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यादों में ओम: 'जाने भी दो यारों' में इस वेटरन एक्टर की सिफ़ारिश पर मिला था रोल!

सतीश बताते हैं कि ओम पुरी ने फ़िल्म में अाहूजा का किरदार निभाया। पहले यह किरदार ओम पुरी नहीं निभाने वाले थे। उनका नाम फ़िल्म में बहुत बाद में जुड़ा था।

By मनोज वशिष्ठEdited By: Updated: Fri, 06 Jan 2017 12:56 PM (IST)
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अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। कुंदन शाह की फ़िल्म 'जाने भी दो यारों' हिंदी सिनेमा की कल्ट क्लासिक फ़िल्मों में शुमार है। इस फिल्म के सारे किरदार यादगार रहे। फिर चाहे ओम पुरी का छोटा सा ही किरदार क्यों ना हो। आज भी दर्शक ओम पुरी के उस किरदार को नहीं भूले हैं।

इस फ़िल्म से सतीश कौशिक बतौर संवाद लेखक और कलाकार की हैसियत से जुड़े थे। सतीश ने फ़िल्म में पंकज कपूर के किरदार बिल्डर तरनेजा के असिस्टेंट नंबूदरीपाद का रोल निभाया था, जबकि ओम पुरी तरनेजा के राइवल बिल्डर के रोल में थे। सतीश कौशिक ने जागरण डॉट कॉम से खास बातचीत में उस दौर को याद किया और 'जाने भी यारों' का दिलचस्प वाकया साझा किया। सतीश बताते हैं- ''ओम पुरी ने फ़िल्म में अाहूजा का किरदार निभाया। पहले यह किरदार ओम पुरी नहीं निभाने वाले थे। उनका नाम फ़िल्म में बहुत बाद में जुड़ा था।पहले यह किरदार विनोद नागपाल निभाने वाले थे, लेकिन अचानक उनकी तबीयत खराब हुई तो वो नहीं आ पाये।

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कुंदन शाह ने सोचा कि ओम पुरी से बात करके देखते हैं, लेकिन यह भी सोचा कि छोटा किरदार है, पता नहीं निभायेंगे या नहीं। आइडिया नसीरुद्दीन शाह का था कि ओम को ले लो। ओम पुरी को ऑफ़र किया गया तो उन्होंने तुरंत लपक लिया था। सतीश बताते हैं कि उनकी और ओम पुरी की दोस्ती फ़िल्मों से भी पहले से थी, जब वो साथ में थियेटर किया करते थे। दोनों ने साथ में बिच्छू नामक नाटक किया था, जो काफी हिट रहा था।

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इस शो के लिए जब भी वो कहीं बाहर जाते थे तो उनकी कोशिश होती थी कि सभी बस से चलें तो खूब मस्ती करते हुए चलेंगे। फिर बस में मस्ती, नाच-गाना सब होता था। सतीश से ओम पुरी हमेशा उनकी बांहें मरोड़कर दोस्ताना वाला व्यवहार करते हुए ही मिलते थे। सतीश के साथ उन्होंने अपने थिएटर ग्रुप मज़मा का भी निर्माण किया था।

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पृथ्वी थियएटर में भी उन्होंने कई नाटकों का साथ में मंचन किया है। सतीश बताते हैं कि ओम पुरी उनसे हमेशा इस बात की शिकायत करते थे कि बतौर निर्देशक सतीश ने कभी उन्हें अपनी फ़िल्म में कास्ट नहीं किया। सतीश ओम पुरी के बारे में एक और प्रेरणादायी वाकया शेयर करते हुए बताते हैं कि ऐसा कलाकार मैंने नहीं देखा था, जो कि खुद मुंबई में स्ट्रगल ही कर रहा था, लेकिन अपने पिता को मुंबई लेकर आ गया था, ताकि उनकी सेवा कर सकें। अपने स्ट्रगल के दिनों में भी उन्होंने हमेशा अपने पिता का बहुत ख्याल रखा था। उनके पिता ने भी हमेशा ओम को सपोर्ट किया था।