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टॉप पर रही यह एक्ट्रेस ताउम्र रही अकेली, कोई पछतावा नहीं, अब दिखती है ऐसी

निदा फाजली साहब का एक शेर है कि कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कहीं ज़मी तो कहीं आसमां नहीं मिलता!

By Hirendra JEdited By: Updated: Tue, 27 Jun 2017 06:04 PM (IST)
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टॉप पर रही यह एक्ट्रेस ताउम्र रही अकेली, कोई पछतावा नहीं, अब दिखती है ऐसी
मुंबई। मायानगरी मुंबई जहां रोज़ एक सितारा चमकता है तो कुछ सितारे डूब जाते हैं। कुछ सितारे ऐसे भी हैं जिनकी चमक कभी फीकी नहीं पड़ती तो कुछ सितारे ऐसे भी हैं जो मद्धिम मद्धिम ही सही लेकिन देर तक और दूर तक रौशनी देने के लिए जाने जाते हैं। एक ऐसा ही सितारा है मशहूर अदाकारा आशा पारेख।

एक गुजराती परिवार में पन्नालाल और सुधा पारेख की बेटी के रूप में दो अक्टूबर, 1942 को जन्मीं अभिनेत्री आशा पारेख को डांस के शौक ने इस मुकाम तक पहुंचाया। बाल कलाकार के रूप में उनकी पहली फ़िल्म आई 1952 में दलसुख पंचोली की 'आसमान'। हीरोइन के रूप में उनकी पहली फ़िल्म थी 'दिल देके देखो', जो सफल हुई थी। लगभग अस्सी फ़िल्मों में बतौर अभिनेत्री काम कर चुकीं आशा पारेख की तमाम फ़िल्में बेहद पसंद की गई, जिनमें 'जब प्यार किसी से होता है', 'घराना', 'फिर वही दिल लाया हूं', 'मेरी सूरत तेरी आंखें', 'भरोसा', 'मेरे सनम', 'तीसरी मंजिल', 'लव इन टोक्यो', 'दो बदन', 'आये दिन बहार के', 'उपकार', 'शिकार', 'साजन', 'आया सावन झूम के', 'पगला कहीं का', 'कटी पतंग', 'आन मिलो सजना', 'मेरा गांव मेरा देश', 'कारवां', 'समाधि', 'जख्मी', 'मैं तुलसी तेरे आंगन की' उल्लेखनीय हैं। आगे बढ़ने से पहले आइये जानते हैं कि बला की खूबसूरत यह एक्ट्रेस आज कैसी दिखती हैं-

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'कटी पतंग' के लिए इन्हें बेस्ट ऐक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवार्ड मिला 1972 में और फ़िल्मों में योगदान के लिए फिल्मफेयर का ही लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड 2002 में मिला। इनके योगदान के लिए आइफा ने भी 2006 में स्पेशल अवार्ड से सम्मानित किया। उन्होंने अपने समय के सभी प्रसिद्ध तथा सफल नायकों जैसे देव आनंद, गुरुदत्त, राजेंद्र कुमार, सुनील दत्त, धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना, मनोज कुमार आदि के साथ काम किया। आशा पारेख ने हिन्दी के अलावा गुजराती, पंजाबी और कन्नड़ फ़िल्मों में भी काम किया। गुजराती फ़िल्म 'अखंड सौभाग्यवती' को अपार सफलता मिली। सन 1990 में गुजराती टीवी सीरियल 'ज्योति' का निर्देशन कर उन्होंने छोटे पर्दे की दुनिया में कदम रखा। उसके बाद अपनी प्रोडक्शन कंपनी आकृति खोलकर 'पलाश के फूल', 'बाजे पायल', 'कोरा कागज', 'दाल में काला' सीरियल बनाए।

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बहरहाल, हिन्दी सिनेमा की नायिकाओं में आशा पारेख की इमेज टॉम-बॉय की रही है। हमेशा चुलबुला, शरारती और नटखट अंदाज। यही वज़ह रही कि आशा के समकालीन एक्टर्स उनसे दूर रहने में ही अपनी भलाई समझी। आशा के बारे में मीडिया में कभी अभद्र गॉसिप या स्केण्डल नहीं छपे। अलबत्ता आशा का साथ पाकर उनके नायकों की फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर सिल्वर तथा गोल्डन जुबिली मनाती रहीं।

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1959 से 1973 के बीच वो हिंदी फिल्मों की टॉप एक्ट्रेसेस में शुमार रही हैं। रिटायरमेंट के बाद वो अपनी डांस एकेडमी चला रही हैं। निदा फाजली साहब का एक शेर है कि कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कहीं ज़मी तो कहीं आसमां नहीं मिलता! क्या आप जानते हैं आशा बॉलीवुड की उन एक्ट्रेसेस में से एक हैं जिन्होंने शादी नहीं की। उनके बारे में कहा जाता है कि कभी वो डायरेक्टर नासिर हुसैन के बेहद करीब थीं। आशा पारेख ने एक मैगजीन को दिये इंटरव्यू में अपने जीवन से जुड़े कई राज खोले हैं। उन्होंने कहा कि "मैं शादी नहीं करके बहुत खुश हूं। मेरी मां ने मेरे लिए लड़के की तलाश की। लेकिन कोई सुयोग्य लड़का मिल नहीं पाया। मैं अपने इस फैसले को लेकर बहुत खुश हूं। मेरे किस्मत में शादी नहीं थी - सो नहीं हुई। आज के दौर में जब पति-पत्नी व बच्चे के तनाव को देखती हूं, तो दुख होता है।

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आशा पारेख ने कहा कि "मुझे कभी भी जीवनसाथी की कमी महसूस नहीं हुई। मुझे जीवन में जो कुछ मिला, उसे लेकर कोई शिकायत नहीं है " उन्होंने कहा कि मेरा स्वभाव कभी भी अंतर्मुखी नहीं रहा है। मैं आज भी दोस्तों से खूब बात करती हूं। आशा पारेख ने कहा कि आप अकेले आते हैं और अकेले जाते हैं। अगर आपके किस्मत में जीवन साथी नहीं लिखा हुआ है तो आपको वो नहीं मिलता है। फ़िल्मों में चरित्र नायिका के कुछ रोल करने के बाद आशा ने एक तरह से फ़िल्मों से संन्यास ले लिया। उन्होंने कोरा कागज तथा कंगन जैसे पारिवारिक धारावाहिक बनाए और अपनी लोकप्रियता को जारी रखा। अपने दो दशक के कॅरियर में आशा पारेख ने उस जमाने के सभी बड़े सितारों के साथ स्क्रीन शेयर किया.पर दिलीप कुमार के साथ आशा को काम करने का मौका नहीं मिला।

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फ़िल्मों के अलावा आशा पारेख फ़िल्मों से जुड़े कई महत्वपूर्ण पदों पर भी रहीं। 1994 से 2000 तक सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन की अध्यक्ष रहीं। साथ ही फिल्म सेंसर बोर्ड की पहली महिला अध्यक्ष बनने का गौरव इन्हीं को है। वर्ष1992 में कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए वह पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित की गई।