुरू ही नहीं किया है। अभी मैं ऐसी फिल्में चुनता हूं, जिनमें कुछ अलग-अलग कर सकूं। वही फिल्में करता हूं, जिन्हें करते हुए मजा आता है। वैसे लोगों के साथ करता हूं, जिनके साथ काम करना अच्छा लगता है। फराह यह फिल्म सुनाते समय आशंकित थीं कि तुम यह फिल्म क्यों करोगे? ऐसी फिल्म का हिस्सा क्यों बनोगे, जिसमें सभी के रोल बराबर हों। इस फिल्म में एक भी कैरेक्टर ऐसा नहीं है, जिसका रोल एक-दूसरे से कम या ज्यादा हो। सबका कमोबेश बराबर ही है। इस फिल्म का कोई हीरो है ही नहीं। रोमांटिक एंगल होने की वजह से कह सकते हैं कि मैं हीरो हूं। हीरोइन मुझे मिलती है। यह छह लोगों की कहानी है। मैंने शुरू में ही कह दिया था कि पोस्टर में कोई अकेला नहीं आएगा, टे्रलर में अकेला नहीं आएगा, बात कोई अकेले नहीं करेगा। हम सभी साथ में बोलेंगे। सभी का रोल समान है। 'हैप्पी न्यू ईयर' छह लूजरों की कहानी है। 'हैप्पी न्यू ईयर' में छह लोगों को साथ में लेकर चलना फराह के लिए बहुत मुश्किल काम रहा है। हर फ्रेम में सबको साथ रखना, उनके खड़े होने और बैठने की पोजिशन तय करना, उसके हिसाब से सेट बनाना, यह सब कुछ मुश्किल रहा।
अभी सब कुछ बड़े स्केल पर होने लगा है?
शेखर कपूर ने कहा था कि फिल्में बहुत बड़ी हो जाएंगी। अभी सब कुछ कमर्शियल और बड़ा हो गया है। मौत कमर्शियल हो गई है। एमएच 17 की एक पूरी डॉक्यूमेंट्री है। लोग इसे देख रहे हैं। समाचार देख लें, कैसे म्यूजिक, एंकर और प्रजेंटेशन से बेचा जा रहा है। इलेक्शन बेचा गया। लोग बॉलीवुड पर इल्जाम लगाते हैं कि हम लोग सब कुछ बेचते हैं। बाहर पूरे समाज में भी तो यही बिक्री चालू है। मैं इसे गलत नहीं मानता हूं। 'फिर भी दिल है हिंदुस्तानी' के समय भी मैंने इसे गलत नहीं कहा। एक दर्शक आईपीएल और इलेक्शन कैंपेन एक ही रुचि के साथ देख सकता है। वह एंटरटेन हो रहा है। सब कुछ एंटरटेनमेंट हो गया है। तब हमने कहा था कि मौत भी बिकेगी और कोई शीतल पेय उसका स्पांसर होगा। हम इस कमर्शियलाइजेशन के बहुत करीब पहुंच गए हैं। ट्रेजडी बिक रही है। 'इंवेंशन ऑफ लाइज' एक फिल्म आई थी, उसमें लोग झूठ नहीं बोलते हैं और जब झूठ बोलने लगते हैं तो वे ईश्वर भी बना लेते हैं। कमर्शियल सिनेमा में अब यह सब चीजें भी आएंगी। मेरा यही कहना है कि यह सारी चीजें लाएं लेकिन उसे खुशी और कॉमर्स से भर दें।
आप पर हमेशा आरोप रहता है कि आप एक जैसी ही फिल्में करते हैं?
कहां एक जैसी फिल्में करता हूं। मेरी पिछले 10 साल की फिल्में देख लें, कितनी भिन्नता है। मैं एक एक्टर हूं, आपको हंसा भी सकता हूं और रुला भी सकता हूं। मैं कभी भी फैशन और चलन के मुताबिक फिल्में नहीं करता। मैं सुबह 9 बजे से अगले दिन सुबह छह बजे तक काम करता रहता हूं। मुझे मजा आता है।
कभी आपकी दिली इच्छा थी कि आप आइकॉन बनें। अब तो आप आइकॉन होने के साथ सफल ब्रांड भी हैं। यहां से आगे कहां जाना है? कभी अमरता के लिए कुछ करने का खयाल आता है? आपको लोग याद रखें?
और बड़ा आइकॉन बनाना चाहूंगा। याद रखने के लिए मैं कोई काम नहीं करता। कोई भी नहीं करता। मैं उदाहरण देता हूं, 'प्यासा' अभी देश की सबसे अच्छी फिल्म मानी जाती है। जब यह फिल्म रिलीज हुई थी, तब किसी ने इसे पानी नहीं दिया था। बनी होगी, तब न जाने लोगों ने क्या-क्या कहा होगा। दत्त साहब को कितनी बातें सुनाई होंगी। कह नहीं सकते, आज की असफल फिल्म 50 साल के बाद बड़ी फिल्म साबित हो सकती है। हो सकता है कि 'फिर भी दिल है हिंदुस्तानी' की अलग व्याख्या हो। हो सकता है कि मेरा बेटा 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे', 'चक दे', 'अशोका', 'देवदास' आदि की तारीफ करे और कोई उसे समझाए कि यह सब तो ठीक है, लेकिन 'गुड्डू' तेरे पापा की सबसे अच्छी फिल्म है। जो लोग भविष्य के बारे में सोचकर काम करते हैं, वे अंधेरे में तीर चलाते हैं। भविष्य का किसी को ज्ञान ही नहीं है। अगर हमें पांच साल बाद की चीजों का इल्म रहता, तब न जाने हम कहां से कहां पहुंच जाते। वैज्ञानिकों को भी नहीं मालूम होता है। हमें वर्तमान और इस पल के लिए काम करना चाहिए। फिल्मों की मेरी एक जानकारी हो गई है। फिर भी कोई नई चीज आती है तो मैं नहीं कतराता। मैं रीमेक और पुरानी चीजें करने से दूर रहता हूं।
'देवदास' और 'डॉन' के बारे में क्या कहेंगे?
मैं उन्हें रीमेक नहीं कहता। मेरे खयाल से वे क्लासिक फिल्मों का रिइंट्रोडक्शन हैं। इन फिल्मों को देखकर हम बड़े हुए हैं। नई पीढ़ी 'डॉन' के बारे में नहीं जानती। अमित जी को देखकर हम पागल हो जाते थे। 11 मुल्कों की पुलिस उनके पीछे पड़ी रहती थी। उनके बारे में तो बताया जाना चाहिए। फराह कहती है कि हमारी फिल्म न भी देखें, कम से कम इसी बहाने पुरानी फिल्में तो देखें। सच कहूं तो मैं दिलीप कुमार की 'देवदास' के बारे में ज्यादा नहीं जानता था। मेरी मम्मी हमेशा उसकी तारीफ करती थीं। संजय लीला भंसाली ने कहा तो मैंने स्वीकार कर लिया और कहा कि चलो बनाते हैं। मेरा दिल कल के बारे में सोचकर नहीं धड़कता। मेरा दिल आज के लिए धड़कता है। मैं सबसे यही कहता हूं कि आप जिस वक्त पर जहां हैं, आपकी दुनिया वही हैं। अभी हम लोग बातचीत कर रहे हैं, इस पल के बाहर दुनिया में क्या हो रहा है, हमें कुछ नहीं मालूम। हम जहां नहीं हैं, वहां की चीजों से हम वाकिफ नहीं हैं। हो सकता है कि 30 सेकंड के बाद एक सुनामी आए। मैं तो समुद्र के किनारे रहता हूं। हमें 30 सेकंड का फ्यूचर नहीं मालूम, आप आगे की बात पूछ रहे हैं। मैं बहुत स्पष्ट हूं। 20 साल के बाद मुझे किसी ने याद रखा या नहीं रखा, इसकी मुझे परवाह नहीं है। लोग अभी तो मुझे याद रख रहे हैं। अपने बेटे के लिए मैं जरूरी हूं। अपनी फिल्मों के लिए जरूरी हूं। दर्शकों और दोस्तों के लिए जरूरी हूं। हूं कि नहीं, यह देखना चाहिए।
अभी ऐसी क्या तीन चीजें हैं, जो आपको चिंतित करती हैं?
पहली, मेरे बच्चे सेहतमंद रहें। उनको जुकाम वगैरह भी हो जाता है, तो मैं घबरा जाता हूं। बेटी को अभी दिल्ली में बुखार लग गया था, मुझे मालूम है कि ठीक हो जाएगा, लेकिन मैं घबरा गया था। दूसरी, अपने होने का लाभ उठाते हुए ऐसा काम कर जाना जो लोगों को आनंदित कर सके। वह आज का खास काम हो। तीसरी, दूसरों की खुशी, सफलता और काम देखकर परेशान न हों। आप खुश रहो, मैं भी खुश हूं अपनी जगह। किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह दूसरों की जिंदगी के बारे में सोच सके। अपना खयाल रखो, अपनी लाइफ लीड करो, दूसरों का भी ठीक-ठाक हो ही जाएगा। मैंने खुद को एक आवरण में लपेट लिया है। मैं सभी चीजों से अप्रभावित रहता हूं। अपने बारे में ही मैंने इतनी चीजें सुन ली हैं कि घोर निराशा में जा सकता हूं। बेहतर है मैं उस पर मजाक करूं। अन्यथा मैं पागल हो जाऊंगा।
आप प्रेस कांफ्रेस और पब्लिक इंटरैक्शन में तो हंसी-मजाक के मूड में रहते हैं?
ज्यादातर समय मुझसे वैसे ही सवाल पूछे जाते हैं, जिनके जवाब पूछने वालों के पास पहले से रहते हैं। लोगों को लगता है कि उन्हें मेरे बारे में सब कुछ मालूम है, वे कोई ऐसा सवाल नहीं करते हैं कि जिससे कोई नई बात पता चले। अभी दुबई में एक महिला मिलीं। उन्होंने पूछा कि आप अनुपम खेर के शो में इतने दुखी क्यों थे। मैंने उन्हें बताया कि आंखों की लेसिक करवाई है, इसलिए ऐसा लग रहा होगा। उसमें आंखें थक जाती हैं। वे महिला नहीं मानीं। उन्होंने कहा कि आप थके हुए थे, आप उदास थे। मैं 20 साल से आपकी आंखें देख रही हूं, ऐसी उदासी नहीं देखी। फिर मैंने उनसे कहा कि आप सच कह रही हैं। मैं बहुत दुखी था उस दिन। अब खुश हो। वह मेरा मजाक नहीं समझ पाईं। उन्होंने खुश होकर कहा, मैं कह रही थी कि आप उदास थे। यही वजह है कि मैैं अपनी किताब लिख रहा हूं। मैं जो बताना चाहता हूं, उसके बारे में कोई पूछता ही नहीं है। मैंने सोचा कि मैं खुद ही लिख देता हूं। इन दिनों अपने एहसास लिखा करता हूं। प्रेस कांफ्रेंस वगरैह में तो मजाक ही चलते रहते हैं। वहां तो वही दो सवाल सलमान पर होते हैं, दो फिल्मों के बारे में और ढाई किसी नई घटना के बारे में। अब आप कितना मजाक उड़ाएं। उनकी भी मजबूरी है, वे हेडलाइन के इंतजार में रहते हैं। मेरा पूरा यकीन है कि 20 सालों से अगर कोई किसी फील्ड में काम कर रहा है, तो उससे ऐसी कई बातें पूछी जा सकती है, जो दूसरों के काम आएं। सचिन से आप कोई सवाल कर सकते हैं, जिससे क्रिकेट और जिंदगी के बारे में कुछ नई बातें पता चले।
आपके विज्ञापनों को देखकर लगता है कि उनमें फिल्मों से आपकी अर्जित छवि का ही विस्तार हो रहा है? दूसरे सितारों से अलग आपके विज्ञापनों में घरेलू और फैमिली अप्रोच दिखता है? यह संयोग है या किसी योजना के तहत आप ऐसा करते हैं?
मैं जब एड फिल्म वालों के साथ बैठता हूं तो वे अजीब-अजीब एक्सपलानेशन देते हैं। मैं उनसे कभी कोई सवाल नहीं करता। वे जो भी कहते हैं, मैं सुन लेता हूं। मैं यह नहीं समझाता कि मैं क्या हूं। वे बताते हैं कि हमारा जो ब्रांड है। वह फलां वैल्यू के लिए स्टैंड करता है। भले ही वे बनियान का विज्ञापन लेकर आए हों, लेकिन वे फैमिली की बात करेंगे। मुझे भी पता नहीं चलता कि यह सब कैसे होता है। वे बताते हैं कि आप घर की लमारी खोलेंगे तो यह लगेगा कि यह हमारे घर की शान है। उसमें प्यार है। वे प्रोडक्ट का मानवीकरण कर देते हैं। फिर उसे मेरे ऊपर थोप देते हैं। मैं उनकी बात मान लेता हूं। कहेंगे कि यह ड्रिंक बबली, रिफ्रेशिंग और हैप्पी है आपकी तरह। मैं भी मान लेता हूं। मैं बबली हूं, रिफ्रेशिंग हूं, हैप्पी हूं। वे मुझे हमेशा यही कहते हैं कि हमारे प्रोडक्ट के लिए आप फिट ब्रांड हो। मैंने तमाम अलग-अलग ब्रांड किए हैं। गजब बात है कि मैं सब में फिट हो जाता हूं। पहले मैं उनके क्रिएटिव में थोड़ा-बहुत बदलाव करता था। अब समझदार हो गया हूं। मैंने समझ लिया है कि विज्ञापन बनाने वालों की जानकारी मुझसे ज्यादा है। फिल्म बनाते समय अगर मुझे कोई कहेगा तो मैं मना कर दूंगा। वह मेरा मैदान है। अब तो मैं उनसे जाकर पूछता हूं कि बताओ आपको क्या चाहिए। मैं वही कर देता हूं। मैं उनसे कभी सवाल नहीं करता। मेरे ज्यादातर प्रोडक्ट मिडिल क्लास और अपर मिडिल क्लास के हैं। मैं बहुत महंगी चीजों का विज्ञापन नहीं करता। मैं टैग की घड़ी पहनता हूं। यह सस्ती घड़ी है। 80 हजार में आ जाती है। मेरा बेटा भी इसे खरीद सकता है। मेरे पास जब पैसे नहीं होते थे, तब भी मैंने यही घड़ी खरीदी थी। मैं उनसे नहीं पूछता कि वे इसे कैसे बेचेंगे। मुझसे यह कोई नहीं पूछता कि मैं अपनी फिल्म कैसे बेचूंगा!
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