बेटी की नाकामयाबी के दर्द से इस हाल में पहुंची माला सिन्हा!
ग्लैमर की रोशनी में नहाने के बाद गुमनामी में जीना बेहद तकलीफ़दायी होता है। माला बनना आसान नहीं और माला बनकर गुमनामी में जीना भी उतना ही मुश्किल है!
By Manoj KumarEdited By: Updated: Fri, 21 Oct 2016 07:25 AM (IST)
मुंबई। साठ और सत्तर के दशक में जब पर्दे पर हुस्न के साथ हुनर की ज़रूरत होती थी, तो माला सिन्हा को याद किया जाता था। माला ने उस दौर के सिनेमा को अपनी अदाकारी से ऐसा नवाज़ा कि आज भी वो यादों की माला का बेशक़ीमती मोती हैं। मगर, जिस मोती पर वक़्त की गर्द जम जाए, उसकी कोई क़ीमत नहीं होती।
कुछ ऐसा ही माला सिन्हा के साथ हुआ है। पर्दे से दूर होने के बाद कभी-कभार नज़र आने वाली माला को आज देखकर आप चौंक जाएंगे। विश्वास नहीं कर पाएंगे कि ये वही माला सिन्हा हैं। जीवन के अस्सी वसंत देख चुकीं माला सिन्हा इन दिनों मुंबई में ही रहती हैं। उनका ज़्यादातर समय अब घर पर ही गुज़रता है। 2013 में दादा साहब फाल्के अवार्ड समारोह में वो आख़िरी बार पब्लिक के बीच दिखाई दी थीं। उनके क़रीबी बताते हैं कि अपनी बेटी प्रतिभा सिन्हा की नाकामयाबी ने उन्हें निराश कर दिया था। धीरे, धीरे वो सबसे कटती चली गयीं और आज वो आज जैसे एक अज्ञातवास में रहने को विवश हैं। अब वो किसी सभा-समारोह में नहीं आती-जातीं। ग्लैमर की रोशनी में नहाने के बाद गुमनामी में जीना बेहद तकलीफ़दायी होता है, लेकिन इस मायानगरी का एक बड़ा सच यह भी है कि यहां चढ़ते सूरज को तो सलाम किया जाता है पर डूबते सूरज की तरफ देखना तो छोड़िये उसका ज़िक्र करना भी समय की बर्बादी है!बर्थडे स्पेशल: तस्वीरों में जानिए शम्मी कपूर का सफरनामा
आपको बता दें 11 नवम्बर 1936 को जन्मीं माला सिन्हा ने हिन्दी के अलावा बंगला और नेपाली फिल्मों में भी काम किया है। वो अपने टेलेंट और ब्यूटी दोनों के लिये जानी जाती रही हैं। 1950 से 1970 के बीच माला सिन्हा सर्वाधिक कामयाब और चर्चित अभिनेत्री थीं। उन्होने सौ से अधिक फिल्मों में काम किया है जिनमें से प्रमुख हैं- प्यासा (1957), धूल के फूल (1959), अनपढ़, दिल तेरा दीवाना ( 1962 )।Exclusive: 'तुम बिन' के बाद सलमान ख़ान ने अनुभव सिन्हा को क्यों कहा- स्टुपिड! देवानंद, धर्मेन्द्र, मनोज कुमार, राजेंद्र कुमार, शम्मी कपूर जैसे अभिनेताओं की वो पहली पसंद रहीं जबकि उस वक्त के हर डायरेक्टर ने उनके साथ काम किया। जिनमें केदार शर्मा, बिमल राय, सोहराब मोदी, बी.आर. चोपड़ा, यश चोपड़ा, अरविंद सेन, रामानंद सागर, शक्ति सामंत, गुरुदत्त, विजय भट्ट, ऋषिकेश मुखर्जी, सुबोध मुखर्जी, सत्येन बोस आदि कई नाम हैं। माला बनना आसान नहीं और माला बनकर गुमनामी में जीना भी उतना ही मुश्किल है!